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आयुर्वेद चिकित्सा पद्धति दिलाएगी घुटना प्रत्यारोपण की मजबूरी से निजात

काया चिकित्सा विभाग के सह-आचार्य डा. योगेश पांडे ने बताया कि काले तिल व लाल सरसों आसानी से बाजार में उपलब्ध है और यह काफी सस्ता व स्थायी इलाज पद्धति है। ऐसे में हर वर्ग के मरीज इसका लाभ ले सकते है।

By Sanjay PokhriyalEdited By: Published: Tue, 21 Sep 2021 01:05 PM (IST)Updated: Tue, 21 Sep 2021 01:06 PM (IST)
आयुर्वेद चिकित्सा पद्धति दिलाएगी घुटना प्रत्यारोपण की मजबूरी से निजात
आयुर्वेद पद्धति कुछ सालों तक घुटनों में दर्द की समस्या से मरीज को राहत प्रदान करती है।

मनीषा गर्ग, नई दिल्‍ली। घुटनों के जोड़ों में दर्द की समस्या से राजस्थान के अलवर निवासी अजय शर्मा (42) इतने ग्रस्त थे कि उन्हें सीढ़ियां चढ़ने, बस में चढ़ने, नीचे बैठने तक में परेशानी होती थी। शुरुआत में उन्होंने एक माह तक चिकित्सा विशेषज्ञ से ऐलोपेथिक दवाइयां ली। पर हर बाद दवा लेने के दो-तीन घंटे बाद दवा का असर खत्म होने पर दर्द दोबारा शुरू हो जाता था।

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इस बीच वे एक स्वजन के माध्यम से खैरा डाबर स्थित चौ. ब्रह्म प्रकाश आयुर्वेदिक संस्थान पहुंचे, जहां विशेषज्ञों ने उनकी जांच के बाद उन्हें 10 ग्राम काले तिल व 10 ग्राम लाल सरसों के मिश्रण से तैयार लेप को दिन में दो बार लगाने व साथ में लाक्षा गुग्गुल दवा का दिन में तीन बार गर्म पानी से सेवन करने का सुझाव दिया। 45 दिन से लगातार अजय इलाज प्रक्रिया का पालन कर रहे हैं और काफी खुश हैं, क्‍योंकि अब न उन्हें घुटनों में कोई दर्द है और वे अब आसानी से सीढ़ियों पर चढ़ जाते हैं। अजय बताते हैं कि ऐलोपेथ चिकित्सकों द्वारा दी गई दर्द निरोधक दवाएं काफी गर्म थी और मन में डर था कि कहीं किडनी पर इनका दुष्प्रभाव न हो जाए। पर आयुर्वेद में ऐसा कोई डर नहीं है और दर्द भी अब छूमंतर हो गया है।

ऐलोपेथ चिकित्सा पद्धति में आस्टियोआर्थराइटिस के मरीजों को लंबे समय तक दर्द की दवाएं दी जाती है और परेशानी बढ़ने पर घुटना प्रत्यारोपण ही अंतिम सलाह है, पर ये दोनों ही इलाज प्रक्रिया स्थायी नहीं है और स्वास्थ्य पर भी इनका प्रतिकूल प्रभाव पड़ता है। दूसरा आर्थिक रूप से कमजोर लोगों के लिए घुटना प्रत्यारोपण कराना सरल नहीं है। इन सब के बीच आयुर्वेद चिकित्सा पद्धति में न सिर्फ मरीज को दर्द से आराम मिलता है बल्कि यदि इन पद्धतियों को लंबे समय तक जारी रखा जाए तो समस्या को बढ़ने से रोका जा सकता है और घुटनों में आए गैप को भरा जा सकता है। साथ ही सर्जरी से मरीज बच सकते हैं और जीवनस्तर को बेहतर बना

सकते हैं। इन सब के बीच आयुर्वेद चिकित्सा पद्धति में न सिर्फ मरीज को दर्द से आराम मिलता है बल्कि यदि इन पद्धतियों को लंबे समय तक जारी रखा जाए तो समस्या को बढ़ने से रोका जा सकता है। साथ ही सर्जरी से मरीज बच सकते हैं और जीवनस्तर को बेहतर बना सकते हैं।  

40 मरीजों पर किया गया शोध: आमतौर पर आयुर्वेद में घुटने में दर्द की समस्या यानि आस्टियोआर्थराइटिस के लिए दशांग लेप व लाक्षा गुग्गुल दवा को ही मान्यता प्राप्त है। पर हाल ही में हुई रिसर्च में काले तिल व लाल सरसों के मिक्षण से तैयार लेप के ज्यादा बेहतर परिणाम सामने आएं है। काया चिकित्सा विभाग में स्नातकोत्तर के विद्यार्थी व शोधकर्ता डा. प्रतीक मदान ने बताया कि ओपीडी में आस्टियोआर्थराइटिस की समस्या लेकर आएं 40 मरीजों को चिन्हित किया गया और उन्हें दो ग्रुप में विभाजित किया  गया। जिसमें ग्रुप-ए के 20 मरीजों का 45 दिन तक दशांग लेप व गुग्गुल लाक्षा इलाज पद्धति से इलाज किया गया। जबकि ग्रुप-बी के अन्य 20 मरीजों को काले तिल व लाल सरसों के लेप के साथ लाक्षा गुग्गुलु दवा खाने की सलाह दी गई। दोनों ही दवाओं का मरीजों पर सकारात्मक परिणाम सामने आया, पर काले तिल व लाल सरसों का इस्तेमाल करने वाले मरीजों में परिणाम 20 से 40 फीसद ज्यादा बेहतर सामने आएं।

