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Holi Celebration 2020: खाने के शौकीन हैं तो Delhi-6 का कोई जवाब नहीं

Holi Celebration 2020 रंगों का त्योहार हो और रंग-बिरंगे रसभरे मीठे पकवानों की बात हो तो दिल्ली-6 का कोई जवाब नहीं है।

By JP YadavEdited By: Published: Sat, 07 Mar 2020 12:05 PM (IST)Updated: Sat, 07 Mar 2020 12:05 PM (IST)
Holi Celebration 2020: खाने के शौकीन हैं तो Delhi-6 का कोई जवाब नहीं
Holi Celebration 2020: खाने के शौकीन हैं तो Delhi-6 का कोई जवाब नहीं

नई दिल्ली [नलिन चौहान]। Holi Celebration 2020 : रंगों का त्योहार हो और रंग-बिरंगे रसभरे मीठे पकवानों की बात न हो, कैसे संभव है। एक प्रसिद्ध सूक्ति भी है-रसौ वै सरू। अर्थात् वह परमात्मा ही रस रूप आनंद हैं। हिंदू भोजन पद्धति में रस छह माने गए हैं-कटु, अम्ल, मधुर, लवण, तिक्त और कषाय। जबकि महाकवि कालिदास ने स्वाद, रुचि और इच्छा के अर्थ में भी रस शब्द का प्रयोग किया है। आयुर्वेद में शरीर के संघटक तत्वों के लिए रस शब्द प्रयुक्त हुआ है। अब भला होली के अवसर पर देसी स्वाद के लिए पुरानी दिल्ली से बेहतर क्या ठिकाना हो सकता है। पिछले सप्ताह ही ओखला स्थित क्राउन प्लाजा होटल में हुए दिल्ली-6 फूड फेस्टिवल में कुछ ऐसा ही देखने को मिला था।

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उल्लेखनीय कि क्राउन प्लाजा पिछले दस वर्षों से पुरानी दिल्ली के निरामिष-सामिष भोजन की उत्सवधर्मिता को अपने वार्षिक आयोजन में उपलब्ध करवा रहा है। दिल्ली-6 से दूर है पर उसके खाने को प्यार करने वालों के लिए यह आयोजन किसी वरदान से कम नहीं है। जहां बिना किसी भीड़-भाड़ और धूल से दूर विश्वसनीय ढंग से बनाए गए भोजन का स्वाद संभव हो पाया है।

यहां पुरानी दिल्ली के विविधतापूर्ण भोजन की सर्वव्यापी उपस्थिति थी। इतना ही नहीं, यहां आने वाले मेहमानों को स्थानीय भूगोल की वास्तविकता की अनुभूति करवाने के लिए चांदनी चौक की खाने-पीने की दुकानों सहित परिवहन के परंपरागत साधनों जैसे बैलगाड़ी, साइकिल रिक्शा और मेट्रो रेल को आउटडोर कटआउटों से सजाया गया था। पुरानी दिल्ली के सामिष-निरामिष भोजन से लेकर मसालों और मिष्ठान तक को एक छत के तले परोसने की व्यवस्था के पीछे होटल केशेफ देवराज शर्मा के अथक प्रयास और बरसो का अनुभव था। इतिहास में देखे तो पता चलता है कि प्राचीन काल में राजे-रजवाड़ों और वणिकों के यहां रसोई का प्रबंध ब्राह्मणों के हाथ में होता था, जिन्हें ‘महाराज’ के नाम से पुकारा जाता था। मूल रूप से हिमाचल प्रदेश के हम्मीरपुर जिले के रहने वाले क्राउन प्लाजा के महाराज देवराज शर्मा ने विशेष रूप कच्चे पपीते को कद्दूकस करके केसरी पपीता हलवा बनाया था, बाकी मूंग का सदाबहार हलवा तो था ही।

इसी तरह, फतेहपुरी इलाके का मशहूर हब्शी हलवा भी था जो कि शुद्ध दूध में मध्य प्रदेश के लाल गेहूं के उम्दा दानों के मिश्रण से बनाया गया था। पुरानी दिल्ली की अस्सी साल से पुरानी मोटेलाला की खोया-दूध वाली पलंग तोड़ बर्फी और चैनाराम मिष्ठान का प्रसिद्ध सोहन हलवा भी थे। उल्लेखनीय है कि अब चैनाराम के मालिकों की तीसरी पीढ़ी दुकान का काम संभाल रही है जबकि वहां दूसरी पीढ़ी में काम करने वाले एक अनाम कारीगर ने सोहन हलवा के व्यंजन को तैयार किया था। जैसे इतिहास में होता है कि सेठ का नाम तो सब जानते हैं, पर कारीगर का कोई नहीं।

ऐसे ही, खाने का जायका बढ़ाने के लिए तरह-तरह के अचार-मुरब्बे थे। खास था, डायबिटिज वालों के लिए भिंडी का अचार। बाकी मूली, कटहल और भरवा मिर्ची के अचार तो थे ही। होली पर आपको चटपटी तासीर वाले व्यंजनों की जरूरत भी होगी सो, अब उसके लिए दही भल्ले और चाट का स्वाद भी है वो भी पुरानी दिल्ली वाले उनके साथ खस्ता कचौड़ी (आलू की सब्जी के साथ), मखाने की चाट और गोलगप्पों की भी अद्भुत संगत। आखिर दाल मक्खनी-शाही पनीर और राजमा-चावल के बिना दिल्ली के खाना का सफर अधूरा ही है। सो, शाकाहारियों के लिए विविध विकल्प थे। ऐसे में, निरामिष भोजन के स्वादुओं के लिए मटन स्टयू, चिकन कोरमा, मटन हलीम और जहांगीर मटन कोरमा उपलब्ध थे। कबाब में जायके के लिए डाली जाने वाली खस की जड़ भी अलग से रखी गई थी। ताकि खाने वाले को उसके स्वाद का कारण नजर भी आए। आखिर मांसाहारी भोजन में खड़े मसालों की ही  स्वाद है, जिसमें विभिन्न प्राकृतिक जड़ों के प्रयोग से एक अलग तरह का ही स्वाद आता है। 

(लेखक अनजाने इतिहास के खोजी हैं)


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