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रेडियल एंजियोप्लास्टी से डाक्टरों ने मरीज को घातक हार्ट अटैक से बचाया

मरीज का इलाज करने वाले डा. विवेका ने बताया कि यह प्रक्रिया जटिल इसलिए थी क्योंकि मरीज का वजन 100 किलो से ज्यादा था।उन्होंने बताया कि खून का बहाव ज्यादा न हो इसलिए रेडियल एंजियोप्लास्टी की प्रक्रिया अपनाई गई।ब्लाक कोरोनरी धमनियों को खोलकर रक्त प्रवाह को शुरू किया जा सके।

By Prateek KumarEdited By: Published: Thu, 23 Sep 2021 08:34 PM (IST)Updated: Thu, 23 Sep 2021 08:34 PM (IST)
रेडियल एंजियोप्लास्टी से डाक्टरों ने मरीज को घातक हार्ट अटैक से बचाया
जांच करने पर पता चला कि मरीज की बाईं धमनी में 99 फीसद ब्लाकेज है।

नई दिल्ली [राहुल चौहान]। दिल्ली निवासी एक 25 वर्षीय अधिक वजन वाले पुरुष रोगी को रेडियल एंजियोप्लास्टी द्वारा एक घातक हार्ट अटैक से बचाया गया। दरअसल, रमन नामक एक युवक मैक्स अस्पताल साकेत की इमरजेंसी में सीने में दर्द की शिकायत लेकर आया था। जांच करने पर पता चला कि मरीज की बाईं धमनी में 99 फीसद ब्लाकेज है।

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मरीज का इलाज करने वाले डा. विवेका कुमार ने बताया कि यह प्रक्रिया जटिल इसलिए थी क्योंकि मरीज का वजन 100 किलो से ज्यादा था।उन्होंने बताया कि खून का बहाव ज्यादा न हो इसलिए रेडियल एंजियोप्लास्टी की प्रक्रिया अपनाई गई। जिससे ब्लाक कोरोनरी धमनियों को खोलकर रक्त के प्रवाह को फिर से शुरू किया जा सके। स्टेंट लगाने से डाक्टर मरीज की हालत को स्थिर करने में सफल रहे।

रेडियल एंजियोप्लास्टी के बाद बाईं धमनी में सामान्य रक्त प्रवाह शुरू हो गया और मरीज की हालत में तेजी से सुधार हुआ। दो दिन अस्पताल में रहने के बाद उसे छुट्टी दे दी गई। डा. के मुताबिक मरीज की कम उम्र को देखते हुए उसमें एक बायो डिसोल्वेबल स्टेंट लगाया गया है, जो दो साल के भीतर शरीर में घुल जाता है। इससे मरीज को जीवन भर ब्लड थिनर लेने की जरूरत नहीं पड़ती है।

क्या है रेडियल एंजियोप्लास्टी

रेडियल एंजियोप्लास्टी प्रक्रिया में एक तार को ब्लाक कोरोनरी धमनी में ले जाया जाता है। फिर धमनियों में जहां ब्लाकेज होता है, उसके पार गुब्बारे नुमा स्टेंट को पहुंचाया जाता है, ताकि स्टेंट को धमनी में ट्यूब के रूप में खोला जा सके। साथ ही भविष्य में दोबारा धमनियों में आने वाली ब्लाकेज को रोका जा सके।

रेडियल एंजियोप्लास्टी चिकित्सकीय रूप से चुनौतीपूर्ण प्रक्रिया है, क्योंकि ब्लाक धमनी तक रक्त हाथ की संकरी रक्त वाहिकाओं के माध्यम से ही पहुंचा जा सकता है। इस प्रक्रिया से प्रमुख रक्त वाहिकाओं को नुकसान पहुंचने की संभावना कम होती है। इसके लिए विशेषज्ञ डाक्टरों की आवश्यकता पड़ती है। यह प्रक्रिया परंपरागत तरीकों के मुकाबले अधिक सुरक्षित मानी जाती है।


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