कचरा प्रबंधनः SC सख्त, कहा ऐसी समिति बने जो नौकराशी की तरह काम न करे
एलजी-न्याय मित्र की तरफ से सुप्रीम कोर्ट को समिति के लिए नामों का सुझाव दिया गया। कोर्ट ने कहा, हालात का आकलन करने को रोजाना बैठक करनी चाहिए।
नई दिल्ली (जेएनएन)। दिल्ली में कचरा प्रबंधन के समग्र इंतजाम के लिए विशेषज्ञ समिति का गठन किया जाएगा। इस बात की जानकारी सोमवार को दिल्ली के उपराज्यपाल की ओर से सुप्रीम कोर्ट को दी गई। सुप्रीम कोर्ट ने दिल्ली में कचरे की स्थिति को गंभीर बताते हुए कहा कि हालात के आकलन के लिए समिति को रोजाना बैठक करनी चाहिए।
दिल्ली में कचरा प्रबंधन मामले पर सुनवाई कर रही जस्टिस मदन बी. लोकुर की अध्यक्षता वाली पीठ ने यह बात कही। पिछली सुनवाई पर पीठ ने दिल्ली में हालात गंभीर बताते हुए उपराज्यपाल से सभी पहलुओं पर समग्र मंथन करने के लिए विशेषज्ञ समिति के गठन पर विचार करने को कहा था। समिति के लिए उपराज्यपाल व न्याय मित्र से नाम मांगा गया था।
सोमवार को उपराज्यपाल की ओर से पेश एएसजी पिंकी आनंद ने कोर्ट को बताया कि कचरा प्रबंधन के लिए विशेषज्ञ समिति का गठन किया जाएगा। उन्होंने कोर्ट को समिति के सदस्यों के तौर पर 16 नामों का सुझाव दिया जबकि मामले में न्याय मित्र वरिष्ठ अधिवक्ता कोलिन गोंसाल्विस ने भी पांच नामों का सुझाव दिया है।
कोर्ट ने दोनों वकीलों से पूछा कि यह समिति कब-कब बैठक करेगी।
पीठ ने कहा कि समिति को रोजाना बैठक करनी चाहिए। मौके का दौरा और मुआयना कर यह पता लगाना चाहिए कि क्या किया जा सकता है। स्थिति गंभीर है। यह कमेटी नौकरशाही की तरह नहीं होनी चाहिए। हालांकि कोर्ट ने यह भी कहा कि समिति में ब्यूरोक्रेट होंगे। ब्यूरोक्रेट व अन्य सदस्यों को मिलकर काम करना चाहिए।
पीठ ने एएसजी और न्याय मित्र से कहा कि वे यह पता कर बताएं कि जिन लोगों के नाम उन्होंने कमेटी के सदस्य के तौर पर सुझाए हैं, क्या वे रोजाना दिल्ली में बैठक कर पाएंगे? पीठ ने कहा कि उन्हें रोजाना दिल्ली आकर बैठक करनी चाहिए, क्योंकि यह गंभीर मुद्दा है। करीब 20 लोग हैं उन्हें ऑफिस व अन्य सुविधाएं मिलनी चाहिए। इस पर न्याय मित्र ने कहा कि दिल्ली से बाहर रहने वाले लोगों को आने-जाने और होटल का खर्च मिलना चाहिए। कोर्ट इस मामले में 29 अगस्त को फिर सुनवाई करेगा।
अब रेलवे रसोईघर के कचरे से बनेगी बिजली
अब भारतीय रेलवे खानपान एवं पर्यटन निगम (आइआरसीटीसी) के बेस किचन में न सिर्फ रेल यात्रियों के लिए भोजन बनेगा, बल्कि यहां से निकलने वाले कचरे से बिजली भी तैयार होगी। रेलवे स्टेशनों व कॉलोनियों में भी कचरे से बिजली बनाने वाले संयंत्र लगेंगे। इससे कचरा निस्तारण के साथ दूसरी एजेंसियों पर बिजली की निर्भरता भी कम होगी।
पर्यावरण संरक्षण और बिजली पर होने वाले खर्च को कम करने के लिए पिछले कुछ वर्षो से रेल प्रशासन वैकल्पिक ऊर्जा को विशेष तौर पर बढ़ावा दे रहा है। इसके तहत रेलवे स्टेशनों और ट्रेनों में सोलर पैनल लगाए जा रहे हैं। इसके साथ ही रेल परिसरों से निकलने वाले कचरे से बिजली बनाने की संभावनाओं पर काम किया जा रहा है। इस तरह का एक संयंत्र दिल्ली स्थित रेलवे कॉलोनी में भी लगाया गया है। अब आइआरसीटीसी के बेस किचन के नजदीक इस तरह के संयंत्र लगाने की तैयारी है।
पर्याप्त मात्रा में उपलब्ध होगा जैविक कचरा
