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देश को स्वावलंबन की राह पर मजबूती से आगे बढ़ाने में डीआरडीओ की अहम भूमिका

रक्षा अनुसंधान एवं विकास संगठन के प्रयासों से भारत को रक्षा क्षेत्र में आत्मनिर्भर बनने में अभूतपूर्व सफलता मिली है। वर्ष 1958 में केवल 10 प्रयोगशालाओं के साथ शुरू डीआरडीओ आज 50 से भी अधिक प्रयोगशालाओं वाला विशाल संगठन है...

By Sanjay PokhriyalEdited By: Published: Thu, 21 Oct 2021 04:41 PM (IST)Updated: Thu, 21 Oct 2021 04:41 PM (IST)
देश को स्वावलंबन की राह पर मजबूती से आगे बढ़ाने में डीआरडीओ की अहम भूमिका
भारत ने स्वदेशी पृथ्वी, त्रिशूल, आकाश और नाग मिसाइलों का सफलतापूर्वक परीक्षण किया।

नई दिल्ली, फीचर डेस्क। देश को स्वावलंबन की राह पर मजबूती से आगे बढ़ाने में रक्षा अनुसंधान एवं विकास संगठन (डीआरडीओ) की अहम भूमिका रही है। चाहे रक्षा तकनीक के मामले में देश को आगे ले जाने की बात हो या फिर कोविड के दौरान पीपीई किट, सैनिटाइजर, वेंटिलेटर, उन्नत अस्पतालों आदि का निर्माण, डीआरडीओ की पहल हमेशा प्रशंसनीय रही है। 

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डीआरडीओ रक्षा मंत्रालय का अनुसंधान एवं विकास विंग है। इसका लक्ष्य भारत को अत्याधुनिक रक्षा प्रौद्योगिकियों के साथ सशक्त बनाने का रहा है। यह संस्थान न सिर्फ सशस्त्र बलों को अत्याधुनिक सैन्य उपकरणों से लैस करता है, बल्कि कई अन्य क्षेत्रों में भी इसकी भूमिका महत्वपूर्ण रही है। स्वतंत्रता के बाद वर्ष 1958 में डीआरडीओ की स्थापना रक्षा क्षेत्र में शोध को बढ़ावा देने के लिए मात्र 10 प्रयोगशालाओं के साथ की गई थी। यह शुरुआत टेक्निकल डिपार्टमेंट स्टैब्लिशमेंट (टीडीई), रक्षा विज्ञान संगठन (डीएसओ) और डायरेक्टरेट आफ टेक्निकल डेवलपमेंट ऐंड प्रोडक्शन (डीटीडीपी) को मिलाकर हुई थी। उस समय डीआरडीओ एक छोटा संगठन था, लेकिन आज यह सैन्य क्षेत्र में आधुनिक तकनीकों का निर्माण करने वाला अव्वल संगठन है। इनमें एयरोनाटिक्स, युद्धक वाहन, इंजीनियरिंग प्रणालियां, मिसाइलें, नौसेना प्रणाली, एडवांस कंप्यूटिंग तथा रक्षा क्षेत्र की अन्य प्रौद्योगिकियां शामिल हैं।

रक्षा प्रौद्योगिकी में मिसाल : आज यदि दुनिया का कोई भी देश भारत की तरफ नजर उठाकर नहीं देखता है, तो इसका श्रेय काफी हद तक डीआरडीओ को भी जाता है। इसने रक्षा क्षेत्र में भारत को स्वावलंबी बनाने में काफी योगदान किया है। अग्नि और पृथ्वी सीरीज की मिसाइलों का उत्पादन हो या फिर हल्के लड़ाकू विमान तेजस, मल्टी बैरल राकेट लांचर पिनाका, वायु रक्षा प्रणाली आकाश, रडार और इलेक्ट्रानिक युद्ध प्रणालियों की एक विस्तृत सीरीज विकसित करने में सर्वप्रमुख भूमिका इसी की रही है। ब्रह्मोस मिसाइल को इसने रूस के साथ मिलकर तैयार किया, जो रडार को चकमा दे सकने वाला सुपरसोनिक क्रूज मिसाइल है। डीआरडीओ ने हाल के वर्षों में अनेक उपलब्धियां हासिल की हैं। इनमें आइएनएस विक्रमादित्य पर लाइट कांबैट एयरक्राफ्ट (एलसीए) की लैंडिंग, हाइपरसोनिक टेक्नोलाजी डेमांस्ट्रेशन व्हीकल (एचएसटीडीवी) का परीक्षण, लेजर गाइडेड एंटी टैंक गाइडेड मिसाइल (एटीजीएम)आदि शामिल हैं।

कोविड काल में सराहनीय योगदान : कोविड महामारी से लड़ने में भी डीआरडीओ का सक्रिय और सराहनीय योगदान रहा है। इसने पीपीई किट, सैनिटाइजर्स, मास्क, यूवी सिस्टम, वेंटिलेटर के महत्वपूर्ण भाग आदि उपलब्ध कराए, जिससे देश बहुत कम समय में पर्याप्त मात्रा में वेंटिलेटर निर्माण में सक्षम हो सका। कोरोना मरीजों के लिए ‘2-डीआक्सी-डी-ग्लूकोज’ नामक औषधि को डीआरडीओ द्वारा ही विकसित किया गया।

आइजीएमडीपी : इंटीग्रेटेड गाइडेड मिसाइल डेवलपमेंट प्रोग्राम (आइजीएमपीडी) प्रसिद्ध विज्ञानी डा. एपीजे अब्दुल कलाम के दिमाग की उपज था। इसका उद्देश्य मिसाइल प्रौद्योगिकी के क्षेत्र में भारत को आत्मनिर्भरता बनाना था। आइजीएमडीपी को औपचारिक रूप से 26 जुलाई, 1983 को भारत सरकार की मंजूरी मिली। हालांकि अंतरराष्ट्रीय संस्थान एमटीसीआर (मिसाइल टेक्नोलाजी कंट्रोल रिजम) ने विकास कार्यक्रम के लिए तकनीक तक भारत की पहुंच पर रोक लगा दी थी। इसके बावजूद भारतीय विज्ञानियों ने इस बाधा को पार करते हुए डा. कलाम के नेतृत्व में परियोजना पर काम जारी रहा। फिर भारत ने स्वदेशी पृथ्वी, त्रिशूल, आकाश और नाग मिसाइलों का सफलतापूर्वक परीक्षण किया।


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