घुटना बदलने की नहीं होगी जरूरत: डा. प्रतीक ने बताया कि 20 ग्राम दशांग लेप को दिन में दो बार घुटने के ऊपर दो-दो घंटे तक लगाकर रखना है। ठीक इसी प्रकार दस ग्राम काले तिल व दस ग्राम लाल सरसों को पीसकर तैयार लेप को भी दिन में दो बार घुटने के ऊपर दो-दो घंटे तक  लगाना है। दोनों ही लेप के साथ गर्म पानी के साथ दिन में तीन बार लाक्षा  गुग्गुलु दवा लेनी है। 15 दिन की जांच के बाद ही मरीजों को दर्द में काफी आराम

मिला है।

40 फीसद तक मिला आराम: गुरुग्राम के राजीव नगर निवासी सुंदर लाल 58 बताते हैं कि दो माह से मुझे घुटने

में दर्द की काफी समस्या थी। मैं बिल्कुल चल नहीं पा रहा था। चिकित्सकों ने मुझे आराम करने की सलाह दी और कई सारी दर्द निरोधक दवाएं खानी पड़ती थी। काफी समय तक मैंने उन दवाओं को खाया, ऐसा लग रहा था कि मैं जीवन के अंतिम पड़ाव पर आ गया  हूं। जीवन काफी नीरस हो गया था। इस बीच मेरे एक पड़ोसी ने चौ. ब्रह्म प्रकाश आयुर्वेदिक संस्थान के बारे में बताया। मैंने वहां जाकर चिकित्सक से मुलाकात की और उन्होंने मुझे दशांग लेप व लाक्षा गुग्गुलु दवा दी। बीते दो माह से मैं इस  इलाज पद्धति का पालन कर रहा हूं और मुझे 40 फीसद तक आराम महसूस हो रहा है। वहीं सुंदर लाल की पत्नी लक्ष्मी 58 ने बताया कि मैं आठ साल से घुटने में दर्द की समस्या से जूझ रही थी। लड़खड़ाकर चलती थी तो काफी खराब महसूस होता था। सीढ़ियां चढ़ने में काफी परेशानी होती थी। पर जब से मैंने दशांग लेप लगाना शुरू किया है  तब से मुझे काफी आराम मिला है।

क्या है आस्टियोआर्थराइटिस: आस्टियोआर्थराइटिस अर्थराइटिस का ही एक प्रकार है, जिसमें हड्डियों पर मौजूद

टिशूज में लचीलापन कम हो जाता है। इस रोग में हड्डियों के जोड़ों के कार्टिलेज घिस जाते हैं और उनमें चिकनाहट कम होने लगती है। आमतौर पर यह बीमारी अधेड़ावस्था यानी 40 से 50 या इससे अधिक उम्र वाले लोगों में होने की आशंका ज्यादा होती हैं, लेकिन शहरी जीवन में यह बीमारी युवाओं और बच्चों में भी दिखायी दे रही  है। जोड़ों में दर्द होना, जोड़ों में तिरछापन, चाल में खराबी, चलने-फिरने की  क्षमता का कम होना इसके प्रमुख लक्षण है। आस्टियोआर्थराइटिस में पांच स्टेज होती  हैं और सभी स्टेज के अलग-अलग लक्षण होते हैं।

डॉ. योगेश पांडे ने बताया लगातार उपयोग में आने के कारण घुटने के विभिन्न अवयवों में सूजन आने लगती है प्रारंभ में शरीर स्वयं ही इसको बेअसर करता रहता है, पर कालांतर में शरीर की यह प्रक्रिया निष्प्रभावी हो जाती है। तब जोड़ो में निरंतर शूल एवं शोथ रहने लगता है जिससे जोड़ो का पोषण प्रभावित होता है। पोषण के अभाव में स्थानिक रूप से वात का प्रकोप होता है जिससे की दर्द बढ़ जाता है। काले तिल व लाल सरसों के मिश्रण से तैयार लेप से जोड़ों में स्निग्ध एवं उष्ण होने के कारण वात का धुर विरोधी है, इससे स्थानिक रूप से प्रकुपित वात का शमन होता है। साथ ही इससे अंदर की अंदरूनी सूजन कम हाेती है। वहीं अश्वागंधा, शतावरी, लाक्षा गुग्गुल जैसी दवाइयों का आभ्यांतर प्रयोग हड्डियों को मजबूती प्रदान करता है।

यह इलाज पद्धति कुछ सालों तक घुटनों में दर्द की समस्या से मरीज को राहत प्रदान करती है। ऐसे में दर्द में आराम मिलने के बाद मरीज इस इलाज पद्धति को बंद कर सकते है और भविष्य में जरूरत पड़ने पर फिर शुरू कर सकते है। गौर करने वाली बात यह है कि यह इलाज पद्धति आस्टियोआर्थराइटिस की शुरुआती स्टेज पर ही कारगर है। जहां तक दशांग लेप की बात है यह पित्तशामक व जलन जैसी समस्याओं से निजात दिलाने में अधिक कारगर है तो अगर जोड़ो में सूजन, लालिमा और उष्णता हो तो यह लेप अधिक प्रभावी होगा। अध्ययन में केवल घुटने में दर्द के मरीजों को सम्मिलित किया गया, इसलिए तिल-सरसों का लेप अधिक प्रभावी पाया गया। दर्द निरोधक दवाओं की मदद से सूजन व घुटने पर लालिमा जैसी समस्या काफी हद तक निदान हो जाता है।  


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