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अरविंद केजरीवाल के लिए आसान नहीं होगा जेल से ‘सरकार’ चलाना... सियासी संकट से कैसे निपटेगी AAP?

आबकारी घोटाले से जुड़े मनी लॉन्ड्रिंग मामले में मुख्यमंत्री अरविंद केजरीवाल की गिरफ्तारी के बाद से दिल्ली में सियासी संकट उत्पन्न हो गया है। आप लगातार यह दावा कर रही है कि सरकार अब जेल से ही चलेगी। वहीं सीएम की गिरफ्तारी के बाद से भाजपा लगातार उनसे इस्तीफे की मांग कर रही है। एक्सपर्ट का कहना है कि केंद्र शासित प्रदेश में जेल से सरकार चलाना आसान नहीं है।

By Jagran News Edited By: Abhishek Tiwari Published: Thu, 04 Apr 2024 03:37 PM (IST)Updated: Thu, 04 Apr 2024 03:39 PM (IST)
Arvind Kejriwal in Tihar: जेल में ‘सरकार’, फाइलों को इंतजार

जागरण संवाददाता, नई दिल्ली। दिल्ली के मुख्यमंत्री अरविंद केजरीवाल की आबकारी घोटाले से जुड़े मनी लॉन्ड्रिंग मामले में गिरफ्तारी और उसके बाद अब उनके जेल चले जाने से दिल्ली सरकार के कामकाज पर असर पड़ना स्वाभाविक है।

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आम आदमी पार्टी (आप) के नेता लगातार यह कहते रहे हैं कि मुख्यमंत्री जेल से सरकार चलाएंगे, लेकिन व्यावहारिक रूप से देखें तो जेल से सरकार चलाना आसान नहीं है। मुख्यमंत्री के लिए जेल मैन्युअल में बदलाव भी नहीं किया जा सकता।

ऐसे में सरकार के कामकाज प्रभावित न हों, यह सुनिश्चित किए जाने की आवश्यकता होगी। सवाल यही उठता है कि जेल से सरकार चलाना कितना व्यावहारिक है? और क्या इससे सरकार के कामकाज पर असर नहीं पड़ेगा? मौजूदा परिस्थितियों में दिल्ली के पास क्या हैं विकल्प? दिल्ली इन हालात से कैसे निपट सकती है? इसी की पड़ताल करना हमारा आज का मुद्दा है।

केंद्र शासित प्रदेश में जेल से सरकार चलाना कितना आसान?

अगर किसी राज्य में ऐसी स्थिति उत्पन्न हो जाए कि मुख्यमंत्री को जेल जाना पड़ जाए तो वहां पर सरकार का कामकाज चल सकता है। सीएम इस्तीफा दिए बगैर अपना पोर्टफोलियो किसी अन्य विधायक या मंत्री को सौंप सकते हैं। वह उनकी तरफ से निर्णय ले सकता है, लेकिन दिल्ली चूंकि एक केंद्र शासित प्रदेश है, इसलिए यहां ऐसा कर पाना बहुत कठिन है।

अदालत की विशेष अनुमति से ही जेल में रहते हुए सरकार चलाई जा सकती है। वह भी सीधे तौर पर जेल नियमावली के खिलाफ तथा पद एवं गोपनीयता की दृष्टि से उचित नहीं होगा।

दिल्ली में फिलहाल जो स्थिति है, उससे सरकार के दैनिक कामकाज पर असर पड़ना तय है, पड़ भी रहा है। दो सप्ताह होने जा रहे हैं, कोई निर्णय नहीं लिया गया है।

सीएम को निर्णय लेने के लिए बुलानी पड़ती है कैबिनेट

दरअसल, यहां की संवैधानिक व्यवस्था ही ऐसी है कि सीएम को निर्णय लेने के लिए कैबिनेट बुलानी पड़ती है एवं फिर उस निर्णय की फाइल स्वीकृति के लिए प्रशासनिक मुखिया यानी एलजी को भेजनी पड़ती है।

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बढ़ने लगी है लंबित फाइलों की संख्या

सीएम की अनुपस्थिति में अब न कैबिनेट हो पा रही है और न ही एलजी के पास कोई फाइल जा पा रही है। ऐसे में लंबित फाइलों की संख्या भी बढ़ने लगी है।

गवर्नमेंट आफ एनसीटी दिल्ली एक्ट 1991 और ट्रांजेक्शन आफ बिजनेस रूल्स के मुताबिक सीएम, एलजी व केंद्र सरकार का एक चैनल बना हुआ है। सीएम के जेल जाने से यह चैनल टूट गया है। सरकार और राजनिवास के बीच की कड़ी भी टूटी हुई है। एलजी के पास फाइलें ही नहीं जा रही हैं।

एलजी कर सकते हैं राष्ट्रपति शासन लागू करने की सिफारिश?

सिर्फ निर्णयात्मक ही नहीं, सभी बड़े प्रोजेक्ट और व्यय संबंधी मामले भी अपनी रफ्तार से आगे नहीं बढ़ पाएंगे। किसी सरकारी अधिकारी के जेल जाने की स्थिति में उसे निलंबित करने का कानून है, लेकिन राजनेताओं पर कानूनी तौर पर ऐसी कोई रोक नहीं है। फिर भी चूंकि दिल्ली पूर्ण राज्य नहीं है, ऐसे में अगर मुख्यमंत्री इस्तीफा नहीं देते हैं तो एलजी दिल्ली में राष्ट्रपति शासन लागू करने की सिफारिश कर सकते हैं।

मंथन का विषय यह भी है कि बेशक जेल में रहते हुए भी सीएम के लिए इस्तीफा देने की कोई बाध्यता नहीं है। जेल से मुख्यमंत्री कार्यालय चला पाना भी व्यावहारिक नहीं है। मान लीजिए कि अदालत अरविंद केजरीवाल को जेल से सरकार चलाने की इजाजत दे भी देती है तो क्या वहां पर कैबिनेट की बैठक कर पाना संभव होगा?

