लाभ का पद मामलाः आप विधायकों की याचिका पर HC ने चुनाव आयोग को भेजा नोटिस
19 जनवरी 2018 को चुनाव आयोग ने लाभ का पद मामले में आप के 20 विधायकों को अयोग्य ठहराते हुए राष्ट्रपति से इनकी विधानसभा की सदस्यता रद करने की सिफारिश की थी।
नई दिल्ली (जेएनएन)। लाभ का पद मामले में फंसे आम आदमी पार्टी (आप) के 20 विधायकों की याचिका पर सुनवाई करते हुए दिल्ली हाई कोर्ट ने बुधवार को चुनाव आयोग को नोटिस जारी किया है। हाई कोर्ट ने नोटिस के जरिए चुनाव आयोग से उसका पक्ष पूछा है।
गौरतलब है कि 19 जनवरी 2018 को चुनाव आयोग ने लाभ का पद मामले में आप के 20 विधायकों को अयोग्य ठहराते हुए राष्ट्रपति से इनकी विधानसभा की सदस्यता रद करने की सिफारिश की थी। राष्ट्रपति से इसकी मंजूरी मिलने के बाद केंद्र सरकार ने सदस्यता समाप्त करने की अधिसूचना जारी कर दी थी। केंद्र सरकार की अधिसूचना को आप विधायकों ने हाई कोर्ट में चुनौती दी थी। 23 मार्च को हाई कोर्ट ने चुनाव आयोग के फैसले को कानून की प्रकृति के खिलाफ बताते हुए केंद्र की अधिसूचना को रद कर दिया था। साथ ही आयोग को नए सिरे से मामले की सुनवाई करने का आदेश दिया था।
आप विधायकों ने चुनाव आयोग से शिकायतकर्ता प्रशांत पटेल को बुलाकर जिरह करने की मांग की थी, लेकिन आयोग ने इससे इन्कार कर दिया था। इसके बाद आप विधायकों ने हाई कोर्ट में याचिका दायर की थी। हाई कोर्ट ने स्पष्ट किया था कि चुनाव आयोग शिकायतकर्ता की शिकायत पर निर्भर न होकर इस संबंध में दिए गए दस्तावेजों पर निर्भर है। ऐसे में कानून के हिसाब से याची यह दबाव नहीं डाल सकते कि चुनाव आयोग शिकायतकर्ता प्रशांत पटेल को बुलाकर उससे जिरह करे।
इससे पहले अगस्त माह में लाभ का पद मामले में सुनवाई करते हुए दिल्ली हाई कोर्ट ने चुनाव आयोग से अपने फैसले की व्याख्या करने को कहा था। कोर्ट ने सुनवाई के दौरान याचिकाकर्ताओं से कहा था कि कानून बिल्कुल स्पष्ट है। चुनाव आयोग दस्तावेजों को रिकॉर्ड पर लाए और ऐसे में याची या तो इसे स्वीकार कर सकते हैं या नकार सकते हैं।
इस दौरान चुनाव आयोग की तरफ से अदालत में कहा गया था कि दो तरह के ही दस्तावेज होते हैं, मौखिक और लिखित। मौखिक वह है जो सुनाई दे या फिर दिखाई दे और यह कोई मौखिक दस्तावेज का प्रश्न नहीं है। चुनाव आयोग के वकील ने कहा था कि हम कानून के हिसाब से काम करेंगे। इस पर पीठ ने कहा था कि कानून के तहत ही प्राथमिकता पर मामले की सुनवाई करें। आयोग ने जवाब दिया कि दस्तावेजों को लेकर नहीं बल्कि मतभेद व्याख्या को लेकर है। पीठ ने सुनवाई के बाद याचिकाकर्ताओं से कहा कि अगर उनके हक में फैसला आए तो ठीक वरना वह इसे चुनौती दे सकते हैं।