लक्ष्य तक पहुंचने के लिए हमें समय के साथ अनुशासन एवं धैर्य को आत्मसात करना पड़ेगा
गणित के विशेषज्ञ एवं ‘रेजिंग ए मैथमेटिशियन फाउंडेशन’ के संस्थापक विनय नायर का मानना है कि जीवन में अनुशासन न होने का मतलब है कि कंफ्यूजन होना। दुविधा एवं ऊहापोह में रहना। गैर-जिम्मेदार एवं आलसी बनना। अरस्तू का भी विचार था कि आत्म-अनुशासन से स्वतंत्रता मिलती है।
अंशु सिंह। जब हम कोई नई शुरुआत करते हैं, तो उसके पीछे किसी न किसी प्रकार की प्रेरणा होती है। लेकिन लक्ष्य तक पहुंचने के लिए हमें समय के साथ अनुशासन एवं धैर्य जैसे गुणों को भी आत्मसात करना पड़ता है। चाणक्य ने कहा है कि जो अनुशासित नहीं, उसका न तो वर्तमान है और न भविष्य। हिंदी सिनेमा के महानायक अमिताभ बच्चन की उम्र के इस पड़ाव पर सक्रियता की एक प्रमुख वजह अनुशासित जीवन ही तो है।
आज भी वह अपने प्रोजेक्ट या फिल्मों के लिए बड़ी शिद्दत से मेहनत करते हैं। अपने निर्देशकों एवं साथी कलाकारों के प्रति उनका रवैया सहयोगात्मक होता है। इतनी सफलता प्राप्त करने के बावजूद उनका निश्चित समय पर सेट पर पहुंचना जारी है। तभी तो सिनेमा की बेहद प्रतिस्पर्धात्मक दुनिया में वे इतने वर्षों से एक सम्मानजनक स्थान बनाए हुए हैं। ओलिंपिक में दूसरी बार कांस्य पदक जीतने वाली पीवी सिंधू को आइसक्रीम, मीठी दही बहुत पसंद है। लेकिन जब वे ओलिंपिक या किसी बड़ी चैंपियनशिप की तैयारी में लगी होती हैं, तो उन्हें यह सब नहीं मिलता है। अपने पास फोन रखने की इजाजत भी नहीं होती।
बड़ी बात यह है कि सिंधू को इस बात का कोई मलाल नहीं होता है। वे अपने कोच पुलेला गोपीचंद के दिशा-निर्देश एवं सुझाव को मानकर एक अनुशासित दिनचर्या का पालन करती हैं। परिणाम सबके सामने है। गोपीचंद के अनुसार, लंबे समय तक बैडमिंटन में चीन के खिलाड़ियों के वर्चस्व का एक प्रमुख कारण उनका अनुशासन प्रिय होना रहा है। फुटबाल कोच अनादि बरुआ कहते हैं, ‘खिलाड़ियों की तरह हर किसी के जीवन में अनुशासन बहुत आवश्यक है। यह हमारी ऊर्जा को सकारात्मक कार्यों व चीजों की ओर निर्देशित करता है। उसे सार्थक दिशा देता है। मैंने देखा है कि कैसे एक लक्ष्यविहीन युवा भी अपनी दिनचर्या में अनुशासन लाकर मानसिक रूप से सशक्त बन सकता है।‘
गणित के विशेषज्ञ एवं ‘रेजिंग ए मैथमेटिशियन फाउंडेशन’ के संस्थापक विनय नायर का मानना है कि जीवन में अनुशासन न होने का मतलब है कि कंफ्यूजन होना। दुविधा एवं ऊहापोह में रहना। गैर-जिम्मेदार एवं आलसी बनना। एक स्टूडेंट के लिए यह और भी घातक हो सकता है, क्योंकि इससे वह सही निर्णय लेने से वंचित रह सकता है यानी स्व-केंद्रित या व्यवस्थित रहने के लिए स्व-अनुशासित रहना आवश्यक है। अरस्तू का भी विचार था कि आत्म-अनुशासन से स्वतंत्रता मिलती है।
कह सकते हैं कि अनुशासन वह क्रिया है, जो आपके शरीर, दिमाग एवं आत्मा को नियंत्रित करती है। परिवार के बड़ों, शिक्षकों, माता-पिता की आज्ञा को मानना उसका हिस्सा है। अनुशासन में रहकर ही हमारा दिमाग हर नियम-कानून को मानने के लिए तैयार होता है। वैसे, अगर हम अपने दैनिक जीवन में देखें, तो सभी प्राकृतिक संसाधनों में वास्तविक अनुशासन के उदाहरण मिलते हैं। सूरज और चांद का सही समय पर उगना और अस्त होना, सुबह एवं शाम का अपने सही समय पर आना और जाना, नदियों का बहना, ऋतुओं का आना सब एक लय में, अनुशासन में ही तो कार्य करते हैं, चलते हैं।
मनोचिकित्सक आरती आनंद के शब्दों में संतुलित भोजन करना, नियमित व्यायाम करना, समय पर सोना भी स्व-अनुशासन कहलाता है। कई शोधों से पता चला है कि जो लोग अपने जीवन को अनुशासित तरीके से जीते हैं, वह अस्त-व्यस्त दिनचर्या के साथ रहने वालों की अपेक्षा अपने समय तथा ऊर्जा का अधिक एवं बेहतर उपयोग कर पाते हैं। इसका लाभ उन्हें अपने सामाजिक जीवन में मान-सम्मान के रूप में भी मिलता है।