2600 लोगों की शहादत का गवाह है गुरुद्वारा शहीदाने गुजरात ट्रेन, पढ़ें- बंटवारे की खूनी दास्तान
भारत बंटवारे के दौरान की यह दास्तान 10 जनवरी,1948 को उत्तरी पश्चिमी सीमांत प्रांत में रहने वाले हजारों हिंदू एवं सिख परिवारों को लेकर लौट रही गुजरात ट्रेन पर हुए हमले की है।
फरीदाबाद [सुशील भाटिया]। हजारों वीरों की कुर्बानियों और स्वतंत्रता सेनानियों के संघर्ष की बदौलत देश 15 अगस्त 1947 के दिन आजाद तो हो गया, लेकिन जाते-जाते भी अंग्रेज शासक देश को विभाजन का दंश दे गए। इस बंटवारे ने हजारों-लाखों लोगों को दशकों तक न भूलने वाले गहरा जख्म दिया है। बंटवारे से जुड़ी यादें लोगों के जेहन में जब भी आती हैं तो दिल रो पड़ता है और आंखें नम हो जाती हैं।
इन्हीं में एक दर्दनाक दास्तान 10 जनवरी,1948 को उत्तरी पश्चिमी सीमांत प्रांत में रहने वाले हजारों हिंदू एवं सिख परिवारों को लेकर लौट रही गुजरात ट्रेन पर हुए हमले की है। इस हमले में 2600 लोगों को अपनी जान गंवानी पड़ी थी। इतनी बड़ी संख्या में एक साथ निर्दोष लोगों की शहादत की यह घटना इतिहास के पन्नों में दर्ज है और इस सच्ची घटना के पलों को संजोए हुए है एनआइटी फरीदाबाद स्थित शहीदाने गुरुद्वारा गुजरात ट्रेन।
12 जनवरी को हुआ था घातक हमला
भारत से अलग होकर पाकिस्तान के रूप में एक नए मुल्क का दुनिया के नक्शे पर उदय हुआ। इस पर मानवता के दुश्मनों ने हिंदू-मुस्लिमों के बीच सांप्रदायिक दंगे भी करवा दिए थे। इन दंगों की आग में भारत और पाकिस्तान दोनों मुल्कों में रहने वाले लोग झुलसे। तब उत्तरी पश्चिमी सीमांत प्रांत (अब पाकिस्तान) के विभिन्न शहरों में रहने वाले करीब एक हजार हिंदू एवं सिख परिवार मजबूरी में अपना मूल वतन छोड़ कर 10 जनवरी 1948 को एक रेलगाड़ी में सवार होकर बन्नू स्टेशन से चले। सुरक्षा की दृष्टि से गोरखा रेजीमेंट के 60 जवान भी तैनात किए गए थे, पर कुछ कट्टरपंथियों की मिलीभगत से कबाइली मुसलमानों ने रेलगाड़ी का मार्ग बदलवा दिया और 12 जनवरी 1948 को जब यह रेलगाड़ी अल सुबह चार बजे गुजरात स्टेशन (अब पाकिस्तान में) पहुंची, तो पहले से घात लगाए बैठे कबाइलियों ने गाड़ी रुकवा ली और उसमें सवार लोगों पर गोलियां बरसा दी। गोरखा रेजीमेंट के जवानों ने इस अचानक हुए आक्रमण का डटकर मुकाबला तो किया पर असलहा कम होने के कारण जवान ज्यादा देर तक मुकाबला नहीं कर सके और शहीद हो गए। हमलावरों ने बंदूकों के साथ छुरियों व बरछों से करीब 2600 लोगों को मौत के घाट उतार लूटपाट करते हुए चले गए। अब जो इस हादसे में बच गए, वह अपना सब कुछ लुटा कर भारत पहुंचे।
फरीदाबाद में शुरू हुआ जिंदगी का सफर
शुरुआत में बचे हुए इन 1200 लोगों ने कुरुक्षेत्र में स्थापित अस्थाई शिविरों में कई दिन गुजारे, फिर फरीदाबाद में नए सिरे से जिंदगी का सफर शुरू किया। इन्हीं लोगों ने ट्रेन में शहीद हुए हजारों लोगों की स्मृति में एनआइटी नंबर पांच ई ब्लॉक में गुरुद्वारा शहीदाने गुजरात ट्रेन का निर्माण कराया, जहां पिछले 70 साल से प्रतिवर्ष 10 जनवरी से 12 जनवरी को धार्मिक समागम आयोजित कर शबद कीर्तन के जरिए उन शहीदों को भावभीनी श्रद्धांजलि दी जाती है। इस कार्यक्रम में देश-विदेश से हजारों की संख्या में लोग शामिल होते हैं।
बंटवार के दर्द को याद करते हुए 75 वर्षीय सुरेंद्र सिंह कहते हैं- 'मैं इस गाड़ी में अपने पिता प्रेम सिंह, माता नंद कौर, भाई हरबंस सिंह के साथ सवार था और सात साल का था। जब हमला हुआ तो मेरे पिता का हाथ कट गया, माता को पांच गोलियां लगी, ढाई वर्षीय भाई को गोली लगी, जिसकी वहीं मौत हो गई, जबकि मुझे भी पांच गोलियां हाथ, होंठ, सिर में लगी। मेरे दाएं हाथ की अंगुली व अंगूठा तो उसी समय काटना पड़ा, जबकि होंठ व आंख का आपरेशन हुआ।'
दविंदर अदलक्खा भी बताते हैं- 'यह गुरुद्वारा हमारे बुजुर्गों की शहादत की याद दिलाता है। नई पीढ़ी के मन-मस्तिष्क में यादें ताजा रहें, इसी कड़ी में प्रति वर्ष वार्षिक कीर्तन समागम होता है। यह अच्छी बात है।'
चरण दास गुलाटी (कैशियर, गुरुद्वारा प्रबंध समिति) कहते हैं- 'हमने इस हमले में अपने मामा चन राम अरोड़ा को खोया। अपने दूसरे मामा जीवन दास, माता खानी बाई, नानी व मासी के साथ यहां आया था। वो गहरे जख्म आज भी ताजा हैं।'