Delhi Landfill Sites: दिल्ली-NCR से कैसे खत्म होंगे 'कूड़े के पहाड़', कचरे में सुलग रहे नियम
कूड़े में लगी आग से राजनीति सुलगने लगती है। लैंडफिल साइट की स्थिति ये है जितने कचरे का निस्तारण किया जाता है उतना ही उसी दिन लाकर यहां उड़ेल दिया जाता है। कूड़े के ये पहाड़ राजधानी को कुरूप बना रहे हैं। हाल ही में दिल्ली की गाजीपुर और फिर गुरुग्राम में बंधवाड़ी लैंडफिल साइट पर आग लगी। आग से दावों का धुआं ही निकल रहा था।
जागरण संवाददाता, नई दिल्ली। कूड़े के पहाड़, सिर्फ राष्ट्रीय राजधानी क्षेत्र में ही दिखते हैं। इनका आकार घटने लगता है तो पक्ष-विपक्ष और उपराज्यपाल सभी इसका श्रेय लेने की होड़ में कतार में होते हैं। अलग-अलग लैंडफिल साइट की हाइट कम होने की माप बताई जाती है। लेकिन जैसे ही वहां आग लगने की घटना होती हैं तो आरोप-प्रत्यारोप का दौर शुरू हो जाता है।
दिल्ली में कूड़े के पहाड़ों को खत्म करना नगर निगम और फिर दिल्ली सरकार का दायित्व है, लेकिन जिन इलाकों में ये कूड़े के पहाड़ बने हैं, उन क्षेत्रों के सांसदों की भी जवाबदेही है। ऐसे में सवाल यही उठता है कि इस मुद्दे पर चर्चा करने और वादे-दावे करने से आगे निस्तारण के ठोस परिणाम क्यों नहीं किए जा रहे?
राजधानी के प्रवेश द्वार पर ऐसे कूड़े के पहाड़, बदबू, गंदगी फैलाते पक्षी जैसे हालात से इन जिम्मेदार लोगों को कष्ट क्यों नहीं होता? कैसे सफल हो सकती है निस्तारण नीति इसी की पड़ताल करना हमारा आज का मुद्दा है:
दिल्ली को कुरूप बना रहे 'कूड़े के पहाड़'
दिल्ली में कूड़े के पहाड़ राजधानी को कुरूप तो बना ही रहे हैं, बॉर्डर पर प्रवेश द्वार गंदगी का प्रतीक बन चुके हैं। कूड़े के इन पहाड़ों पर कई पर आग लगती है फिर उस पर राजनीति सुलगती है कुछ दिन बाद शांत हो जाती है।
गाजीपुर, ओखला, भलस्वा तीनों लैंडफिल साइट यानी कूड़े के पहाड़ों को कम करने के प्रयास तो हो रहे हैं, लेकिन इनकी गति बिलकुल वैसे ही है उसी में कम कर रहे हैं और उससे अधिक मात्रा में कूड़ा रोज उसी के ऊपर डाल रहे हैं।
दिल्ली के लिए पहाड़ सा संकट खत्म होने का नाम नहीं ले रहा है। आंकड़ों में दिल्ली और आसपास एनसीआर में लैंडफिल साइट की स्थिति को आंकड़ों में समझते हैं।
गाजीपुर लैंडफिल साइट
क्षेत्रफल : 70 एकड़
ऊंचाई ( पहले) : 65 मीटर
ऊंचाई (वर्तमान) : 53 मीटर
ओखला लैंडफिल
क्षेत्रफल : 40 एकड़
ऊंचाई : 62 मीटर (पहले )
ऊंचाई (वर्तमान) 34 मीटर
भलस्वा लैंडफिल
क्षेत्रफल : 70 एकड़
ऊंचाई (पहले : 65 मीटर
ऊंचाई (वर्तमान):50 मीटर
कैसे खत्म होंगे कूड़े के पहाड़?
