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हाई कोर्ट ने डीयू से पूछा- साफ-सुथरे हैं तो फिर शिकायत निवारण समिति के पुर्नगठन से डर क्यों

जीआरसी की याचिका पर दिल्ली हाई कोर्ट ने दिल्ली विश्वविद्यालय से पूछा कि अगर आप साफ-सुथरे हैं तो फिर जीआरसी के पुर्नगठन के न्यायिक आदेश से क्यों डर रहे हैं।

By Mangal YadavEdited By: Published: Fri, 14 Aug 2020 08:55 PM (IST)Updated: Fri, 14 Aug 2020 08:55 PM (IST)
हाई कोर्ट ने डीयू से पूछा- साफ-सुथरे हैं तो फिर शिकायत निवारण समिति के पुर्नगठन से डर क्यों

नई दिल्ली [विनीत त्रिपाठी]। ओपन बुक परीक्षा (ओबीई) परीक्षा की निगरानी के लिए पुर्नगठित की गई शिकायत निवारण समिति (जीआरसी) की याचिका पर दिल्ली हाई कोर्ट ने दिल्ली विश्वविद्यालय (डीयू) से पूछा कि अगर आप साफ-सुथरे हैं तो फिर जीआरसी के पुर्नगठन के न्यायिक आदेश से क्यों डर रहे हैं। दिल्ली हाई कोर्ट ने ओबीई के दौरान छात्रों की शिकायत का निवारण करने के लिए सेवानिवृत्त न्यायमूर्ति प्रतिभा रानी की देखरेख में जीआरसी का पुर्नगठन किया गया है। न्यायमूर्ति हिमा कोहली व न्यायमूर्ति एस प्रसाद की पीठ ने कहा कि डीयू अपनी ईमानदारी को लेकर कम चिंतित नजर आ रहा है और बाहरी लोगों को समिति का हिस्सा बनाए जाने से अधिक चिंतित है।

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एकल पीठ के सात अगस्त के फैसले को चुनौती देने वाली डीयू की याचिका पर पीठ ने कहा कि यदि आप (डीयू) इतने साफ-सुथरे हैं, तो आप इतना खतरा क्यों महसूस कर रहे हैं? आप इसे व्यक्तिगत रूप से क्यों ले रहे हैं? समिति केवल छात्रों की शिकायतों पर गौर करेगी। वहीं, डीयू ने कहा कि जीआरसी का पुनर्गठन उसकी प्रतिष्ठा और समिति के पूर्व सदस्यों की खराब स्थिति को दर्शाता है।

डीयू ने अनुरोध किया कि उसे अपने कार्यों को बिना किसी बाहरी हस्तक्षेप के काम करने की अनुमति दे। डीयू ने कहा कि पहले की चार सदस्य समिति को बरकरार रखा जाए और इसकी अध्यक्षता सेवानिवृत्त न्यायमूर्ति कर सकते हैं। हालांकि, पीठ ने डीयू के सुझाव को ठुकरा दिया। पीठ ने सुझाव दिया कि बाहर किए गए सदस्यों में से एक को पुनर्गठित जीआरसी का हिस्सा बनाया जा सकता है और सेवानिवृत्त न्यायमूर्ति इसकी अध्यक्षता कर सकते हैं। इसे डीयू ने स्वीकार कर लिया।

इस पर पीठने प्रोफेसर एससी राय को जीआरसी का हिस्सा बनाया और निर्देश दिया कि यह समिति शुक्रवार से काम करेगी। पीठ ने उक्त आदेश के साथ सात अगस्त के एकल पीठ के फैसले में संशोधन किया। पीठ ने इसके साथ ही यह भी स्पष्ट किया कि जीआरसी का पुनर्गठन न तो अपीलकर्ता-विश्वविद्यालय की अखंडता पर सवाल उठाता है और न ही इसके अधिकार पर कोई दखल देता है। पीठ ने कहा कि उस समिति के सदस्यों का चयन करना जो विश्वविद्यालय का हिस्सा नहीं हैं, लेकिन उनके पास पर्याप्त अनुभव है और सेवानिवृत्त न्यायमूर्ति की अध्यक्षता में समिति की निष्पक्षता अधिक होगी।

अंतिम वर्ष के पाठ्यक्रमों के लिए चल रही ऑनलाइन ओपन बुक परीक्षा (ओबीई) के संबंध में गठित शिकायत निवारण समिति (जीआरसी) ने याचिका दायर कर दावा किया था कि कामकाज में उसका सहयोग नहीं किया जा रहा है। जीआरसी ने एक सदस्य व अधिवक्ता कमल गुप्ता के माध्यम से दायर याचिका में हाई कोर्ट को सूचित किया था कि अदालत द्वारा जारी किए गए किसी भी निर्देश का डीयू अनुपालन नहीं कर रहा है और इसके कारण पैनल को अपनी जिम्मेदारी का निर्वहन करने में मुश्किल हो रही है। उन्होंने अदालत के निर्देशों का अनुपालन करने के संबंध में डीयू को निर्देश देने की मांग की था। याचिकाकर्ता छात्रों के अधिवक्ता आकाश सिन्हा और शुभम साकेत ने भी जीआरसी के आवेदन का समर्थन करते हुए कहा था कि डीयू अदालत के आदेश का अनुपालन नहीं कर रही है।

दिल्ली हाई कोर्ट ने सात अगस्त को ऑनलाइन ओबीई के आयोजन को मंजूरी देते हुए सेवानिवृत्त न्यायमूर्ति प्रतिभा रानी के नेतृत्व में शिकायत निवारण समिति (जीआरसी) का पुनर्गठन किया था। पीठ ने ओबीई जारी रहने तक पैनल के कार्य करने एवं छात्रों की शिकायतों को पांच दिनों के भीतर हल करने का निर्देश दिया था।


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