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दिल्ली कांग्रेस की नई टीम में भी पुरानी खटास बरकरार, कैसे दूर होगी नेताओं की नाराजगी?

विधानसभा चुनाव में अपना टिकट कटने से नाराज आसिफ ने सुभाष चोपड़ा पर प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी की तर्ज पर मन की बात करने का आरोप लगाया।

By Mangal YadavEdited By: Published: Thu, 12 Mar 2020 04:22 PM (IST)Updated: Thu, 12 Mar 2020 04:22 PM (IST)
दिल्ली कांग्रेस की नई टीम में भी पुरानी खटास बरकरार, कैसे दूर होगी नेताओं की नाराजगी?
दिल्ली कांग्रेस की नई टीम में भी पुरानी खटास बरकरार, कैसे दूर होगी नेताओं की नाराजगी?

नई दिल्ली [संजीव गुप्ता]। दिल्ली कांग्रेस के नए प्रभारी शक्ति सिंह गोहिल ने होली की पूर्वसंध्या पर पार्टी कार्यालय में प्रदेश के आला नेताओं की एक बैठक रखी। बैठक रखी इसलिए गई थी ताकि हिंसा प्रभावित इलाकों एवं पीड़ितों के प्रति नेताओं को पार्टी का दृष्टिकोण समझाया जा सके, लेकिन बात यहां मोदी के मन की भी हो गई। दरअसल, ओखला से पार्टी के पूर्व विधायक आसिफ मोहम्मद खान ने पूर्व प्रदेश अध्यक्ष सुभाष चोपड़ा की खिलाफत कर दी।

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विधानसभा चुनाव में अपना टिकट कटने से नाराज आसिफ ने सुभाष चोपड़ा पर प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी की तर्ज पर मन की बात करने का आरोप लगाया। आसिफ का कहना था कि सुभाष चोपड़ा हमेशा अपने मन की बात ही करते रहे हैं जबकि अन्य नेताओं की सुनते तक नहीं। उनके इस आरोप और बयान से बैठक में कुछ देर के लिए माहौल गर्म हो ही गया, अन्य नेताओं के बीच भी खुसर-फुसर शुरू हो गई।

नई टीम में भी पुरानी खटास बरकरार

लेटलतीफी के लिए मशहूर अखिल भारतीय कांग्रेस कमेटी (एआइसीसी) ने इस बार सिर्फ एक माह के भीतर नेतृत्वविहीन दिल्ली कांग्रेस को नया नेतृत्व देकर सकारात्मक पहल की है। लेकिन, नई टीम में भी पुरानी खटास बरकरार है। एक अध्यक्ष और पांच उपाध्यक्षों के बीच मतैक्य नहीं है। यही कारण है कि प्रदेश कांग्रेस के ज्यादातर नेताओं में भी इस टीम का विरोध प्रारंभ हो गया है। कोई इनके अनुभव और उम्र पर प्रश्न उठा रहा है तो कोई इन्हें जिम्मेदारी सौंपने के पीछे के तार्किक आधार पर। न तो पुराने नेता अनिल चौधरी को पचा पा रहे हैं और न ही अभिषेक दत्त को।

मुदित अग्रवाल, अली मेहंदी और शिवानी चोपड़ा की नियुक्ति तो सर्वाधिक कठघरे में है। कुछ नेता नई टीम को सहयोग न करने की बात कह रहे हैं तो कुछ पार्टी छोड़ने के संकेत भी दे रहे हैं। ऐसे में बदलाव कुछ खास असर नहीं दिख रहा।

आ अब लौट चलें..

पूर्व क्रिकेटर और पूर्व सांसद कीर्ति आजाद को दिल्ली लाया तो इसलिए गया था कि वह प्रदेश की राजनीति संभालेंगे, लेकिन अब उन्हें वापस बिहार भेजने की तैयारी शुरू हो गई है। उन्होंने प्रचार समिति अध्यक्ष के तौर पर अपना श्रेष्ठ देने की कोशिश तो की, मगर यहां की गुटबाजी से पार नहीं पा सके। न दिल्ली में अपने पांव जमा सके और न पत्नी पूनम आजाद को चुनाव जिता सके। पिछले दिनों पार्टी आलाकमान सोनिया गांधी से मिले तो उन्हें कहना ही पड़ा कि मैडम, मुझे चाहे कहीं भी रखिए, लेकिन काम करने की आजादी दिलवा दीजिए। लगता है कि मैडम भी इसे समझ गईं कि कीर्ति दिल्ली की सियासत में असहज हो रहे हैं। इसीलिए विधानसभा चुनाव को ध्यान में रखते हुए उन्हें वापस बिहार भेजने की तैयारी शुरू हो गई है। दिल्ली की नई टीम में उन्हें जगह न देकर इसके संकेत भी दे दिए गए हैं।


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