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भविष्य में आसान नहीं होगा भाजपा के खिलाफ महागठबंधनःचंद्रचूड़ सिंह

कांग्रेस नेतृत्व की कमजोरी से विपक्ष एकजुट हुआ और कांग्रेस हाशिए पर चली गई। वर्तमान में भी हालात कमोवेश वही हैं। विपक्ष में कोई ऐसा मजबूत नेता नहीं है जिसकी सभी में स्वीकार्यता हो।

By JP YadavEdited By: Published: Tue, 28 Mar 2017 09:34 AM (IST)Updated: Tue, 28 Mar 2017 10:02 AM (IST)
भविष्य में आसान नहीं होगा भाजपा के खिलाफ महागठबंधनःचंद्रचूड़ सिंह
भविष्य में आसान नहीं होगा भाजपा के खिलाफ महागठबंधनःचंद्रचूड़ सिंह

नोएडा (आशुतोष अग्निहोत्री)। राजनीति में कुछ भी असंभव नहीं है। यहां न कोई दुश्मन है और न दोस्त। क्षणिक हानि-लाभ के लिए यहां परिस्थितियां तेजी से बदलती हैं। बिहार में पिछले विधानसभा चुनाव में भाजपा के खिलाफ कांग्रेस, राजद, और जद यू सहित छोटी पार्टियों का महागठबंधन भी इसकी परिणिति था। ‘क्या भाजपा के खिलाफ विपक्ष का महागठबंधन संभव है’ विषय पर आयोजित में हिंदू कॉलेज के राजनीति विज्ञान के प्राध्यापक प्रोफेसर चंद्रचूड़ सिंह ने सोमवार को अपने विचार रखे।

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उन्होंने कहा कि भविष्य में राष्ट्रीय परिदृश्य में भी महागठबंधन की संभावना से सैद्धांतिक रूप से इन्कार नहीं किया जा सकता। हालांकि मौजूदा परिस्थिति में यह व्यावहारिक रूप से आसान नहीं नजर आता। क्षेत्रीय पार्टियों के क्षत्रपों की अपनी-अपनी आकांक्षाएं हैं। वे उन्हें भुलाकर किसी तरह एक मंच पर आ भी गए तो राष्ट्रीय स्तर पर इसकी स्वीकार्यता बहुत मुश्किल होगी।

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प्रोफेसर सिंह ने कहा कि लंदन के प्रसिद्ध दार्शनिक जॉन स्टुअर्ट मिल ने 1857 में कहा था कि भारत लोकतंत्र के अनुकूल नहीं है। इसके पीछे उन्होंने तर्क भी दिया था कि शिक्षा और संपन्नता के बिना लोकतंत्र की अवधारणा स्वीकार नहीं की जा सकती।

बावजूद इसके भारत विश्व का मजबूत लोकतंत्र बनकर उभरा है तो इसके पीछे कहीं न कहीं भारतीयों की लोकतंत्र में अगाध निष्ठा है। देश की आजादी के बाद से 1977 तक भारत में एक ही दल का बर्चस्व रहा। इसके पीछे कहीं न कहीं सत्ता पक्ष की मजबूत लीडरशिप और टुकड़ों में बंटा हुआ विपक्ष था। 80 के दशक में परिस्थितियां बदलीं।

कांग्रेस नेतृत्व की कमजोरी से विपक्ष एकजुट हुआ और कांग्रेस हाशिए पर चली गई। वर्तमान में भी हालात कमोवेश वही हैं। हालांकि इस बार विपक्ष में कोई ऐसा मजबूत नेता नहीं है जिसकी सभी में स्वीकार्यता हो। बिहार के उदाहरण पर उन्होंने कहा कि वहां के मुद्दे क्षेत्रीय थे। दस साल तक सत्ता से दूर रहे राजद में वापसी की छटपटाहट थी तो जातिगत आंकड़े भी महागठबंधन के अनुकूल थे। राष्ट्रीय राजनीति इसके ठीक उलट है। जिन नेताओं को केंद्र में रखकर महागठबंधन की बात हो रही है, उनकी वैचारिक असमानता और क्षेत्रीय मुद्दों की उनकी राजनीति राष्ट्रीय मुद्दों पर भारी है।

समय तय करेगा भविष्य की राजनीति

प्रोफेसर सिंह ने कहा कि 2014 में केंद्र की सत्ता का विरोध, मोदी लहर और मतदाताओं का ध्रुवीकरण कहीं न कहीं बड़ा मुद्दा था। सत्ता में आने के बाद भाजपा सरकार ने युवाओं को विकास का सपना दिखाया तो पार्टी का दायरा बढ़ता चला गया।

उत्तर प्रदेश के विधानसभा चुनाव में विकास भी एक बड़ा मुद्दा बना। अब आगे की लड़ाई मुख्य रूप से विकास पर ही आधारित होगी। 2019 में केंद्र सरकार का भविष्य भी यही युवा तय करेंगे, जिन्होंने एक सपने के साथ मोदी को केंद्र में बिठाया है। ऐसे में विपक्ष को फिलहाल समय का इंतजार करना होगा।


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