पिछले दिनों बैठक में रेलवे बोर्ड के चेयरमैन अश्विनी लोहानी ने अधिकारियों को इसके लिए निर्देश भी दिए हैं। उन्होंने अधिकारियों को आइआरसीटीसी के बेस किचन के नजदीक इस तरह के संयंत्र लगाने की संभावना तलाशने को कहा है। भारतीय रेलवे के वैकल्पिक ईंधन संगठन (आइआरओएएफ) ने किशनगंज दिल्ली में इस तरह का संयंत्र स्थापित किया है। संयंत्र के संचालन की जिम्मेदारी भी इसी को दी गई है, लेकिन पर्याप्त मात्रा में जैविक कचरा नहीं मिलने की वजह से इसका लाभ अब तक नहीं मिल सका है। अधिकारियों का कहना है कि बेस किचन के नजदीक जैविक कचरा आसानी से उपलब्ध होगा और संयंत्र को चलाने में किसी तरह की दिक्कत नहीं होगी।
नई दिल्ली स्टेशन पर भी कचरे से बनेगी बिजली
नई दिल्ली स्टेशन पर भी इस तरह का संयंत्र लगाया जा रहा है, जिससे रोजाना 15 टन कचरे से 2000 यूनिट बिजली तैयार होगी। संयंत्र लगाने का खर्च रेलवे उठाएगा और इसे चलाने के लिए पांच वर्ष का ठेका दिया जाएगा। ठेकेदार ही इसका रखरखाव भी करेगा। इस संयंत्र की अनुमानित आयु 12 वर्ष होगी। स्टेशन से निकलने वाले कचरे में से जैविक कचरा अलग कर उससे बिजली बनाई जाएगी। इसके साथ ही उससे खाद भी तैयार होगा। दोनो का उपयोग रेलवे करेगा। ठेकेदार से रेलवे घरेलू उपभोक्ता दर पर बिजली खरीदेगी।
दिल्ली में फेल हो रहे कचरा प्रबंधन के इंतजाम
दिल्ली में कचरा प्रबंधन बड़ी समस्या बन चुका है। दिल्ली में दिन पर दिन कूड़े के पहाड़ ऊंचे हो रहे हैं। कूड़ा डालने को लेकर जगह-जगह लोग धरना-प्रदर्शन कर रहे हैं और ये कूड़ा कभी पहाड़ों से गिरकर तो कभी अपने प्रदूषण से लोगों की जान भी लेने लगा है। बावजूद कूड़े को लेकर सरकारी संस्थाओं में वो गंभीरता नजर नहीं आती है, जो होनी चाहिए।
2015 में हाई कोर्ट ने दिया था आदेश
वर्ष 2015 में दक्षिणी दिल्ली के लाडो सराय में सात साल के एक बच्चे की डेंगू से मौत हो गई थी। उसकी मौत से दुखी उसके माता-पिता ने 8 सितंबर 2015 को अपने किराए के घर की छत से कूदकर आत्महत्या कर ली थी। उसी वर्ष डेंगू की चपेट में आए एक वकील अर्पित भार्गव को इस घटना ने झकझोर कर रख दिया। मामले में उन्होंने दिल्ली हाई कोर्ट में एक याचिका दायर की। इस पर कोर्ट ने नियमित सुनवाई शुरू की। कई सुनवाई के बाद हाई कोर्ट ने मच्छर जनित बीमारियों से निपटने के लिए कूड़ा निस्तारण के आदेश दिए थे। इसके बाद दिल्ली में कूड़ा निस्तारण के लिए नियम बने। इसमें कूड़ा पैदा करने वाले आम लोगों, दुकानदारों, रेस्टोरेंट, होटल व अन्य कॉमर्शियल गतिविधियों के संचालकों की कूड़ा पृथककरण के लिए भूमिका तय की गई थी। ताकि कूड़ा जहां से एकत्र किया जाए, वहीं से उसे निस्तारण के लिहाज से अलग-अलग कर लिया जाए। हालांकि इस पर गंभीरता से काम नहीं हुआ।
सुप्रीम कोर्ट कर रहा सुनवाई
दिल्ली में कूड़ निस्तारण की समस्या का अब तक कोई पुख्ता समाधान नहीं निकल सका है। यही वजह है कि पिछले दिनों सुप्रीम कोर्ट को मामले में दिल्ली के उपराज्यपाल के खिलाफ भी तल्ख टिप्पणी करनी पड़ी थी। इसके बाद से सुप्रीम कोर्ट स्वंतः संज्ञान लेकर दिल्ली में कूड़ की समस्या से निपटने के लिए सुनवाई कर रही है। सुप्रीम कोर्ट दिल्ली में कूड़े निस्तारण को लेकर पहले भी कई बार चिंता व्यक्त कर चुकी है।