30वें विश्व पुस्तक मेले के नियम शर्तों से हिन्दी प्रकाशक परेशान, राष्ट्रीय पुस्तक न्यास को लिखा पत्र
संघ के महासचिव एवं सामयिक प्रकाशन के संचालक महेश भारद्वाज ने इस पत्र में लिखा है कि विश्व पुस्तक मेले में हमेशा से हिन्दी एवं भारतीय भाषाओं के प्रकाशकों को स्टाल के किराये में 50 प्रतिशत की छूट मिलती रही है।
नई दिल्ली [संजीव गुप्ता]। आठ से 16 जनवरी के मध्य प्रगति मैदान में होने जा रहे 30वें विश्व पुस्तक मेले के बदले हुए नियम शर्तों से हिन्दी एवं भारतीय भाषाओं के प्रकाशक परेशान हैं। राष्ट्रीय हिन्दी प्रकाशक संघ की ओर से इस संबंध में मेला आयोजक राष्ट्रीय पुस्तक न्यास (एनबीटी) के निदेशक को पत्र लिखकर शीघ्रातिशीघ्र इन तमाम परेशानियों का निदान करने का अनुरोध किया है।
इस कारण निराश हैं भारतीय भाषा के प्रकाशक
संघ के महासचिव एवं सामयिक प्रकाशन के संचालक महेश भारद्वाज ने इस पत्र में लिखा है कि विश्व पुस्तक मेले में हमेशा से हिन्दी एवं भारतीय भाषाओं के प्रकाशकों को स्टाल के किराये में 50 प्रतिशत की छूट मिलती रही है। पिछली बार यह छूट घटाकर 40 प्रतिशत की गई जबकि इस बार और घटाकर 30 प्रतिशत कर दी गई है। साथ ही 18 प्रतिशत जीएसटी भी जाेड़ दिया गया है। इसके अलावा अलग अलग स्टालाें के समायोजन करने का विकल्प भी खत्म कर दिया गया है। इससे भारतीय भाषाओं के प्रकाशकों में काफी निराशा है।
पहले की तरह मिल रही छूट की मांग
भारद्वाज ने पत्र में अनुरोध किया है कि हिन्दी और भारतीय भाषाओं के प्रकाशकों को स्टाल किराये की छूट पूर्व के वर्षों की तरह ही प्रदान की जानी चाहिए। स्टाल क्लबिंग की सुविधा भी पूर्व वर्षो की तरह जारी रहे। प्रकाशन गृह और उसके सहयोगी प्रकाशनो को एक साथ एक जगह समायोजन करने की छूट मिलती रहनी चाहिए। इसके अलावा भुगतान की अंतिम तिथि 30 नवंबर तक तक बढ़ाई जाए।
कागज के दामों में वृद्धि से प्रकाशक परेशान, नहीं मिल रहा समाधान
कागज के दामों में वृद्धि से भी प्रकाशक इन दिनों काफी परेशान हैं। प्रकाशकों का कहना है कि कोरोना काल के उबरने के क्रम में प्रकाशन व्यवसाय अभी संभला भी नहीं है कि एक सितंबर 2021 से कागज़ के दामों में 25 से 30 प्रतिशत का कागज़ की कीमतें बढ़ने से हैं किताबों, नोटबुक्स और दूसरे स्टेशनरी प्रोडक्ट्स पर भी असर होना तय है। इस मुददे पर एसोसिएशन आफ स्कूल पब्लिशर्स के अध्यक्ष दिनेश गोयल और सचिव नवीन जोशी का कहना है कि जिस अनुपात में कागज की कीमतें बढ़ी हैं, उस अनुपात में किताबों की कीमतें नहीं बढ़ाई जा सकती। इसलिए केंद्र सरकार को प्रकाशकों की इस समस्या पर गंभीरता से गौर करना चाहिए।