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Gandhi Jayanti 2019: जब जामिया के लिए कटोरा लेकर उतरने तक को तैयार थे गांधी

2 October प्रो. सुशील कुमार रूद्र ने अपने कॉलेज में अंग्रेजी के अध्यापक एंन्ड्रूज साहब से आग्रह किया कि वे गांधी जी से बात करें कि अपनी पहली दिल्ली यात्रा के दौरान यहीं रुकें।

By Prateek KumarEdited By: Published: Wed, 02 Oct 2019 03:23 PM (IST)Updated: Wed, 02 Oct 2019 03:23 PM (IST)
Gandhi Jayanti 2019: जब जामिया के लिए कटोरा लेकर उतरने तक को तैयार थे गांधी
Gandhi Jayanti 2019: जब जामिया के लिए कटोरा लेकर उतरने तक को तैयार थे गांधी

नई दिल्ली, जेएनएन। 2 October: गांधी, जो कहते वो दिल्ली को मंजूर होता। दिल्ली के चप्पे चप्पे पर गांधी के निशां दिखते हैं। यहां उनके नाम पर सड़कें, शिक्षण संस्थान, कॉलोनियों के नाम हैं। दिल्ली जो आज लगातार विकास के पथ पर अग्रसर है, उसके पीछे गांधी की सोच भी है। दरअसल, गांधी शिक्षा व्यवस्था में आमूलचूक परिवर्तन के सारथी बने। उन्होंने आधुनिक शिक्षा की नींव रखने के साथ-साथ युवाओं को देशभक्ति के असल मायने भी बताए। जामिया मिल्लिया इस्लामिया विश्वविद्यालय, मार्डन स्कूल, तिबिया कॉलेज की स्थापना में गांधी की सोच परिलक्षित होती है।

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सेंट स्‍टीफंस कॉलेज बना पहली बार दिल्‍ली आने का कारण

यह महज संयोग ही नहीं था कि गांधी का पहली बार दिल्ली आने का कारण भी सेंट स्टीफंस कॉलेज बना। गांधी, 25 जनवरी, 1930 को हिंदू कॉलेज भी गए थे। 'गांधी दिल्ली' किताब के लेखक व इतिहासकार विवेक शुक्ला कहते हैं कि 1920 से पहले दिल्ली में सिर्फ सरकारी स्कूल थे। पब्लिक स्कूल न के बराबर थे। हां, अंग्रेजों ने कुछ स्कूल खोले थे लेकिन वहां प्रवेश से लेकर शिक्षा पद्धति सब ब्रितानिया हुकूमत के अनुसार थी। गांधी मिशनरी भावना से स्कूल संचालित करने के पक्षधर थे। गांधी का दिल्ली में पहले आगमन का गवाह भी कॉलेज ही बना।

आज चलता है दिल्‍ली सरकार का ऑफिस

दरअसल, सेंट स्टीफंस कॉलेज के प्रिसिंपल प्रो. सुशील कुमार रूद्र ने अपने कॉलेज में अंग्रेजी के अध्यापक, समाज सेवी और ईसाई मिशनरी एंन्ड्रूज साहब से आग्रह किया कि वे गांधी जी से बात करें कि अपनी पहली दिल्ली यात्रा के दौरान सेंट स्टीफंस कॉलेज में ही रुकें। और यह हुआ भी। एंन्ड्रूज के आग्रह पर गांधी जी 12 अप्रैल को पुरानी दिल्ली रेलवे स्टेशन पर कस्तूरबा गांधी और अपने कुछ सहयोगियों के साथ पहुंचे। उन दिनों सेंट स्टीफंस कॉलेज कश्मीरी गेट की उस इमारत में होता था, जिधर अब दिल्ली सरकार के कुछ दफ्तर काम कर रहे हैं। गांधी जी यहां 15 अप्रैल, 1915 तक ठहरे। इस दौरान वे कॉलेज बिरादरी से मिलते हैं। उनसे सत्य, अंहिसा और भारत की आजादी जैसे सवालों पर विस्तार से बातें होती हैं। इस बातचीत के दौरान गांधी दिल्ली के युवाओं को भी भांपते हैं। यह गांधी के विचारों का ही प्रभाव है कि यहां गांधी स्टडी सर्कल चलता है।

गांधी के पत्रों में भी झलकता है जामिया के प्रति प्रेम

इतिहासकार सोहेल हाशमी कहते हैं कि गांधी जी मानते थे कि शिक्षा हिंदुस्तानी होनी चाहिए। अंग्रेजों की शिक्षा पद्धति देश-दुनिया को उनकी नजरों से देखती है। ऐसा हरगिज नहीं होना चाहिए। यही वजह थी कि उन्होंने हिंदुस्तानी तालीम का एक थीसिस दिया था। जामिया मिल्लिया इस्लामिया उनकी इसी सोच का प्रतिफल था। गांधी का लगाव इसी से पता चलता है कि आर्थिक रूप से कमजोर जामिया की मदद के लिए गांधी ने चंदा मांगने कटोरा लेकर सड़क पर खुद उतरने की बात भी कही थी। दरअसल, यह विश्वविद्यालय गांधी के स्वदेशी आंदोलन से ही निकला था।

