Delhi News: गाजीपुर बूचड़खाने पर लग सकता है ताला, NGT ने दिए संकेत, जानें पूरा मामला
एनजीटी ने कहा कि गाजीपुर बूचड़खाने को चलाने की अनुमति नहीं दे सकते। एक याचिकाकर्ता ने शिकायत की थी कि पशुओं को काटने के बाद उसका अपशिष्ट और गंदे पानी को बिना शोधित किए नाले और हिंडन नहर में डाला जा रहा है।
नई दिल्ली [स्वदेश कुमार]। गाजीपुर स्थित बूचड़खाने पर संशय के बादल मंडराने लगे हैं। नेशनल ग्रीन ट्रिब्यूनल (एनजीटी) ने हाल ही एक आदेश जारी किया है। इसमें उसने कहा है कि हम गाजीपुर बूचड़खाने को चलाने की अनुमति नहीं दे सकते, जब तक कि डीपीसीसी (दिल्ली प्रदूषण नियंत्रण समिति) और सीपीसीबी (केंद्रीय प्रदूषण नियंत्रण बोर्ड) की संयुक्त समिति यह प्रमाणित नहीं करती कि यह पर्यावरण नियमों के अनुकूल है।
शिकायतकर्ता एलेना प्राइवेट लिमिटेड नामक कंपनी के वकील एसए जैदी का कहना है कि एनजीटी का आदेश इसे बंद करने के लिए है। लेकिन निगम अधिकारियों का कहना है कि आदेश में मंजूरी नहीं मिली है। डीपीसीसी और सीपीसीबी की रिपोर्ट के बाद ही इस पर कोई फैसला होगा। इस वजह से अभी गाजीपुर बूचड़खाना को बंद नहीं किया गया है।
शिकायतकर्ता का आरोप है कि गाजीपुर बूचड़खाने से पर्यावरण को नुकसान पहुंच रहा है। पशुओं को काटने के बाद उसका अपशिष्ट और गंदे पानी को बिना शोधित किए नाले और हिंडन नहर में डाला जा रहा है। इसे लेकर उसने एनजीटी में शिकायत दी थी। इस शिकायत पर 13 मई को सुनवाई करते हुए एनजीटी ने कहा कि अगर बूचड़खाने को अनुमति दी जाती है तो डीपीसीसी और सीपीसीबी की संयुक्त समिति पर्यावरण जल शोधन के नियमों का सौ फीसद पालन सुनिश्चित करे।
यह है मामला
दरअसल यह मामला करीब तीन साल से चल रहा है। 2019 में इसी शिकायत के आधार पर डीपीसीसी ने गाजीपुर बूचड़खाने पर 50 लाख रुपये का जुर्माना लगाया था। इसके बाद एनजीटी के आदेश पर डीपीसीसी, सीपीसीबी, दिल्ली पुलिस, जिला प्रशासन और नगर निगम की संयुक्त समिति का गठन हुआ था। समिति ने यहां निरीक्षण में कई खामियां पाई थीं। इसकी रिपोर्ट 29 अप्रैल, 2021 में पेश की थी।
इसमें जो खामियां बताई गई थीं, उनमें से कई को दूर करने का दावा किया गया था। लेकिन पानी की समस्या दूर नहीं हो पाई। निगम ने बूचड़खाने के लिए दिल्ली जल बोर्ड से पानी की मांग की थी। जल बोर्ड ने पानी उपलब्ध कराने से हाथ खड़े कर दिए थे। इस वजह से यहां बोरवेल से पानी निकाला जा रहा है। एक महीने पहले तक यहां पांच बोरवेल थे। पिछले महीने जिला प्रशासन ने एक बोरवेल को सील कर दिया था। इस तरह से अब चार चल रहे हैं।
पूर्वी निगम के पशु चिकित्सा विभाग के निदेशक डा. मूलचंद शर्मा ने बताया कि दिल्ली में एक ही बूचड़खाना है। यह बगैर पानी के नहीं चल सकता है। जल बोर्ड से पानी नहीं मिलने की वजह से बोरवेल का प्रयोग किया जा रहा है। अब डीपीसीसी और सीपीसीबी के साथ बैठक कर इसका हल निकाला जाएगा।
गाजीपुर बूचड़खाने पर एक नजर
880 किलोलीटर प्रतिदिन पानी की है जरूरत।
15,000 पशु प्रतिदिन काटने की है क्षमता।
इसमें 1500 भैसें और 13,500 भेड़-बकरियां शामिल हैं।
इस बूचड़खाने से पूरी दिल्ली में होती है आपूर्ति।