- ट्रामलिंग मशीनों की संख्या बढ़ानी होगी।
- साइट पर निकले इनर्ट को उठाकर तुरंत दूसरे स्थानों पर डाला जाना चाहिए
- गीला-सूखा कूड़े का निस्तारण स्रोत पर ही हो।
- मैटेरियल रिकवरी सेंटरों की संख्या बढ़ाई जाए।
- वेस्ट टू एनर्जी प्लांटों की संख्या बढ़े।
- इंजीनियरिंग लैंडफिल साइट की स्थापना हो।
गुरुग्राम लैंडफिल साइट
कूड़े के पहाड़ : 2
कितना कचरा :47 लाख मीट्रिक टन
निस्तारित हुआ : 23.51 लाख मीट्रिक
कितना बाकी : 23.49 लाख मीट्रिक टन
नारनौल
कूड़े के पहाड़ : 1
कितना कचरा : 1.88 लाख मीट्रिक टन
निस्तारित किया : 1.85 लाख मीट्रिक टन
कितना बाकी : 0.03 लाख मीट्रिक टन
नूंह
कूड़े के पहाड़ :1
कितना कचरा :0.16 लाख मीट्रिक टन
निस्तारित किया : 0 लाख मीट्रिक
कितना बाकी : 0.16 लाख मीट्रिक टन
सोनीपत
कूड़े के पहाड़ :1
कितना कचरा : 3 लाख मीट्रिक टन
निस्तारित किया : शून्य
कितना बाकी : 3 लाख मीट्रिक टन
गाजियाबाद
कूड़े के पहाड़ : 1
कितना कचरा : 2.71 लाख मीट्रिक टन
निस्तारित किया : शून्य
कितना बाकी : 2.71 लाख मीट्रिक टन
गौतमबुद्ध नगर
कूड़े के पहाड़ : 1
कितना कचरा : 600 मीट्रिक टन
निस्तारित किया : 50%
कितना बाकी : 300 मीट्रिक टन
कब-कब लगी आग?
- जून 2023: गाजीपुर लैंडफिल साइट पर लगी थी आग।
- मार्च 2022: गाजीपुर लैंडफिल साइट पर लगी आग को तीन दिन में बुझाया गया।
- अप्रैल 2022 : एक माह में तीन बार गाजीपुर लैंडफिल साइट पर लगी आग।
- अप्रैल 2021 : गाजीपुर लैंडफिल साइट पर लग गई थी आग।
- नवंबर 2020 : गाजीपुर लैंडफिल साइट पर भीषण आग लग गई थी। पांच दिन में आग बुझ सकी थी।
- मार्च 2019 : गाजीपुर लैंडफिल साइट पर आग लग गई थी, चार घंटे की मशक्कत के बाद आग पर काबू पाया जा सका था।
क्या दिल्ली में बने कूड़े के पहाड़ों को खत्म करने के लिए किए जा रहे सरकारी प्रयासों से आप संतुष्ट हैं?
हां : 2%
नहीं : 98%
क्या आप मानते हैं कि दिल्ली के कूड़े के पहाड़ों के खत्म न होने में सरकारी इच्छाशक्ति का अभाव जिम्मेदार है?
हां : 94%
नहीं : 6%
घर से करनी होगी कूड़े के पहाड़ खत्म करने की शुरुआत
कूड़े के पहाड़ खत्म करने को प्रशासन तो अपना काम करेगा ही इसके लिए हर नागरिक को भी अपने घर से ही शुरुआत करनी होगी। प्रशासन की ओर से किए जा रहे काम में मशीनरी लगी है। जो वर्षों से कूड़ा पड़ा है लैंडफिल साइटों पर उसे खत्म करना सरकार की जिम्मेदारी है।
2016 के ठोस कचरा प्रबंधन उप नियमों में स्पष्ट है कि कूड़ा निस्तारण कैसे होना है। इसमें सरकार से लेकर नागरिकों तक की जिम्मेदारी भी तय है। जिसमें नागरिकों को स्रोत पर ही कूड़ा प्रबंधन करना है।
यह कूड़े के पहाड़ जो बने हैं यह बाहर से नहीं आए हैं यह हम लोगों की लापरवाही का कचरा है, इसे हमने ही जमा किया है। अगर, हम अब भी न चेते और कचरा प्रबंधन नहीं किया तो यह इन कूड़े के पहाड़ों को कभी नहीं खत्म किया जा सकता, क्योंकि जब रोज नया कचरा सैनेटरी लैंडफिल साइटों पर पहुंचेगा तो फिर पुराना कितना भी कचरा हटाते जाओ वह कभी साफ नहीं होगा।
यह कूड़े के पहाड़ तेजी से तभी खत्म हो सकेंगे और नए कूड़े के पहाड़ नहीं बनेंगे जब दोनों मिलकर जिम्मेदारी का निर्वहन करेंगे। यह जिम्मेदारी हम एक जिम्मेदार नागरिक बनकर निभा सकते हैं। अगर नहीं निभाई तो जिस तरह से वर्षों से जो कचरा इन लैंडफिल साइटों पर पड़ा है वह पर्यावरण के लिए तो हानिकारक है ही साथ ही मानव जीवन के लिए भी बहुत खतरनाक है।
