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अस्पताल की खुली लूटः आद्या के पिता ने फोर्टिस पर उठाए गंभीर सवाल

फोर्टिस अस्पताल में डेंगू से पीड़ित आद्या की मौत पर पिता जयंत ने कहा कि मेरी बेटी के लिए फोर्टिस के डॉक्टर अमानवीय थे।

By JP YadavEdited By: Published: Tue, 21 Nov 2017 04:34 PM (IST)Updated: Wed, 22 Nov 2017 07:12 AM (IST)
अस्पताल की खुली लूटः आद्या के पिता ने फोर्टिस पर उठाए गंभीर सवाल
अस्पताल की खुली लूटः आद्या के पिता ने फोर्टिस पर उठाए गंभीर सवाल

नई दिल्ली (जेएनएन)। दिल्ली-एनसीआर के नामी अस्पताल फोर्टिस (गुरुग्राम) में एक सात साल की बच्ची की डेंगू के चलते मौत हो गई। बच्ची की मौत होने के बाद अस्पताल उसका शव ले जाने से पहले उसके परिजनों को तकरीबन 16 लाख रुपये का बिल देने को कहा। इस बिल में 2700 दस्‍ताने का बिल भी शामिल हैं।

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हैरानी की बात है कि इतना खर्च करने के बाद अस्पताल बच्ची को नहीं बचा सका। इस पर बच्ची आद्या के पिता ने तीखी प्रतिक्रिया दी है। 

मेरी बेटी के लिए अमानवीय थे फोर्टिस अस्पताल के डॉक्टर

गुरुग्राम के फोर्टिस अस्पताल में डेंगू से पीड़ित आद्या की मौत पर पिता जयंत ने कहा कि मेरी बेटी के लिए फोर्टिस के डॉक्टर अमानवीय थे। न्याय की मांग करते हुए जयंत ने कहा कि द्वारका के रॉकलैंड अस्पताल में दो दिनों तक रखने के बाद जब बेटी की हालत में सुधार नहीं हुआ तो बेहतर इलाज के लिए उसे फोर्टिस अस्पताल ले गया था, लेकिन डॉक्टरों की लापरवाही से मेरी बेटी इस दुनिया में नहीं रही। 

मृतक बच्ची के पिता का कहना है कि बच्ची को डेंगू के ईलाज के लिए फोर्टिस अस्पताल में लाया गया था। डाक्टरों का कहना था कि बच्ची की हालत 24 घंटे में ठीक हो जाएगी पर उसकी हालत बिगड़ती ही चली गई।

द्वारका सेक्टर 12 स्थित शुभम अपार्टमेंट में रहने वाले जयंत का कहना है कि सिर्फ दो सप्ताह का बिल मुझे तकरीबन 16 लाख रुपये बताया गया। प्रतिदिन एक लाख रुपये का बिल था। डेंगू के इलाज में 500 रुपये की जो दवा दी जानी चाहिए थी, उसके लिए तीन हजार रुपये चार्ज किए गए।

यह भी पढ़ेंः अस्पताल की खुली लूट- 15 दिन का बिल 18 लाख, फिर भी न बची बच्ची की जान

इसके अलावा इलाज के दौरान और कौन-कौन से खर्चे किए गए, उसकी पूरी जानकारी हमें नहीं दी गई। उन्होंने बताया कि अमानवीयता इस हद तक थी कि मेरी बेटी का शव भी बिना पैसे जमा कराए देने को अस्पताल प्रबंधन तैयार नहीं हुआ।

उन्होंने कहा कि आद्या की मृत्यु से तीन दिन पहले ही ड्रिप व डायलेसिस को बंद कर दिया गया था। डॉक्टर जान गए थे की इसका बचना मुश्किल है। फिर भी हमें इस बात की जानकारी तक नहीं दी गई।

उन्होंने बताया कि सप्ताह के अंत में अस्पताल में कोई भी चिकित्सक नहीं होता था जो हमें बेटी के स्वास्थ्य के बारे में जानकारी दे सके।

इतना ही नहीं अस्पताल प्रबंधन मृत्यु प्रमाणपत्र देने को तैयार नहीं था। शव को ले जाने के लिए हमने एंबुलेंस की मांग की, लेकिन हमें एंबुलेंस तक की सुविधा नहीं दी गई।

सरकार को इस अस्पताल के खिलाफ सख्त कदम उठाने चाहिए, जिससे कि इस तरह का व्यवहार अन्य मरीजों के साथ नहीं हो सके। उन्होंने कहा कि दो सप्ताह के इलाज के दौरान डॉक्टरों ने 2700 दस्ताने व 660 सीरिंज का इस्तेमाल किया। क्या यह किसी भी दृष्टकोण से ठीक लग रहा है।

उन्होंने कहा कि ब्लड बैंक का खर्चा 61315, डॉक्टर चार्ज 53900, दवाई का खर्चा 273394 के अलावा एक कमरे का किराया 174000 रुपये का दिया गया। इसके अलावा भी कई चार्ज हमसे लिए गए। उन्होंने कहा कि क्या हम इसे ठीक कह सकते हैं?
 


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