सुप्रीम कोर्ट में होगा दिल्ली बनाम केंद्र के अधिकार का फैसला, सुनवाई आज
दिल्ली सरकार ने यह भी मांग की है कि उप राज्यपाल की मंजूरी लिए बिना जिन 400 फाइलों को उसने पास किया था, उनकी जांच रिपोर्ट पर फिलहाल कोई कार्रवाई नहीं की जाए।
नई दिल्ली (जेएनएन)। केंद्र बनाम दिल्ली सरकार अधिकार विवाद पर सुप्रीम कोर्ट आज सुनवाई करेगा। राज्य-केंद्र के अधिकारों की जंग मुद्दे पर दिल्ली सरकार सुप्रीम कोर्ट पहुंची है। इससे पहले 5 अगस्त को दिल्ली हाईकोर्ट ने अपने फैसले में यह माना था कि दिल्ली एक केंद्र शासित प्रदेश है, इसलिए यहां कोई भी फैसला उप राज्यपाल की मंजूरी के बिना नहीं लिया जा सकता है। इसके खिलाफ दिल्ली सरकार ने सुप्रीम कोर्ट में अपील की है।
दिल्ली सरकार ने यह भी मांग की है कि उप राज्यपाल की मंजूरी लिए बिना जिन 400 फाइलों को उसने पास किया था, उनकी जांच रिपोर्ट पर फिलहाल कोई कार्रवाई नहीं की जाए। गौरतलब है कि इन फाइलों की जांच के लिए एलजी ने शुंगलू कमेटी बनाई थी, जो अपनी रिपोर्ट सौंप चुकी है।
यह कहा था दिल्ली हाई कोर्ट ने
अपने फैसले में दिल्ली हाईकोर्ट ने कहा था कि दिल्ली अभी भी एक केंद्र शासित प्रदेश ही है और संविधान के अनुच्छेद-239 एए के तहत इसके लिए विशेष प्रावधान किया गया है, इसलिए राजधानी में लेफ्टिनेंट गवर्नर नजीब जंग ही प्रशासनिक प्रमुख हैं।
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हाईकोर्ट ने कहा था कि दिल्ली सरकार की इस दलील में दम नहीं है कि उपराज्यपाल दिल्ली सरकार की मंत्री परिषद की सलाह मानने के लिए बाध्य हैं। हाईकोर्ट ने दिल्ली सरकार की इस दलील को आधारहीन बताया था। हाईकोर्ट ने ये भी साफ कर दिया था कि अधिकारियों की नियुक्ति और तबादले का अधिकार दिल्ली सरकार के पास नहीं, बल्कि केंद्र सरकार के पास है। इसके साथ ही अदालत ने दिल्ली सरकार के उन तमाम फैसलों को भी अवैध बताया है, जो LG की सहमति के बगैर लिए गए थे।
फैसले के अहम बिंदु
1. दिल्ली एक आंशिक राज्य है, पूर्ण राज्य नहीं है। 1991 में संविधान में संशोधन से दिल्ली को विशिष्ट संवैधानिक दर्जा और विधानसभा मिली थी।
2. संविधान के हिसाब से दिल्ली के प्रमुख उपराज्यपाल हैं। 1993 से दिल्ली में जो भी सरकार बनी, उसमें से किसी ने भी उपराज्यपाल की शक्तियों को चुनौती नहीं दी।
3. आम आदमी पार्टी को दिल्ली में ज़बरदस्त बहुमत मिला है, तो उसे ये लग रहा है कि उसके पास दिल्ली में अब मनचाहे तरीके से काम करने की पूरी शक्ति है।
4. लेकिन ऐसा करना दिल्ली के लिए बने संविधान के नियमों के अनुरूप नहीं है, क्योंकि दिल्ली की चुनी हुई सरकार को उपराज्यपाल के साथ अपनी शक्तियों को शेयर करना ही पड़ता है।
5. दिल्ली जैसे आंशिक राज्य के मुकाबले दूसरे पूर्ण राज्यों में राज्यपाल होते हैं जो राज्य की मंत्रिपरिषद और मुख्यमंत्री की सलाह पर काम करते हैं...लेकिन दिल्ली की स्थिति अलग है।
6. संविधान के अनुच्छेद 239 एए और एबी में दिल्ली के उपराज्यपाल को दूसरे राज्यों के राज्यपालों से ज़्यादा संवैधानिक शक्तियां दी गई हैं।
7. इस अनुच्छेद का Clause 4 कहता है कि दिल्ली की मंत्रिपरिषद उपराज्यपाल को aid and advise यानी मदद और सलाह देगी बशर्ते ऐसा कोई मामला सामने आए नहीं तो उपराज्यपाल ख़ुद फैसले लेने के लिए स्वतंत्र हैं।
8. नियम कहते हैं कि अगर उपराज्यपाल और मंत्रिपरिषद में मतभेद हों, तो मामला राष्ट्रपति के पास भेजना चाहिए।
9. जब तक ये मामला राष्ट्रपति के पास लंबित होता है, तब तक उपराज्यपाल के पास अधिकार होता है कि वो अपने विवेक से किसी भी तात्कालिक मामले में तुरंत कार्रवाई कर सकते हैं।
10. दिल्ली एक केंद्रशासित प्रदेश है जिसकी अपनी विधानसभा भी है। दिल्ली को पूर्ण राज्य न बनाने के पीछे कुछ बड़ी वजहें रही हैं।
11.पहली बात दिल्ली देश की राजधानी है और पूरे देश का शासन दिल्ली से ही चलता है। शासन और सुरक्षा की दृष्टि से दिल्ली देश की सबसे महत्वपूर्ण जगह है।
12. दिल्ली में संसद से लेकर सुप्रीम कोर्ट, राष्ट्रपति और प्रधानमंत्री से लेकर सभी सांसद, चुनाव आयोग, विपक्ष के नेता, दूसरे देशों के राजदूत और उच्चायुक्त रहते हैं।
13. इन अति-महत्वपूर्ण व्यक्तियों और जगहों की सुरक्षा की ज़िम्मेदारी भारत सरकार किसी दूसरे राज्य पर नहीं छोड़ सकती थी, क्योंकि राष्ट्रीय सुरक्षा और संप्रभुता को लेकर किसी भी तरह का समझौता नहीं किया जा सकता है।