शारीरिक संबंध बनाने के लिए किशोरी की सहमति के नहीं हैं मायने : हाई कोर्ट
पीठ ने कहा कि पीड़िता ने अपने बयान में कहा है कि दोषी राहुल मंडल उर्फ राहुल ने उसके साथ शारीरिक संबंध बनाए और उस दौरान उसकी उम्र 13 साल से कम थी।
नई दिल्ली [विनीत त्रिपाठी]। किशोरी की सहमति से शारीरिक संबंध बनाने के मामले में दिल्ली हाई कोर्ट ने अहम टिप्पणी की है। न्यायमूर्ति मनोज कुमार ओहरी की पीठ ने कहा कि अभियोजन पक्ष ने यह साबित किया है कि घटना के दौरान किशोरी की उम्र 13 साल से कम थी और कानून के हिसाब से इस उम्र में किशोरी की सहमति मायने नहीं रखती है।
पीठ ने कहा कि पीड़िता ने अपने बयान में कहा है कि दोषी राहुल मंडल उर्फ राहुल ने उसके साथ शारीरिक संबंध बनाए और उस दौरान उसकी उम्र 13 साल से कम थी। ऐसे में निचली अदालत द्वारा सुनाई गई सजा में कोई भी विकृति या दुर्बलता नहीं है। पीठ ने उक्त टिप्पणियों के साथ दोषी की अपील याचिका को खारिज करते हुए निचली अदालत की सजा को बरकरार रखा।
निचली अदालत ने भारतीय दंड संहिता की धारा-386 एवं पॉक्सो एक्ट धारा-4 के तहत दोषी राहुल को दस साल की कठोर कारावास की सजा सुनाई। साथ ही उस पर 10 हजार रुपये का जुर्माना लगाया। जुर्माना नहीं भरने की स्थिति आठ महीने तक कारावास की सजा का भी आदेश दिया।
दोषी ने निचली अदालत की सजा को चुनौती देते हुए दलील दी कि किशोरी ने अपने बयान में कहा था कि उसकी सहमति से शारीरिक संबंध बनाया था। इतना ही नहीं उसने यह भी कहा था कि याचिकाकर्ता से उसने शादी की थी। उसने दलील दी कि यह समहति से शारीरिक संबंध बनाने का मामला है न की दुष्कर्म करने का।
याचिका के अनुसार 12 नवंबर 2013 को किशोरी द्वारका में दोषी राहुल से मिली थी और वहां से राहुल उसे पास की झुग्गी में ले गया था। वहां पर वह राहुल के साथ एक सप्ताह रही और हर दिन दोनों के बीच शारीरिक संबंध बने। हालांकि, पीठ ने दोषी की दलीलों को खारिज करते हुए निचली अदालत द्वारा सुनाए गए फैसले को बरकरार रखा। निचली अदालत ने दोषी राहुल को अपहरण के केस से मुक्त कर दिया, लेकिन उसे दुष्कर्म के लिए दोषी करार दिया।