महरम और गैर महरम के बीच पर्दा, महिलाओं को नहीं मिलती मजार पर जाने की इजाजत
हजरत निजामुद्दीन स्थित हुमायूं के मकबरे के पास हजरत पत्त शाह व हजरत शाह अब्दुल कादिर की मजार बनी हुई है। यहां महिलाओं के जाने पर प्रतिबंध नहीं है।
नई दिल्ली [शुजाउद्दीन]। राजधानी दिल्ली में एक बार फिर से हजरत निजामुद्दीन औलिया साहब की मजार पर महिलाओं के जाने का मामला चर्चा में है। दिल्ली को 22 सूफी संतों की चौखट भी कहा जाता है। अधिकतर मजारें पुरुषों की हैं, लेकिन कुछ मजार महिलाओं की भी हैं।
एक सवाल जो समय समय पर महिलाओं व अन्य लोगों की ओर से उठता है कि मजारों पर महिलाओं को प्रवेश क्यों नहीं दिया जाता है। यहां गौर करने वाली बात एक यह भी है कि बहुत सी महिलाओं की मजार पर पुरुषों के जाने पर पूरी तरह पाबंदी है। इन मजारों के बाहर खड़े होकर पुरुष ठीक उसी तरह से जियारत करते हैं जैसे महिलाएं पुरषों के मजारों पर करती हैं।
हजरत निजामुद्दीन दरगाह में 30 से अधिक मजार हैं और सबसे बड़ी मजार खुद हजरत निजामुद्दीन साहब की है। जागरण संवाददाता ने दरगाह कमेटी के सदस्यों व अकीदतमंदों से जब निजामुद्दीन साहब के मजार पर महिलाओं के प्रवेश पर लगे प्रतिबंध पर बात की उन्होंने कहा हजरत बड़े सूफी संत हैं, उन्होंने अपना पूरा जीवन खुदा की इबादत करने में गुजार दिया। वह अपने परिवार के अलावा अन्य महिलाओं से पर्दा करते थे। यही कारण है की महिलाओं को मजार पर जाने नहीं दिया जाता।
दरगाह के नायब सज्जादानशीन फरीद अहमद निजामी ने कहा कि पहली बात दरगाह में महिलाओं के प्रवेश पर प्रतिबंध नहीं है, जिस कमरे में हजरत की मजार बनी हुई है। वह काफी छोटा है, मजार के चारों ओर इतनी जगह है कि एक एक आदमी दीवार के सहारे खड़ा हो सकता है। बड़ी संख्या में अकीदतमंद जियारत के लिए आते हैं, महिलाओं को कोई परेशानी न हो इसलिए मजार के बाहर दो स्थान महिलाओं के लिए सुरक्षित हैं। यहां महिलाएं दुआ, कुरआन व जियारत कर सकती हैं।
इस्लामिक स्कॉलर साजिद वदूद ने कहा कि चार कारणों के चलते महिलाओं का मजार पर जाने से मना किया गया। पहला कुरआन में भी इस बात का जिक्र है कि पैगंबर मोहम्मद साहब ने महिलाआें को कब्रिस्तान व मजारों पर जाने से मना किया है। दूसरा कारण है पर्दा, इस्लाम में पुरुष और महिला दोनों को पर्दे का हुक्म दिया है। चूंकि मजार सूफी संतों की होती है और वह अपनी दीन के पक्के थे। वह अपनी घर की महरम (घर की महिलाओं) के सामने आ जाते थे, लेकिन गैर महरम (अन्य महिलाओं के सामने नहीं आते थे), जब वह अपने जीवत रहते गैर महरम से पर्दा करते थे तो मरने के बाद पर्दा कैसे खत्म करवाया जा सकता है। तीसरा कारण है महिलाओं की अपवित्रता (महावारी), मजार पाक स्थान होता है। चौथा है अपमान (बेहुरमती) महिला और पुरुष अगर एक साथ मजार में गए तो उनसे किसी न किसी तरह अपमान हो सकता है।
40 कदम की दूरी पर रूक जाती हैं महिलाएं
महरौली स्थित हजरत कुतुबुद्दीन बख्तियार काकी की मजार से पहले ही महिलाओं को रोक दिया जाता है, दरगाह की दीवार पर जालियां लगाई हुई हैं वहीं से महिलाएं मजार की जियारत करती हैं और दुआएं मांगती हैं। दरगाह कमेटी के एक सदस्य ने बताया कि हजरत कुतुबुद्दीन साहब ने मरने से पहले वसीयत की थी कि उनके मरने के बाद अगर किसी महिला को उनकी मजार के बारे में पता भी लग जाता है तो उसे मजार से पहले ही रोक दिया जाए।
हजरत पर्दे का सबसे ज्यादा एहतराम करते थे, वह किसी गैर महरम से नहीं मिलते थे। इसलिए मजार से करीब 40 कदम की दूरी पर महिलाओं को रोक दिया जाता है, महिलाओं के लिए जो स्थान बना हुआ है वहां पर महिलाएं दुआ, कुरआन, नमाज व फातेहा पढ़ सकती हैं।
इन मजार पर नहीं जाते पुरुष
हजरत कुतुबुद्दीन बख्तियार काकी की मजार के पास ही उनकी पत्नी मां साहिबा (प्रचलित नाम) व दाई (पालन पोषण करने वाली) की मजार बनी हुई है, यहां पर पुरुषों के जाने पर पूरी तरह से प्रतिबंध है। केवल महिलाएं ही अंदर मजार में जाकर जियारत करती हैं। वहीं हजरत निजामुद्दीन साहब की दरगाह में बनी शाहजहां की बेटी जहां आरा की मजार पर भी महिलाएं ही जाती हैं। इन महिलाओं के मजारों पर पुरुषों के न जाने के पीछे पर्दा ही मुख्य कारण है। इनके अलावा भी कई मजारें हैं, जहां पुरुष नहीं जाते।
यहां महिला और पुरुष दोनों जाते हैं
हजरत निजामुद्दीन स्थित हुमायूं के मकबरे के पास हजरत पत्त शाह व हजरत शाह अब्दुल कादिर की मजार बनी हुई है। यह दोनों ही काफी चर्चित सूफी संत रहे हैं। इन दोनों ही मजारों पर महिला व पुरुष मन्नते मांगने जाते हैं। यहां महिलाओं के जाने पर प्रतिबंध नहीं है।