बिजली मांग के टूट गए सारे रिकॉर्ड, वितरण कंपनियों का दावा- हर स्थिति का सामना करने को तैयार
शुक्रवार दोपहर 3 बजे बिजली की अधिकतम मांग 6926 मेगावाट पहुंच गई। इससे पहले 1 जून को अधिकतम मांग 6627 मेगावाट दर्ज हुई थी।
नई दिल्ली [जेएनएन]। उमस भरी गर्मी की वजह से दिल्ली में बिजली की मांग के सारे रिकॉर्ड टूट गए हैं। शुक्रवार को दोपहर साढ़े तीन बजे अधिकतम मांग 6934 मेगावाट पहुंच गई। इससे पहले सबसे ज्यादा मांग 1 जून को 6627 मेगावाट दर्ज हुई थी। इस बार गर्मी के मौसम में राजधानी में अधिकतम मांग सात हजार मेगावाट तक पहुंचने का पूर्वानुमान लगाया गया था। इसे ध्यान में रखते हुए दिल्ली सरकार और बिजली वितरण कंपनियों (डिस्कॉम) ने अपनी तैयारी की है, लेकिन जिस तरह से मांग में लगातार बढ़ोतरी हो रही है उससे तैयारी की एक बार फिर से समीक्षा करनी होगी।
मांग में और बढ़ोतरी होगी
पिछले वर्ष बिजली की मांग को ध्यान में रखते हुए दिल्ली सरकार व डिस्कॉम ने इस बार का समर एक्शन प्लान तैयार किया था। यह अनुमान लगाया गया था कि इस बार मांग सात हजार मेगावाट तक पहुंचेगी। इसी के अनुरूप तैयारी की गई है। वहीं, शुक्रवार को मांग सात हजार के करीब पहुंच गई है और यदि मौसम का यही हाल रहा तो मांग में और बढ़ोतरी होगी।
दिल्ली में समस्या बढ़ सकती है
बिजली अधिकारियों का कहना है कि इस महीने में चौथी बार पिछले वर्ष के रिकॉर्ड से ज्यादा बिजली की मांग दर्ज हुई है। उमस बढ़ने पर एयर कंडीशनर (एसी) का प्रयोग भी बढ़ जाता है। जून से अगस्त तक मौसम ऐसा ही रहता है। इस स्थिति में आने वाले दिनों में मांग साढ़े सात हजार मेगावाट तक भी पहुंच सकती है। इसके लिए यदि पहले से तैयारी नहीं की गई तो दिल्ली में बिजली आपूर्ति की समस्या बढ़ सकती है।
किसी भी स्थिति का सामना करने को तैयार
वहीं, इस बारे में बिजली वितरण कंपनियों का दावा है कि वह किसी भी स्थिति का सामना करने को तैयार हैं। बांबे सबअर्बन इलेक्ट्रिसिटी सप्लाई (बीएसईएस) का कहना है कि उसने अपने 40 लाख उपभोक्ताओं को निर्बाध बिजली आपूर्ति करने की पूरी तैयारी कर ली है। आंतरिक आधारभूत ढांचे को मजबूत करने के साथ ही बिजली की पर्याप्त व्यवस्था की गई है। टाटा पावर दिल्ली डिस्ट्रिब्यूशन लिमिटेड (टीपीडीडीएल) का कहना है कि उसके वितरण क्षेत्र में शुक्रवार को अधिकतम मांग 1947 मेगावाट दर्ज हुई है। कंपनी ने दीर्घकालिक समझौते और बिजली बैंकिंग व्यवस्था के जरिये 22 सौ मेगावाट बिजली की व्यवस्था की है। इसलिए उपभोक्ताओं को किसी तरह की परेशानी नहीं होगी।
केजरीवाल ने पीएम मोदी को लिखा था खत
बता दें कि हाल ही में दिल्ली के सीएम अरविंद केजरीवाल ने बिजली की समस्या को लेकर प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी को चिट्ठी भी लिखी थी। केजरीवाल ने कहा था कि रेलवे द्वारा कोयला खदानों से बिजली संयंत्रों तक कोयला पहुंचाने के लिए पर्याप्त वैगन की व्यवस्था न किए जाने की वजह से ही कोयले की कमी की समस्या खड़ी हो गई। केजरीवाल ने पीएम मोदी से आग्रह किया था कि वह रेलवे को जरूरी निर्देश दें, ताकि रेलवे पर्याप्त मात्रा में कोयले की ढुलाई के लिए वैगन की व्यवस्था करे।
बिजली की भारी कटौती हो सकती है
प्रधानमंत्री को लिखे गए पत्र में सीएम कोजरीवाल ने कहा है कि दिल्ली में बिजली की मांग 6200 मेगावाट तक पहुंच चुकी है। भीषण गर्मी को देखते हुए यह मांग अकेले दिल्ली में 7000 मेगावाट तक जा सकती है। केजरीवाल ने चिट्ठी में लिखा था कि अगर जल्दी ही इन संयंत्रों तक कोयला नहीं पहुंचाया गया तो दिल्ली में बिजली की भारी कटौती हो सकती है।
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भाजपा पहले ही घेर चुकी है केजरीवाल सरकार को
राजधानी में बिजली कटौती के लिए दिल्ली विधानसभा में प्रतिपक्ष के नेता विजेंद्र गुप्ता पहले ही दिल्ली सरकार को जिम्मेदार ठहरा चुके हैं। विजेंद्र गुप्ता के मुताबिक, एक तरफ दिल्ली में चिलचिलाती गर्मी पड़ रही है, वहीं दूसरी तरफ लगातार बिजली संकट गहरा रहा है। उन्होंने कहा कि ऊर्जा मंत्री सत्येंद्र जैन दादरी और बदरपुर प्लांट से प्राप्त होने वाली बिजली की कमी का बहाना बताकर अपनी जिम्मेदारी से पल्ला झाड़ना चाहते हैं। यह एक मंत्री का गैर जिम्मेदाराना व्यवहार है।
बिजली संकट से लोग त्राहि-त्राहि कर रहे हैं
दिल्ली सरकार से सवाल करते हुए गुप्ता ने पूछा था कि बदरपुर पावर प्लांट बंद होने की कगार पर है, जिसको वर्ष 2019 तक पूरी तरह बंद कर दिया जाएगा। ऐसे में क्या सरकार कोई व्यवस्था कर रही है? उन्होंने कहा कि बिजली संकट के लिए बिजली कंपनियों की लापरवाही सीधे तौर पर जिम्मेदार है। ऐसे में एक तरफ प्रति किलोवाट लोड की कीमत में पाच गुना की वृद्धि की जा रही है और दूसरी तरफ इस भयंकर गर्मी में बिजली संकट से लोग त्राहि-त्राहि कर रहे हैं।
बिजली कंपनियों की वकील बन गई है सरकार
विजेंद्र गुप्ता ने यह भी कहा कि बिजली कंपनियों के खातों की कैग (नियंत्रक एवं महालेखा परीक्षक) से जांच कराने की बात करने वाली सरकार अब बिजली कंपनियों की सबसे बड़ी वकील बन गई है।