पढ़िए- स्वीडन की स्कूली छात्रा ने ऐसा क्या किया, जो बन गई करोड़ों के लिए मिसाल
अगस्त 2018 को स्वीडन से शुरू हुई ‘ग्लोबल क्लाइमेट स्ट्राइक’ दुनियाभर में फैल गई है। स्वीडन की 15 साल की स्कूली बच्ची ग्रेटा थनबर्ग इसकी प्रणोता है।
नई दिल्ली [अतुल पटैरिया]। जल, वायु, अग्नि, पृथ्वी और आकाश... अस्तित्व का यह ताना-बाना बिखरने को है। धरती तवे सी तप रही है। पानी के लिए हाहाकार है। आसमान में धुंध है तो हवाओं में जहर समा गया है। विकास की अंधी दौड़ ऐसी कि अस्तित्व पर आ बनी है। कहने वाले कहते रहे कि क्लाइमेट चेंज दुनिया को ले डूबेगा, लेकिन सुनने वालों ने इसे जुमला समझा। दरअसल, लालच में अंधी दुनिया ‘सुई की नोक जितना’ भी छोड़ने को तैयार नहीं है। इससे भी अधिक चिंतनीय यह कि दुनिया ने ‘अस्तित्व को बचाने की जिम्मेदारी’ बच्चों पर छोड़ दी है। यदि ऐसा नहीं है, तो दुनियाभर के बच्चों को स्ट्राइक (हड़ताल) करने की आवश्यकता क्यों पड़ी?
प्रतिष्ठित अंतरराष्ट्रीय पत्रिका ‘नेचर’ में प्रकाशित ताजा अध्ययन ने इस बात को लेकर चिंता जताई है। सोशियो इनवायरोमेंटल साइकोलॉजिस्ट डेरिक इवेन्सेन ने लिखा है- पर्यावरण संरक्षण को लेकर स्वीडन की 15 साल की एक बच्ची द्वारा गत वर्ष अगस्त में छेड़ा गया अभियान- ‘फ्राईडेज फॉर फ्यूचर’ इसका ज्वलंत उदाहरण है, लेकिन दुनिया के उन लोगों को जो पर्यावरणीय खतरे के लिए जिम्मेदार हैं, जब तक नैतिक जिम्मेदारी का अहसास नहीं होगा, चीजें नहीं सुधरेंगी। ये बच्चे अब विज्ञान के बूते इस चुनौती से निबटने की बाट जोह रहे हैं, लेकिन उन्हें यह नहीं पता है कि इसमें विज्ञान की नहीं बल्कि निर्णयकर्ताओं की भूमिका अहम है, जो केवल और केवल आर्थिक आधार पर निर्णय लेते हैं न कि नैतिकता के तकाजे पर..।
अगस्त 2018 को स्वीडन से शुरू हुई ‘ग्लोबल क्लाइमेट स्ट्राइक’ दुनियाभर में फैल गई है। स्वीडन की 15 साल की स्कूली बच्ची ग्रेटा थनबर्ग इसकी प्रणोता है। पर्यावरण को बचाने की मांग को लेकर ग्रेटा अपने स्कूली सहपाठियों को साथ लेकर स्वीडन की संसद के सामने हड़ताल पर बैठ गई थीं। वह शुक्रवार का दिन था और तबसे ग्रेटा हर शुक्रवार को स्कूल से छुट्टी लेकर संसद के सामने हड़ताल पर बैठती हैं। देखते ही देखते इस घटना ने ‘फ्राइडेज फॉर फ्यूचर’ आंदोलन का रूप ले लिया है। हर शुक्रवार को दुनियाभर के बच्चे अपने शहर में आसपास मौजूद सरकारी कार्यालय के सामने क्लाइमेट स्ट्राइक के रूप में प्रदर्शन करते हैं। ग्रेटा के प्रभाव का आकलन इस बात से किया जा सकता है कि उन्हें इसी 14 मार्च को क्लाइमेट एक्टिविज्म के लिए नोबेल पुरस्कार के लिए नामित कर दिया गया है।
डेरेक कह रहे हैं, नई दुनिया की परिकल्पना को संभव बनाने के लिए हम अर्थशास्त्रियों के इस सुझाव का इंतजार नहीं कर सकते हैं कि क्लाइमेट एक्शन या जलवायु संरक्षण में निवेश करना एक अच्छा सौदा होगा। हमें यह कल्पना करने के लिए नैतिकता और रचनात्मकता की आवश्यकता है कि हम अपनी दुनिया का भविष्य किस तरह सहेजें। इसके लिए साहसिक नेतृत्व की दरकार है..। ये बच्चे अपने स्तर पर अपनी भूमिका निभा रहे हैं, लेकिन बड़ों को अब अपनी भूमिका के बारे में पूरी ईमानदारी से सोचना चाहिए, नहीं तो देर हो जाएगी..।
131 देशों में पहुंची क्लाइमेट स्ट्राइक...