इन लैंडफिल साइटों से मीथैन गैस निकलती है जो पर्यावरण के साथ मानव जीवन के लिए भी हानिकारक है। यह स्थिति भयंकर न हो और पर्यावरण भी स्वच्छ हो इसके लिए जरूरी है कि हम अपने घर से कूड़े के पहाड़ों को खत्म करने में भागीदार बनें। इसके लिए जरूरी है कि हम प्रतिदिन गीला व सूखा कूड़ा अलग-अलग करके दें। सूखे कूड़े को पुन: उपयोग में लाया जा सकेगा जबकि गीले कूड़े की खाद बनाई जा सकेगी।
कूड़े के पहाड़ों को खत्म करने में एक और जो सबसे बड़ी समस्या है वह पालीथिन भी है। पालीथिन जो कि गलती नहीं है वह कूड़े के पहाड़ों की ऊंचाई बढ़ाने में सहायक होती है। इसे रोकने के लिए भी हमें घर से थैला लेकर निकलने की आदत डालनी होगी।
जब हम 300 ग्राम का मोबाइल जेब में या पर्स में रख सकते हैं तो 30 ग्राम का एक थैला भी साथ रख सकते हैं। जिससे हम कभी सब्जी लेते या जरूरत की अन्य वस्तु की अनियोजित तरीके से खरीददारी करते समय पॉलीथिन का उपयोग करने से बच सकते हैं।
एक नागरिक अगर, थैला लेकर चलने की आदत डाल ले तो सालभर में 500 पालीथिन का उपयोग कम हो सकता है। हम देखते हैं कि लोगों की आदत ऐसी है कि एक चिप्स का पैकेट जब तक हम हाथ में रखते हैं तब तक की वह खत्म न हो जाए लेकिन, जैसे ही चिप्स खत्म होते हैं हम उसे कूड़ेदान की बजाय इधर-उधर फेंक देते हैं, जबकि ऐसा नहीं होना चाहिए। हमें इसे कूड़ेदान में डालना चाहिए।
पर्यावरण को सुरक्षित रखना है तो गीला-सूखा कूड़ा अलग-अलग करने के साथ ही प्रतिबंधित सिंगल यूज प्लास्टिक का उपयोग भी नहीं करना चाहिए। क्योंकि सिंगल यूज प्लास्टिक पर्यावरण के लिए खतरा है। यह प्लास्टिक धीरे-धीरे हमारे शरीर में विभिन्न जरियों से जा रहा है जो कि स्वास्थ्य के लिए हानिकारक है। इटली के एक अध्ययन में यह बात भी सामने आई है कि मां के दूध में भी प्लास्टिक के सूक्ष्म कण मिले हैं।
ऐसे में यह बहुत चिंताजनक है। पशुओं में इनसे कैंसर, श्वास, त्वचा संबंधी रोग भी होते हैं। मनुष्य में इसके असर पर अभी शोध चल रहा है , पर हम अंदाजा लगा सकते हैं कि भविष्य के लिए खतरे की घंटी है। यह जानकारी जागरण संवाददाता से दिल्ली नगर निगम की स्वच्छ भारत अभियान ब्रांड अंबेसडर रूबी मखीजा से बातचीत पर आधारित है।
नया कचरा लैंडफिल साइट पर जाने से रोकना होगा
गाजीपुर लैंडफिल साइट पर 21 अप्रैल की शाम को फिर आग लग गई। दिल्ली अग्निशमन विभाग के अनुसार लैंडफिल में डलने वाले कचरे से उत्पन्न गैस के कारण आग लगी है। अक्सर भलस्वा लैंडफिल व गाज़ीपुर लैंडफिल साइट आग की लपटों में घिर जाती है जिससे स्थानीय दिल्लीवासियों को स्वास्थ संबंधी समस्याओं से गुजरना पड़ता है।
कूड़ा निस्तारण को लेकर होने वाली राजनीति, दायित्व नहीं समझने और आपसी तालमेल की कमी के कारण समस्या बढ़ रही है। राजधानी में कूड़े के पहाड़ों को खत्म करने का मुख्य दायित्व नगर निगम का है लेकिन हस्तक्षेप उपराज्यपाल, दिल्ली सरकार, एनजीटी, सांसद सभी का रहता है। जिन इलाकों में कूड़े के पहाड़ बने हैं, उन क्षेत्रों के सांसदों की सीधी जवाबदेही नहीं है परंतु उन्हें इससे मुक्त नहीं किया जा सकता है।
भाजपा नेता गाजीपुर लैंडफिल साइट पर कूड़े का पहाड़ कम होने का श्रेय सांसद गौतम गंभीर को देते रहे हैं। वहीं, अक्टूबर, 2023 में भाजपा यह आरोप लगाती है कि नगर निगम में आम आदमी पार्टी का शासन आने के बाद से वहां कूड़े का पहाड़ कम करने का काम बंद है। इस तरह के दावे व आरोप सिर्फ राजनीति है। दायित्व से बचने का एक तरीका है।
