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डीपीसीसी ने कहा राजधानी में सिंगल यूज प्लास्टिक अब ढूंढे नहीं मिलेगी, जानिए क्या है प्लानिंग

राजधानी में सिंगल यूज प्लास्टिक अब ढूंढे नहीं मिलेगी। दिल्ली प्रदूषण नियंत्रण समिति (डीपीसीसी) ने इसके लिए ठोस योजना तैयार की है। इसके तहत अब प्लास्टिक थैलियों के उत्पादन रीसाइक्लिंग और पैकेजिंग करने वाली इकाइयों के लिए डीपीसीसी में पंजीकरण कराना अनिवार्य होगा। इसके लिए 30 जून तक आवेदन करना होगा।

By Vinay Kumar TiwariEdited By: Published: Mon, 14 Jun 2021 01:18 PM (IST)Updated: Mon, 14 Jun 2021 01:18 PM (IST)
50 माइक्रोन से कम की प्लास्टिक थैली अब न दिल्ली में बनेगी और न ही बिकेगी।

नई दिल्ली, [संजीव गुप्ता]। राजधानी में सिंगल यूज प्लास्टिक अब ढूंढे नहीं मिलेगी। दिल्ली प्रदूषण नियंत्रण समिति (डीपीसीसी) ने इसके लिए ठोस योजना तैयार की है। इसके तहत अब प्लास्टिक थैलियों के उत्पादन, रीसाइक्लिंग और पैकेजिंग करने वाली इकाइयों के लिए डीपीसीसी में पंजीकरण कराना अनिवार्य होगा। इसके लिए 30 जून तक आवेदन करना होगा। साथ ही यह भी स्पष्ट कर दिया गया है कि 50 माइक्रोन से कम की प्लास्टिक थैली अब न दिल्ली में बनेगी और न ही बिकेगी।

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दरअसल, यह पूरी कवायद एक जनवरी 2022 से सिंगल यूज प्लास्टिक पर प्रतिबंध लगाए जाने को लेकर की जा रही है। फरवरी में प्रधानमंत्री कार्यालय ने प्लास्टिक के इस्तेमाल को सीमित करने के मद्देनजर एक बैठक रखी थी। इसमें तय हुआ था कि माइक्रो प्लास्टिक यानी सिंगल यूज प्लास्टिक का इस्तेमाल जनवरी 2022 तक पूरी तरह बंद कर दिया जाए।

इसी कड़ी में कदम आगे बढ़ाते हुए डीपीसीसी ने रविवार को एक सार्वजनिक सूचना जारी की है। इसमें सभी इकाइयों के लिए प्लास्टिक अपशिष्ट प्रबंधन (संशोधन) नियम 2018 के तहत पंजीकरण कराना तथा जल (प्रदूषण की रोकथाम एवं नियंत्रण) अधिनियम 1974 तथा वायु (प्रदूषण की रोकथाम एवं नियंत्रण) अधिनियम 1981 के तहत प्रचालन की सहमति लेना अनिवार्य कर दिया गया है।

अधिकारियों के मुताबिक पंजीकरण के लिए आवेदन डीपीसीसी की वेबसाइट पर करना होगा और इसकी अंतिम तिथि 30 जून रखी गई है। इसके बाद गैर पंजीकृत इकाइयों को सील करने की कार्रवाई शुरू कर दी जाएगी। ये है प्लास्टिक अपशिष्ट प्रबंधन (संशोधन) नियम 2018प्लास्टिक अपशिष्ट प्रबंधन (संशोधन) नियम 2018 के नियम 13 के अनुसार कोई भी व्यक्ति डीपीसीसी से बिना पंजीकरण कराए प्लास्टिक थैली का उत्पादन, रीसाइक्लिंग या बहुस्तरीय पैकेजिंग सामान का उत्पादन शुरू नहीं करेगा।

कोई भी उत्पादक, पंजीकरण या पंजीकरण के नवीनीकरण के लिए फार्म संख्या एक में आवेदन करेगा। रिसाइकिल यूनिट का पंजीकरण कराने के लिए फार्म संख्या दो, जबकि प्लस्टिक के रूप में कच्चे माल का उपयोग करने वाले उत्पादक को फार्म संख्या तीन में आवेदन करना होगा। पर्यावरण के लिए नासूर बन रहा प्लास्टिक कचरा प्लास्टिक कचरा देशभर में पर्यावरण के लिए नासूर बनता जा रहा है।

माइक्रो प्लास्टिक के कण शरीर में पहुंचकर फेफड़ों से लेकर आंत तक को हानि पहुंचाते हैं। यही नहीं, कैंसर जैसी गंभीर बीमारियां भी इसकी वजह से हो रही हैं। केंद्रीय प्रदूषण नियंत्रण बोर्ड (सीपीसीबी) की एक सर्वे रिपोर्ट के मुताबिक देशभर में सालाना करीब 16 लाख टन प्लास्टिक कचरा उत्पन्न होता है, जबकि दिल्ली में यह आंकड़ा लगभग 800 टन प्रतिवर्ष है। इसमें से सिर्फ 1.5 फीसद प्लास्टिक कचरे का ही निस्तारण ही देशभर में हो पा रहा है।

दिल्ली में तो इतनी भी व्यवस्था नहीं है। पर्यावरण विशेषज्ञों के मुताबिक प्लास्टिक के बहुत सूक्ष्म टुकड़े भूजल में मिलकर उसे दूषित कर देते हैं। एक आकलन के अनुसार प्लास्टिक की बोतलें और डिस्पोजेबल प्लास्टिक से बने उत्पाद 450 साल तक भी पूरी तरह खत्म नहीं होते हैं। प्लास्टिक के ढक्कन चार सौ साल और मछली पकड़ने के जाल की प्लास्टिक को पूर्णतया खत्म होने में 650 साल तक लग जाते हैं।


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