बहरहाल, ग्रेटा अपने मिशन पर डटी हुई हैं। कहती हैं, विश्व स्वास्थ्य संगठन का अनुमान है कि दुनिया के 15 वर्ष से कम आयु के लगभग 93 प्रतिशत बच्चे जिस हवा में सांस लेते हैं, वह इतनी अधिक प्रदूषित है कि उनके स्वास्थ्य और विकास को खतरे में डालती है। 2016 में प्रदूषित हवा के कारण श्वसन संक्रमण से छह लाख बच्चों की मृत्यु हुई।
लिहाजा, तेजी से दुनिया भर के बच्चे हमारे इस आंदोलन से जुड़ रहे हैं। ‘फ्राइडेज फॉर फ्यूचर’ आंदोलन का दायरा 131 देशों में फैल चुका है। हम सभी बच्चे एक-दूसरे से जुड़े हुए हैं और हमारे बीच सूचनाओं का आदान प्रदान सोशलमीडिया के विभिन्न माध्यमों के जरिये होता है। शुक्रवार, 24 मई को हुई ग्लोबल क्लाइमेट स्ट्राइक का डाटा साझा करते हुए ग्रेटा बताती हैं कि उस दिन 131 देशों के 1851 शहरों में एक लाख 97 हजार बच्चों ने स्ट्राइक की। वेबसाइट, ट्विटर, फेसबुक, इंस्टाग्राम आदि माध्यमों के जरिये ‘फ्राइडेज फॉर फ्यूचर’ आंदोलन से जुड़ने वाले स्कूली बच्चों को कुछ साधारण निर्देश व सुझाव दिए जाते हैं, जिसके बाद शुक्रवार को बच्चे अपने नजदीकी सरकारी कार्यालयों पर जमा होकर क्लाइमेट स्ट्राइक के रूप में प्रदर्शन करते हैं।
जो सुनने को तैयार हैं, वे आगे आएं...
ग्रेटा भी अपने सहपाठियों संग हर शुक्रवार को स्वीडिश संसद के सामने क्लाइमेट स्ट्राइक कर अपनी मांगे दोहराती हैं। कहती हैं कि हम लोगों से वही बात कह रहे हैं जिसे लोग अब सुनने और समझने को तैयार हैं। हम पर्यावरणीय खतरों के समाधन का आग्रह कर रहे हैं। हम मौजूदा वैश्विक प्रणाली को फिर से व्यवस्थित करने की अपील कर रहे हैं। संतुलित विकास और सर्वकल्याणकारी अर्थव्यवस्था के व्यापक क्रार्यान्वयन की मांग हम अपनी-अपनी सरकारों, राजनेताओं, उद्योगपतियों, वैज्ञानिकों और उन सभी से कर रहे हैं, जो हमारे भविष्य को बचा सकते हैं।
भारत के छोटे शहरों तक पहुंच रहा आंदोलन...
भारत की बात पर ग्रेटा कहती हैं कि वाराणसी, लखनऊ, नोएडा, गाजियाबाद, लखीमपुर, भदोही और गुरुग्राम, चंडीगढ़, देहरादून, पुणो, बेंगलुरु जैसे छोटे-बड़े शहरों से लेकर दिल्ली, मुंबई, चेन्नई जैसे महानगरों तक, भारत के 91 शहरों में शुक्रवार को अनेक स्कूली बच्चे क्लाइमेट स्ट्राइक कर रहे हैं। स्कूल और शिक्षक भी इसमें सहयोग कर रहे हैं। शुक्रवार को क्लाइमेट स्ट्राइक में शामिल दिल्ली की एक स्कूली छात्रा ने कहा, हमारे भविष्य को बड़ी कंपनियां अपने मुनाफे के लिए बर्बाद नहीं कर सकती हैं। उन्हें ऐसा क्रूर कारोबार नहीं करना चाहिए। देश में घातक गैसों का उत्सर्जन तेजी से बढ़ रहा है, जिससे यह दुनिया में तीसरा सबसे बड़ा ग्रीन हाउस गैस उत्सर्जक है। लिहाजा, हम तब तक चलते रहेंगे, जब तक कि बदलाव नहीं होगा। राजनीतिक दलों को अब इस तथ्य की अनदेखी करने की स्वतंत्रता नहीं है कि जलवायु परिवर्तन हमारे भविष्य को बर्बाद कर रहा है..।
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