दिल्ली के उपराज्यपाल ने 23 मई, 2023 को लैंडफिल साइट का दौरा कर दावा किया था कि तीन माह में 12.50 लाख टन कचरे का निस्तारण किया गया और सात माह में गाजीपुर, ओखला और भलस्वा में कूड़े के टीलों की ऊंचाई 15 मीटर कम हुई है। दिल्ली के मुख्यमंत्री भी अक्टूबर, 2023 में कूड़े के पहाड़ों का निरीक्षण करने गए व ऊंचाई कम होने का श्रेय स्वयं को दिया था।
कूड़े के पहाड़ की ऊंचाई कम करने में सफलता मिलती है तो उपराज्यपाल, दिल्ली सरकार, दिल्ली नगर निगम खुद को श्रेय देना नहीं भूलते। इस काम में विफल रहने और दुर्घटना होने पर कोई भी अपनी जिम्मेदारी स्वीकार नहीं करते हैं।
एक-दूसरे को इसके लिए दोषी ठहराते हैं। जब कोई दुर्घटना होती है तो उपराज्यपाल, दिल्ली सरकार, दिल्ली नगर निगम, एनजीटी जांच बैठाते हैं। और रिपोर्ट आने पर भी निवासियों की सुरक्षा, दुर्घटनाओं पर अंकुश लगाने व समस्या का निदान के निमित्त न तो प्रभावी कदम उठाए जाते हैं और न ही जिम्मेदार अधिकारियों के विरुद्ध कार्रवाई की जाती है।
अक्टूबर 2022 में एनजीटी ने दिल्ली की तीन लैंडफिल साइटों पर कूड़ा निस्तारण न कर पाने पर दिल्ली सरकार पर 900 करोड़ रुपये का जुर्माना लगाया था जबकि बतौर नोडल एजेंसी नगर निगम की जवाबदेही थी। दिल्ली सरकार भी निगमों पर जुर्माना लगाकर अपने कर्तव्य की इतिश्री कर लेता है। प्रश्न यह उठता है कि क्या जुर्माना वसूलने से कूड़े के पहाड़ों व आग की घटनाओं से प्रभावित होने वाले दिल्लीवासियों को सुरक्षा व राहत मिल जाएगी?
तीनों लैंडफिल पर पहले से पड़े कचरे के निष्पादन के लिए 30-32 ट्रामल मशीन लगाई गईं, प्रतिदिन 11000 टन से अधिक नया कूड़ा दिल्ली की तीनों लैंडफिल साइट पर डलता है। कहा गया था कि अगस्त, 2020 के उपरांत कोई भी अनुपचारित कचरा तीनों लैंडफिल साइट पर नहीं डाला जाएगा जिसका पालन नहीं हुआ।
अभी भी अनुपचारित कचरा तीनों लैंडफिल पर डाला जा रहा है। इसके लिए वैकल्पिक स्थलों का प्रविधान डीडीए को करना था। उपराज्यपाल डीडीए के अध्यक्ष हैं। अदालत ने भी इसके लिए सात जगह चिह्नित कर डीडीए से भूमि प्रदान करने के लिए कहा था। निगम को डीडीए से एक भी भूखंड नहीं मिल सका।
कूड़े के पहाड़ों की ऊंचाई समाप्त करने का लक्ष्य भलस्वा व ओखला लैंडफिल के लिए दिसंबर, 2023 तथा गाजीपुर लैंडफिल के लिए दिसंबर, 2024 निर्धारित किया गया। यह लक्ष्य प्राप्त नहीं हो सका और समस्या बनी हुई है।
ट्रामल मशीनों से निकलने वाली मिट्टी (इनर्ट) के निष्पादन के लिए उचित स्थल का अब तक अभाव है। इससे एक नया टीला खड़ा होने की संभावना है। नियमित रूप से नया कूड़ा लैंडफिल साइट पर डाले जाने तक कूड़े का पहाड़ समाप्त नहीं हो सकता, सिर्फ इसकी ऊंचाई कम हो सकती है।
समस्या के समाधान के लिए लैंडफिल साइट से पुराने कचरे का निस्तारण कर वैज्ञानिक रूप से नए कचरे का 100 प्रतिशत प्रबंधन व निष्पादन करना होगा। गीला-सूखा कचरा के स्रोत पृथक्करण पर जोर देना होगा। कचरा का उत्पदान कम करें, पुन: उपयोग करें व पुनर्चक्रण के माध्यम से कचरा मुक्त शहर की ओर अग्रसर होना होगा।
निकायों की बहुलता व ‘अपनी-अपनी ढपली, अपना-अपना राग’ की मानसिकता इसमें अवरोधक है। यह जानकारी दिल्ली नगर निगम निर्माण समिति के पूर्व अध्यक्ष जगदीश ममगांई से जागरण संवाददाता संतोष कुमार सिंह से बातचीत पर आधारित है।