Kargil Vijay Diwas 2019: 22 साल की उम्र में इस योद्धा ने दुश्मन के नापाक इरादों को कर दिया था नेस्तनाबूद
kargil vijay diwas 2019 द्रास सेक्टर में जिस चोटी पर विजयंत शहीद हुए वहां उनके साथियों ने मंदिर बनाया। कर्नल थापर लगभग हर साल इस मंदिर में जाते हैं।
नई दिल्ली [सुधीर कुमार पांडेय]। हौसले बुलंद, जज्बा फौलादी, नाम भी टैंकर के नाम पर रखा गया था। हम बात कर रहे हैं अमर बलिदानी कैप्टन विजयंत थापर की। जिन्होंने कारगिल युद्ध में अदम्य साहस का प्रदर्शन किया था। कारगिल युद्ध में सेना को पहली जीत दिलाने वाले भारत माता के इस अमर सपूत के अंदर कुछ कर गुजरने की चाहत थी। निश्चय इतना दृढ़ था कि महज 22 साल की उम्र में चांदनी रात में भी नॉल पहाड़ी पर दुश्मनों के नापाक इरादों को नेस्तनाबूद कर तिरंगा फहरा दिया। भारत सरकार ने इस अमर बलिदानी को वीर चक्र से अलंकृत किया।
विजयंत के पिता कर्नल (रिटायर्ड) वीएन थापर बताते हैं कि कारगिल युद्ध शुरू होने से दो महीने पहले वह सेना से सेवानिवृत्त हुए थे। दो महीने वह और उनके बेटे विजयंत एक साथ सेना में अफसर के पद पर थे। विजयंत उस समय लेफ्टिनेंट थे। द्रास सेक्टर में जहां, जिस चोटी पर विजयंत शहीद हुए वहां उनके साथियों ने मंदिर बनाया। कर्नल थापर लगभग हर साल इस मंदिर में जाते हैं। जहां वॉर मेमोरियल बना है, वहां के हेलीपैड का नाम विजयंत हेलीपैड रखा गया।
नोएडा सेक्टर-29 में रह रहे कर्नल थापर कहते हैं कि जब विजयंत लड़ाई के आखिरी पड़ाव में नॉल पहाड़ी पर गए तो वहां बहुत ज्यादा बमबारी हो रही थी। 120 तोपें भारत की ओर से गरज रहीं थीं तो इतनी ही तोपें पाकिस्तान की तरफ से भी। एक छोटे से क्षेत्र में इतनी ज्यादा गोलाबारी तो दुनिया में किसी युद्ध में नहीं हुई होगी। तोप का एक गोला विजयंत की टुकड़ी पर गिरा। कुछ जांबाज शहीद हुए।
विजयंत अपनी टुकड़ी और घायलों को लेकर सुरक्षित जगह पर पहुंचे। 19 लोगों के साथ तोलोलिंग नाले की तरफ से दुश्मनों के पीछे गए और फिर उनके बीच से निकलकर अपनी कंपनी से मिले। इसी दौरान सूबेदार मानसिंह को एक गोले का हिस्सा लगा। वह गंभीर रूप से घायल हो गए। इससे नॉल पहाड़ी पर नेतृत्व का पूरा जिम्मा विजयंत के कंधों पर आ गया। उन्होंने यह जिम्मेदारी अच्छे से निभाई।
...लेकिन कदम बढ़ते जा रहे थे
विजयंत ने 28-29 जून 1999 की दरम्यानी रात में नॉल पहाड़ी पर तिरंगा लहराया। इसके बाद थोड़ा आगे बढ़े तो दुश्मनों की मशीन गनें गोलियां उगल रहीं थीं, लेकिन विजयंत के कदम आगे ही बढ़ते जा रहे थे। इसी दौरान एक गोली विजयंत के माथे पर लगीं और वह हवलदार तिलक सिंह की बांहों में गिरकर शहीद हुए।
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