इस घर के सदस्यों को पांच बार मिल चुका है नेशनल अवार्ड, जानें क्या है खास
शिल्पगुरु का पूरा कुनबा ही कोई न कोई अवार्ड लिए हुए है। प्रेमजी के चार बेटे और उनके एक पोते को नेशनल अवार्ड मिल चुका है।
फरीदाबाद [अनिल बेताब]। सूरजकुंड अंतरराष्ट्रीय हस्तशिल्प मेले में यूं तो कई हस्तशिल्पी आए हैं, जिनके नाम कई अवार्ड भी हैं, पर गुजरात के भुज से आए शिल्पगुरु प्रेमजी के कुनबे की उपलब्धियों पर तो कोई भी रश्क करे। उनकी तो शान ही निराली है। शिल्पगुरु का पूरा कुनबा ही कोई न कोई अवार्ड लिए हुए है। प्रेमजी के चार बेटे और उनके एक पोते को नेशनल अवार्ड मिल चुका है।
प्रेमजी का बेटा वनकर देवजी, इनकी पत्नी बाइयां सूरजकुंड मेले में अपनी हैंडलूम यूनिट की कॉटन की साड़ी और वुलन शाल लेकर आए हैं। वनकर देवजी को 2016 में वस्त्र मंत्रालय की ओर से जयपुर में संत कबीर पुरस्कार मिल चुका है। इनकी पत्नी को 2006 में तत्कालीन राष्ट्रपति प्रतिभा देवी पाटिल ने विज्ञान भवन, नई दिल्ली में नेशनल अवार्ड प्रदान किया था।
वनकर देवजी को इससे पहले 1997 में भी नेशनल अवार्ड मिल चुका है। ऐसे ही वनकर देवजी के बेटे हंसराज को 2007 में और इनकी कंकू बहन को 2014 में नेशनल अवार्ड मिला है। वनकर देवजी कहते हैं कि वह 20 वर्षों से सूरजकुंड मेले मे आ रहे है। यहां गुजराती साड़ी और शाल की बड़ी मांग रहती है। मेले में बड़ी संख्या में आने वाली विदेशी महिलाएं भी गुजराती शाल और साड़ी को पसंद करती हैं।
शाल की खूबसूरती के कायल हैं विदेशी भी संत कबीर अवार्ड विजेता वनकर देवजी कहते हैं कि उनके द्वारा तैयार शाल और साड़ी कनाडा, जापान और अमेरिका तक एक्सपोर्ट होते हैं। विशेषता के बारे वनकर देवजी ने बताया कि ताना-बाना से शाल तैयार करने में खूबसूरती और डिजाइन का खास ध्यान रखा जाता है। शाल में कोई डिजाइन देना होता है, तो ताना-बाना से अतिरिक्त धागे को प्रयोग में लाया जाता है।
शाल पर अलग से एंब्राइडरी नहीं की जाती है। ताना-बाना में ही डिजाइन के धागे को इस तरह से मिलाया जाता है कि खूबसूरती उभर कर नजर आए। कम ही बुनकर ऐसा काम करते हैं। इस काम में समय जरूर ज्यादा लगता है, लेकिन विशेषता और मजबूती कायम रहती है।