शिक्षण संस्‍थान हुए थे अभियान में शामिल

बकौल हाशमी, स्वदेशी आंदोलन के समय अंग्रेजों की हर चीज का बहिष्कार करने की अपील की गई। इसमें शिक्षण संस्थान भी शामिल थे। बाद में खिलाफत आंदोलन ने जोर पकड़ा। अलीगढ़ मुस्लिम विश्वविद्यालय (तत्कालीन मोहम्मडन एंड ओरिएंटल कॉलेज) के 200 छात्रों ने विश्वविद्यालय छोड़ वॉक आउट किया। इनका नेतृत्व युवा जाकिर हुसैन कर रहे थे जो आगे चलकर राष्ट्रपति पद पर सुशोभित हुए। पहले अलीगढ़ में ही किराए की बिल्डिंग में जामिया की स्थापना हुई। बाद में दिल्ली स्थानांतरित हुई।

चंदा अभियान हुआ शुरू

दरअसल, दिल्ली के पुराने हकीमों के परिवार से संबंध रखने वाले हकीम अजमल खां तिबिया कॉलेज चलाते थे। इन्होंने करोल बाग में कॉलेज की जमीन पर जामिया मिल्लिया इस्लामिया शुरू कराया। बाद में महात्मा गांधी ने चंदा अभियान शुरू कराया। गांधी इससे किस कदर दिल से जुड़े थे यह उनके पत्रों भी झलकता है। जामिया के कुलपति समेत अन्य को लिखे पांच पत्र आज भी सुरक्षित हैं। गांधी के पांच पत्रों की प्रदर्शनी भी लगाई जाएगी।

कैदियों की भी ली थी क्लास

एक और शिक्षा का मंदिर है जिसकी स्थापना में बापू का अहम योगदान रहा। बकौल विवेक शुक्ला देश गांधी की 150वीं जन्मशती मना रहा है एवं बाराखंभा रोड स्थित मार्डन स्कूल अपनी स्थापना के सौवें वर्ष में पहुंच जाएगा। गांधी जी ने 20 अक्टूबर, 1920 को इसकी आधरशिला रखी थी। वे यहां 1935 में भी आए। गांधी ने इसके संस्थापक लाला रघुबीर सिंह को इस तरह का स्कूल खोलने की सलाह दी थी जहां पर मिशनरी भाव से शिक्षा भारतीय परम्पराओं के अनुसार दी जाए। वहीं तिब्बिया कॉलेज का उद्घाटन भी गांधी के दूरदर्शी सोच को दर्शाता है।

धीरे-धीरे दोस्‍ती हो गई प्रगाढ़

गांधी जब पहली बार दिल्ली आए थे तो हकीम अजमल खां से लाल कुआं में मुलाकात की थी। बाद में इन दोनों की दोस्ती प्रगाढ़ हो गई। गांधी ने ही अजमल खां को अस्पताल खोलने का सुझाव दिया था। उस वक्त तक हकीम साहब लाल कुआं में ही प्रैक्टिस करते थे। उन्होंने ही इसका 13 फरवरी 1921 को उद्घाटन किया। फिर यहां का परिसर कांग्रेस के सम्मेलनों का गढ़ बन गया। गांधी जी ने दिल्ली में सिर्फ शैक्षणिक संस्थानों की स्थापना में ही योगदान नहीं दिया बल्कि जब भी समय मिला वो खुद बच्चों को भी पढ़ाते थे। मंदिर मार्ग स्थित वाल्मीकि मंदिर इलाके में ही महात्मा गांधी 200 से ज्यादा दिन रहे।

बच्‍चों को पढ़ाते थे बापू

यहां बापू बस्ती के बच्चों को भी पढ़ाते थे। ऐसा कहा जाता है कि यहां गांधी छोटे छोटे बच्चों को भी पढ़ाया करते थे। यही नहीं 25 अक्टूबर 1947 को महात्मा गांधी दिल्ली स्थित सेंट्रल जेल पहुंचे। यहां करीब 3000 कैदियों की उन्होंने क्लास ली। उन्होंने कहा कि, जब उन्हें यहां आने का निमंत्रण मिला तो वो काफी प्रसन्न हुए। क्यों कि दक्षिण अफ्रीका और भारत में कई बार वो खुद कैदी रह चुके हैं। उन्होंने जेल प्रवास के दौरान अपनी दिनचर्या, अपनी यादें भी कैदियों से साझा की। साथ ही उन्होंने नसीहत भी दी कि जेल सिर्फ कैदखाना नहीं सुधरने की जगह है।

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