दिल्ली के अस्पतालों में आक्सीजन प्लांट व आइसीयू बेड तो बढ़ाए मगर इलाज के लिए डाक्टर नहीं, पढ़िए पूरी स्टोरी
कोरोना की तीसरी लहर की आशंका के मद्देनजर अस्पतालों में आक्सीजन प्लांट व आइसीयू बेड बढ़ाए जा रहे हैं लेकिन डाक्टरों के स्थायी नियुक्ति पर अब तक खास ध्यान नहीं दिया गया है। इस वजह से दिल्ली के बड़े सरकारी अस्पताल डाक्टरों की कमी से जूझ रहे हैं।
नई दिल्ली, राज्य ब्यूरो। कोरोना की तीसरी लहर की आशंका के मद्देनजर अस्पतालों में आक्सीजन प्लांट व आइसीयू बेड बढ़ाए जा रहे हैं लेकिन डाक्टरों के स्थायी नियुक्ति पर अब तक खास ध्यान नहीं दिया गया है। इस वजह से दिल्ली के बड़े सरकारी अस्पताल डाक्टरों की कमी से जूझ रहे हैं।
लिहाजा, केंद्र सरकार के आरएमएल छह माह व सफदरजंग अस्पताल ने एक साल के अनुबंध पर सहायक प्रोफेसर जैसे अहम पद पर डाक्टरों की नियुक्ति प्रक्रिया शुरू की है। जिस पर कुछ डाक्टर सवाल भी खड़े कर रहे हैं। उनका कहना है कि अस्थायी तौर पर सहायक प्रोफेसर के पद पर डाक्टरों की नियुक्ति मरीज व मेडिकल के छात्र दोनों के लिए नुकसानदायक है।
दरअसल, 29 सितंबर को आरएमएल अस्पताल ने विभिन्न विभागों के लिए 45 सहायक प्रोफेसरों की अनुबंध पर नियुक्ति प्रक्रिया शुरू की है। इसके तहत मेडिसिन विभाग में 15 व पीडियाट्रिक विभाग में 15 डाक्टर नियुक्त किए जाने हैं। प्रतिमाह 97 हजार के वेतन पर इन डाक्टरों की नियुक्ति छह माह के लिए होगी। इसके बाद अब सफदरजंग अस्पताल ने
एक साल के अनुबंध पर 117 सहायक प्रोफेसर नियुक्त करने की प्रक्रिया शुरू की। नियुक्ति होने के बाद डाक्टरों को 95 हजार वेतन देने की बात कही गई है।
एम्स के सहायक प्रोफेसर डा. विजय गुर्जर ने ट्वीट कर इसे डाक्टरों का शोषण बताया है। उन्होंने अपने ट्वीट में कहा है कि अनुबंध पर नियुक्त डाक्टरों को इलाज की सुविधा तक नहीं दी जाती। वेतन भी जूनियर रेजिडेंट डाक्टर से कम होता है। उन्होंने कहा कि जूनियर रेजिडेंट डाक्टर का वेतन एक लाख 10 हजार रुपये है। एम्स में अनुबंध पर नियुक्त सहायक प्रोफेसर को एक लाख 42 हजार रुपये वेतन मिलता है। अन्य अस्पतालों में भी अनुबंध पर नियुक्त सहायक प्रोफेसरों को कम से कम एम्स के बराबर वेतन मिलना चाहिए। कई बीमारियों का फालोअप इलाज लंबे समय तक चलता है।
जबकि छह माह व एक साल का अनुबंध खत्म होने जाने पर डाक्टर बदल जाते हैं। इससे मरीजों को फालोअप के लिए किसी दूसरे डाक्टर से दिखाना पड़ता है। इससे इलाज की प्रक्रिया प्रभावित होती है। बेहतर चिकित्सा सुविधा के लिए जरूरी है कि डाक्टर स्थायी तौर पर नियुक्त किए जाएं।