कहर का दूसरा नाम थे जवान रीक्षपाल, वीरता को पूर्व पीएम इंदिरा गांधी ने भी किया था सलाम
रीक्षपाल ने दुश्मनों पर अपनी बंदूक का मुंह खोल दिया। कई दुश्मनों को मौत की नींद सुला दिया। उनकी गोलियों के आगे दुश्मनों के पैर उखड़ गए और मोर्चा लेने की हिम्मत नहीं जुटा सके।
मनीष तिवारी [ग्रेटर नोएडा]। देश की आजादी के लिए पिता ने आजाद हिंद फौज में रहते हुए अंग्रेजों से मोर्चा लिया। पिता के जोश व जज्बे से सीख लेकर बेटे रीक्षपाल सिंह भाटी ने भी देश की रक्षा के लिए सेना का दामन थामा। दिल में देशप्रेम का जज्बा लिए 1971 की लड़ाई में पाकिस्तान से डटकर मोर्चा लिया। उनकी गोलियों की बौछार के आगे दुश्मन नेस्तनाबूत हो गए।
गांव के लोगों की जुबान पर वीरता की कहानी
जवाब में दुश्मन ने बमबारी की। हमले में शरीर का हिस्सा क्षत-विक्षत हो गया, लेकिन हाथ से बंदूक नहीं छूटी। पाकिस्तान के साथ युद्ध में अदम्य साहस दिखाने वाले रीक्षपाल सिंह के परिवार के लोगों को उनके शव के अंतिम दर्शन भी नसीब नहीं हुए। जुनपत गांव निवासी रीक्षपाल सिंह भाटी की शहादत के 47 वर्ष बाद भी उनकी दिलेरी की कहानी लोगों की जुबान पर है।
देश के प्रति अगाध प्रेम
रीक्षपाल सिंह के दिल में देश के प्रति अगाध प्रेम था। उनके पिता खचेडू सिंह आजाद हिंद फौज के जवान थे। देश की सेवा के प्रति पिता से मिली सीख के बाद वर्ष 1969 में रीक्षपाल थल सेना में सिपाही के रूप में भर्ती हुए। मात्र तीन साल में ही उन्हें अपनी वीरता दिखाने का मौका मिल गया। 1971 में पाकिस्तान से युद्ध हुआ। लड़ाई के वक्त उनकी ड्यूटी ढाका पोस्ट पर थी। 13-14 नवंबर की रात गुर्जर बटालियन के जवान दुश्मनों पर कहर बनकर टूट पड़े।
दुश्मनों के पैर उखड़ गए
भारत माता की जय घोष करते हुए रीक्षपाल ने दुश्मनों पर अपनी बंदूक का मुंह खोल दिया। कई दुश्मनों को मौत की नींद सुला दिया। उनकी गोलियों के आगे दुश्मनों के पैर उखड़ गए और मोर्चा लेने की हिम्मत नहीं जुटा सके। बाद में दुश्मनों ने उन पर बम से हमला कर दिया। हमले में वीर रीक्षपाल का शरीर क्षत-विक्षत हो गया।
अंतिम दर्शन भी नहीं कर सका परिवार
रीक्षपाल सिंह की शहादत के दो दिन बाद परिवार के पास उनके शहीद होने की सूचना आई। साथ ही बताया गया कि शरीर क्षत-विक्षत हो जाने के कारण अंतिम संस्कार भी वहीं पर कर दिया गया। परिवार व गांव के लोगों को वीर के अंतिम दर्शन भी नसीब नहीं हुए।
इंदिरा गांधी ने वीर को किया था सलाम
तत्कालीन प्रधानमंत्री इंदिरा गांधी ने आठ दिसंबर को पत्र लिखकर रीक्षपाल सिंह की वीरता को सलाम किया था। इस जांबाज के सम्मान में गांव में एक सड़क का नाम शहीद रीक्षपाल के नाम पर रखा गया। उनकी वीरता को नमन करते हुए सरकार ने परिवार को 15 बीघा जमीन दी, लेकिन पिछले कुछ वर्षों से जमीन विवाद के बीच फंस गई है।