सरकारी कामकाज में होता है पद एवं गोपनीयता का महत्व

मुख्यमंत्री के हस्ताक्षर के लिए आए दिन किस तरह उन तक फाइलें जाएंगी और किस तरह से वह लिखित आदेश जारी करेंगे। सरकारी कामकाज में पद एवं गोपनीयता का भी बहुत महत्व होता है। सीसीटीवी की निगरानी और सुरक्षा जांच में कुछ भी गोपनीय नहीं रह पाएगा। मौखिक आदेश के सहारे भी कोई सरकार नहीं चलाई जा सकती।

वर्तमान परिस्थितियों में यह बैठक संभव नहीं

केंद्र शासित प्रदेश होने के कारण दिल्ली में राष्ट्रीय राजधानी सिविल सेवा प्राधिकरण (एनसीसीएसए) की भी काफी अहमियत है, जिसके अध्यक्ष मुख्यमंत्री ही होते हैं। अधिकारियों के स्थानांतरण, निलंबन या पदोन्नति से जुड़े सभी मुद्दे इसी की बैठक में रखे जाते हैं और वर्तमान परिस्थितियों में यह बैठक संभव नहीं है।

इससे भी बड़ी समस्या उत्पन्न हो सकती है। अगर यह कहा जाए कि ऐसी स्थिति में केवल वही काम हो पाएंगे, जिनके अधिकार अधिकारियों के पास हैं, तो गलत नहीं होगा।

कितना लंबा खिंचेगी मौजूदा स्थिति?

विचारणीय पहलू यह भी है कि मौजूदा स्थिति जितनी लंबी खिंचेगी, दिल्ली में संवैधानिक संकट उत्पन्न होने के हालात बनते जाएंगे। यह सही है कि फिलहाल आचार संहिता लगी होने के कारण फिलहाल कोई बड़ा निर्णय नहीं लिया जा सकता। लेकिन जनहित के ऐसे अनेक कार्य होते हैं, जिन्हें टाला भी नहीं जा सकता।

नया वित्त वर्ष शुरू हो गया है, वित्त से जुड़े कुछ मामले भी सीएम की अनुस्थिति में लटक सकते हैं और पहले से चल रही विभिन्न परियोजनाओं की समीक्षा, निगरानी व प्रगति भी प्रभावित हो सकती है। यह जानकारी जागरण संवाददाता संजीव गुप्ता से पूर्व मुख्य सचिव ओमेश सैगल से बातचीत पर आधारित है।

दिल्ली में किस मंत्री के पास हैं क्या क्या विभाग?

मुख्यमंत्री अरविंद केजरीवाल कोई विभाग नहीं
आतिशी जल,कानून,राजस्व, योजना, वित्त, महिला एवं बाल विकास, शिक्षा, लोक निर्माण विभाग, ऊर्जा, संस्कृति और भाषा व सतर्कता व सेवाएं, उच्च शिक्षा, ट्रेनिंग एंड टेक्निकल एजुकेशन, पब्लिक रिलेशन।
सौरभ भारद्वाज स्वास्थ्य, शहरी विकास, पर्यटन विभाग एवं कला, उद्योग, सिंचाई एवं बाढ़ नियंत्रण।
कैलाश गहलोत परिवहन, गृह, प्रशासनिक सुधार और सूचना प्रौद्योगिकी विभाग
गोपाल राय वन एवं पर्यावरण, सामान्य प्रशासन विभाग व विकास विभाग।
राज कुमार आनंद एससी और एसटी, गुरुद्वारा चुनाव, सहकारी समितियों के रजिस्ट्रार के साथ समाज कल्याण विभाग व श्रम।

यह भी जानें- 

  • 21 मार्च को ईडी ने मुख्यमंत्री अरविंद केजरीवाल को आबकारी घोटाले के तहत मनी लांड्रिंग मामले में शामिल होने के आरोप में उनके आवास से किया गिरफ्तार।
  • 11 दिन रिमांड पर रहने के बाद अब 15 दिन की न्यायिक हिरासत में तिहाड़ जेल में हैं।
  • सरकार चलाने के लिए एक मुख्यमंत्री को सरकार के संबंधित किसी भी फाइल को एलजी के पास अपने साइन कर भेजना पड़ता है। कैबिनेट के बैठकों की अध्यक्षता भी मुख्यमंत्री करते हैं।

दिल्ली के मुख्यमंत्री दिल्ली सिविल सेवा प्राधिकरण (एनसीसीएसए) के प्रमुख हैं, जो दिल्ली सरकार में अधिकारियों के स्थानांतरण और तबादलों से भी संबंधित है और मुख्यमंत्री कैबिनेट बैठकों की अध्यक्षता भी करते हैं। अगर वह जेल में हैं तो कानून में कोई समस्या नहीं है, लेकिन जेल मैनुअल समस्याएं पैदा करेगा क्योंकि वे केजरीवाल से मिलने वालों की संख्या एक सीमा तक सीमित कर सकते हैं। वैसे मुख्यमंत्री के रूप में केजरीवाल के पास कोई पोर्टफोलियो नहीं है, इसलिए अल्पावधि में किसी भी विभाग का नियमित काम प्रभावित होने की संभावना नहीं है।

पीके त्रिपाठी, पूर्व मुख्य सचिव, दिल्ली


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