केदारनाथ सिंहः उत्तर प्रदेश के रहने वाले कवि ने JNU को बनाया था अपना कर्मक्षेत्र
आधुनिक हिंदी कविता का एक जीवंत कवि हमारे बीच से चला गया, जिससे हिंदी कविता का कोना सूना हो गया।
नई दिल्ली (जेएनएन)। हिंदी के वरिष्ठ कवि केदारनाथ सिंह का सोमवार को दिल्ली के अखिल भारतीय आयुर्विज्ञान संस्थान (एम्स) में निधन हो गया। उनका जन्म उत्तर प्रदेश के बलिया जिले के चकिया में हुआ था। उनकी हाई स्कूल से लेकर एमए तक की शिक्षा बनारस में हुई। 1964 में उन्होंने ‘आधुनिक हिंदी कविता में बिंब विधान’ विषय पर पीएचडी की। वह छात्र जीवन से ही कविता लिखने लगे थे। 1959 में अज्ञेय द्वारा संपादित ‘तीसरा सप्तक’ के सहयोगी कवि के रूप में उनकी कविताएं शामिल की गई थीं। उनका पहला कविता संग्रह ‘अभी बिल्कुल अभी’ 1960 में प्रकाशित हुआ था।
केदारनाथ सिंह ने अध्यापक के रूप में अपने करियर की शुरुआत उदय प्रताप कॉलेज, वाराणसी से की थी। उन्होंने सेंट एंड्रयूज कॉलेज, गोरखपुर और उदित नारायण कॉलेज, पडरौना में भी अध्यापन किया। 1976 से 1999 तक जेएनयू के भारतीय भाषा केंद्र में अध्यापन किया और बाद में भी प्रोफेसर एमिरेट्स के तौर पर वहां से जुड़े रहे। 1989 में उनकी कृति ‘अकाल में सारस’ को साहित्य अकादमी पुरस्कार मिला था।
उन्हें मध्य प्रदेश का मैथिलीशरण गुप्त सम्मान, केरल का कुमारन अशान सम्मान, बिहार का दिनकर सम्मान और उत्तर प्रदेश का भारत भारती सम्मान भी मिला था। केदारनाथ सिंह को प्रतिष्ठित व्यास सम्मान और 2013 में ज्ञानपीठ सम्मान से सम्मानित किया गया था।
उन्हें साहित्य अकादमी ने अपना महत्तर सदस्य बनाकर सम्मानित किया था। उनकी कविताओं का अंग्रेजी, हंगेरियन, रूसी, इतावली समेत दुनिया की कई अन्य भाषाओं में अनुवाद हो चुका है। उनकी प्रमुख काव्य कृतियां, जमीन पक रही है, यहां से देखो, अकाल में सारस, उत्तर कबीर और अन्य कविताएं, टालस्टॉय और सायकिल, बाघ हैं। केदारनाथ सिंह अपने मोहक गद्य के लिए भी याद किए जाएंगे।
उनकी प्रमुख गद्य कृतियां हैं
कल्पना और छायावाद, आधुनिक हिंदी कविता में बिंब विधान, मेरे समय के शब्द। केदारनाथ सिंह के निधन पर साहित्य जगत में शोक की लहर है। वरिष्ठ कवि अशोक वाजपेयी ने कहा कि केदार जी इस वक्त के सबसे वरिष्ठ, सबसे सौम्य और अजातशत्रु कवि थे। उन्होंने कभी कच्ची कविताएं नहीं लिखी और उनका काव्यानुशासन अप्रतिम था। उनकी कविताओं में गांव देहात जीवित रहा जो आज के समय में दुर्लभ है। उनके निधन पर आलोचक भारत भारद्वाज ने कहा कि तार सप्तक परंपरा का एक कवि हमसे बिछुड़ गया। आधुनिक हिंदी कविता का एक जीवंत कवि हमारे बीच से चला गया, जिससे हिंदी कविता का कोना सूना हो गया।