कश्मीरी पंडितों ने आर्टिकल 370 पर पहली बार तोड़ी चुप्पी, कहा हमारे आंखों के सामने जले थे खेत
विस्थापित कश्मीरी पण्डित संघर्ष समिति के प्रेसिडेंट एस के भट्ट ने बताया कि हमें योजनाबद्ध तरीके से पलायन कराया गया जो की हमारा दर्द है।
नई दिल्ली[अरविंद कुमार द्विवेदी]। दक्षिणी दिल्ली हौजखास में रहने वाले विस्थापित कश्मीरी पंडित एसके भट जम्मू-कश्मीर से अनुच्छेद- 370 हटाए जाने को ऐतिहासिक फैसला बताते हैं। वे कश्मीर हाट ट्रेडर्स एसोसिएशन दिल्ली के चेयरमैन व कश्मीरी विस्थापित संघर्ष समिति के महासचिव हैं। वह कहते हैं कि 30 साल पहले हमारे साथ जो अत्याचार व अन्याय हुआ था, आज उसमें हमें न्याय मिला है। पुलवामा में हमारा आलीशान घर छूट गया। धर्म विशेष के लोगों ने हमारे खेतों पर कब्जा कर लिया। हमारे घरों को जला दिया गया। हमें अपनी जन्मभूमि छोड़नी पड़ी। हमारे ही बागों के सेब अब हमें यहां खरीदने पड़ रहे थे, लेकिन सरकार के इस कदम से हमें बहुत बड़ी राहत मिली है।
उन्होंने कहा कि यह हमारे लिए आजादी की नई सुबह है। तूफान से पहले का सन्नाटा भांपकर छोड़ा था पुलवामा मूलरूप से पुलवामा के रहने वाले एसके भट पिछले करीब 30 साल से दिल्ली में रह रहे हैं। उनके पिता जम्मू-कश्मीर में सरकारी नौकरी में थे। उनके घर में और भी सदस्य सरकारी नौकरी में अच्छे पदों पर थे।
वर्ष- 1989 में एसके भट की उम्र करीब 22-23 साल रही होगी। वह पढ़ाई कर रहे थे। अचानक घाटी का माहौल बिगड़ने लगा। मस्जिदों में नमाज के बाद बैठकें होती थीं, उसके बाद पत्थरबाजी। संपन्न हिंदुओं और खासकर पंडितों को निशाना बनाया जाता था। हमारे घरों पर पर्चे लगाए जाते थे जिनमें हमें घाटी छोड़ने या फिर मौत के लिए तैयार रहने की धमकी दी जाती थी। फिर 1989 के अंत में हमने घाटी छोड़ने का फैसला कर लिया।
हिंदुओं की होती थी रेकी
एसके भट ने बताया कि अलगाववादी हिंदुओं और कश्मीरी पंडितों की रेकी करवाते थे। इसलिए हमारे लिए घाटी छोड़ना भी इतना आसान नहीं था। हमारे परिवार के लोगों ने धीरे-धीरे अलग-अलग घर छोड़ा। पुलवामा से निकलकर जम्मू गए, एक-दो दिन रिश्तेदारों के यहां छुपे, फिर श्रीनगर में कुछ दिन रुके और उसके बाद अलग-अलग दिल्ली के लिए रवाना हुए। अलगाववादियों ने जब देखा कि हम घर में नहीं हैं तो हमारे घर में आग लगा दी। हमारे खेतों पर कब्जा कर लिया।
अब उम्मीद है कि हमें अपना घर, खेत मिल सकेगा। हमारे बच्चों का भविष्य उज्जवल बन सकेगा। घाटी में विकास होगा और यह एक आकर्षक पर्यटन स्थल के रूप में विकसित हो सकेगा। हमारी आवाज किसी ने नहीं उठाई एसके भट कहते हैं कि कश्मीरी पंडित बिखर चुके थे। घाटी में धर्म विशेष के लोगों का शासन हो गया था। इसलिए हमारी आवाज उठाने व हमारी बात सुनने वाला कोई नहीं था। लेकिन, प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी ने हमारे हक की बात की।
विस्थापित कश्मीरी नागरिक अरुण कौल ने कहा कि मैं पिछले 15 साल से दिल्ली में रह रहा हूं। घाटी के तनावपूर्ण हालात के कारण हमें घाटी छोड़नी थी। वहां हमारे घर, खेत पर कब्जा कर लिया गया। बहुत से लोगों को मौत के घाट उतार दिया गया। अब हमारे साथ न्याय हुआ है। सरकार का यह सराहनीय व साहसिक कदम है।
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