नृत्य, संगीत व साहित्य के मेल से होती है रसानुभूति: सोनल मानसिंह
राज्यसभा सांसद डॉ. सोनल मानसिंह ने जीवन की सुगंध मेरे नृत्यका संगीत विषय पर श्रोताओं से रूबरू हुई।
नई दिल्ली [रितु राणा]। फेसबुक लाइव के माध्यम से नृत्यांगना व राज्यसभा सांसद डॉ. सोनल मानसिंह ने 'जीवन की सुगंध: मेरे नृत्यका संगीत' विषय पर श्रोताओं से रूबरू हुई। फेसबुक लाइव पर सोनल मान सिंह ने श्रोताओं को संबोधित करते हुए कहा कि पखवाज, तबला, वीणा, सरोद आदि के बिना नृत्य में आनंद नहीं मिलता। इसलिए मैं उन सभी का धन्यवाद करती हूँ जिन्होंने मेरे नृत्य में संगीत के धुन बजाकर मेरा साथ दिया।
संगीत नृत्यनुसारी है, नृत्य हम एकांत में भी कर सकते हैं लेकिन इसके साथ जब संगीत व साहित्य जुड़ता है तब जाकर ही रसानुभूति होती है। जैसे त्रिकुटी ब्रह्मा, विष्णु व महेश और महासरस्वती, महालष्मी व महाकाली का नाम लिया जाता है ऐसे ही नृत्य, संगीत व साहित्य का मेल है। हमारा नृत्य रसपान के लिए होता है। उस रस की अनुभूति करके आंखों से पानी आ जाता है, शरीर से रोंगटे उठने लगते हैं।
सोनल मानसिंह ने आगे कहा कि ये रसानुभूति अमूल्य होती है जिसके लिए हम इतनी मेहनत करते हैं। जब हमारे अंदर वो रस उतपन्न होता है, तब वह दर्शकों तक पहुंचता है और वह रसानुभूति करते हैं। इस रस में खोकर ऐसी अनुभूति होती है जैसे कि हम अपनी रोजमर्रा की जिंदगी से कहीं दूर चले गए हों, रसानुभूति ब्रह्म ज्ञान के समान है। उसका अनुभव एक मिनट के लिए नहीं बल्कि स्थायी हो जाता है। वहीं, इस मौके पर सोनल मानसिंह ने अपने जीवन के कई रोचक किस्से भी साझा किये। इस चर्चा को श्रोताओं ने खूब रोचकता के साथ सुना और कमेंट बॉक्स में अपनी प्रतिक्रिया भी भेजी।