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देश के इस शहर में है रावण का खौफ, दशहरे के दिन मातम का रहता है माहौल

बिसरख में शिव मंदिर के एक पुजारी का कहना है कि 60 साल पहले इस गांव में पहली बार रामलीला का आयोजन किया गया था। उस दौरान गांव में एक मौत हो गई।

By JP YadavEdited By: Published: Thu, 18 Oct 2018 09:34 PM (IST)Updated: Fri, 19 Oct 2018 08:48 AM (IST)
देश के इस शहर में है रावण का खौफ, दशहरे के दिन मातम का रहता है माहौल
देश के इस शहर में है रावण का खौफ, दशहरे के दिन मातम का रहता है माहौल

नई दिल्ली/नोएडा, जेएनएन। राष्ट्रीय राजधानी क्षेत्र में ग्रेटर नोएडा से 10 किलोमीटर दूर है रावण का पैतृक गांव बिसरख। यहां न रामलीला होती है, न ही रावण दहन किया जाता है। यह परंपरा वर्षों से चली आ रही है। मान्यता यह भी है कि जो यहां कुछ मांगता है, उसकी मुराद पूरी हो जाती है। इसलिए साल भर देश के कोने-कोने से यहां आने-जाने वालों का तांता लगा रहता है। साल में दो बार मेला भी लगता है।

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खास बात यह है कि बिसरख गांव में न ही रामलीला का मंचन होता है और न ही रावण का पुलता फूंका जाता है। इस गांव में शिव मंदिर तो है, लेकिन भगवान राम का कोई मंदिर नहीं है। जब देशभर में जहां दशहरा असत्य पर सत्य की और बुराई पर अच्छाई की विजय के रूप में बड़े हर्षोल्लास के साथ मनाया जाता है, वहीं रावण के पैतृक गांव नोएडा जिले के बिसरख में इस दिन उदासी का माहौल रहता है।

बिसरख में शिव मंदिर के एक पुजारी का कहना है कि 60 साल पहले इस गांव में पहली बार रामलीला का आयोजन किया गया था। उस दौरान गांव में एक मौत हो गई। इसके चलते रामलीला अधूरी रह गई। ग्रामीणों ने दोबारा रामलीला का आयोजन कराया, उस दौरान भी रामलीला के एक पात्र की मौत हो गई। वह लीला भी पूरी नहीं हो सकी। तब से गांव में रामलीला का आयोजन नहीं किया जाता और न ही रावण का पुतला जलाया जाता है।

आज भी गांव का एक बड़ा तबका दशानन के कारण गौरवान्वित महसूस करता है। उसका तर्क है कि रावण ने उस जमाने में लंका पर विजय पताका फहराकर राजनैतिक सूझबूझ और पराक्रम का परिचय दिया था। यहां यह माना जाता है कि रावण ने राक्षस जाति का उद्धार करने के लिए सीता का हरण किया था। इसके अलावा दुनिया में कोई ऐसा साक्ष्य नहीं है, जब रावण ने किसी का बुरा किया हो। यह कहना है अशोकानन्द जी महाराज का। ये बिसरख में बन रहे रावण मंदिर की देखरेख कर रहे हैं।

रावण के पिता के नाम पर पड़ा बिसरख का नाम

माना जाता है कि रावण का जन्म बिसरख गांव में हुआ था। रावण के पिता विशरवा मुनि के नाम पर ही गांव का नाम पड़ा। गांव में रावण का मंदिर बना हुआ है। यहां के लोग भगवान राम की पूजा करते हैं और उनके आदर्शों को मानते हैं, लेकिन रावण को वह गलत नहीं मानते। उसे विद्वान पंडित मानते हैं, इसलिए गांव में रावण के पुतले का दहन नहीं किया जाता है।

मान्यता है कि रावण के पिता विशरवा मुनि ने भगवान शिव को प्रसन्न करने के लिए बिसरख गांव में अष्टभुजा धारी शिवलिग स्थापित कर मंदिर का निर्माण किया था। पूर्व में यह क्षेत्र यमुना नदी के किनारे घने जंगल में आच्छादित था।

विशरवा मुनि ने घने जंगल के कारण इसे अपना तप स्थान बनाया था। इसी मंदिर पर अराधना के बाद रावण का जन्म हुआ था। गांव में अष्टभुजा धारी शिवलिग अब भी स्थापित है। इस तरह का शिवलिग आसपास किसी मंदिर में नहीं है।

मान्यता है कि रावण के पिता विशरवा मुनि ने भगवान शिव को प्रसन्न करने के लिए बिसरख गांव में अष्टभुजा धारी शिवलिंग स्थापित कर मंदिर का निर्माण किया था। पूर्व में यह क्षेत्र यमुना नदी के किनारे घने जंगल में आच्छादित था। विशरवा मुनि ने घने जंगल के कारण इसे अपनी तपश स्थान बनाया था। इसी मंदिर पर अराधना के बाद रावण का जन्म हुआ था।

गांव में अष्टभुजा धारी शिवलिंग अब भी स्थापित है। इस तरह का शिवलिंग आसपास किसी मंदिर में नहीं है। हालांकि, पुराना मंदिर खंडहर होने के बाद ध्वस्त हो चुका है। जिस स्थान पर शिवलिंग है, उसके निकट मंदिर के खंडहर मौजूद हैं। लोगों ने इस स्थान पर फिर से भगवान शिव का मंदिर बना दिया है। गांव में रावण का मंदिर भी बना हुआ है। दूर-दराज से लोग भगवान शिव की पूजा करने मंदिर में आते हैं। राष्ट्रीय स्तर पर राजनीति करने वाले नेता व अनेक वरिष्ठ अधिकारी भी गांव के मंदिर पर पूजा अर्चना करने पहुंचते हैं।

वर्ष 1984 में चर्चित तांत्रिक चंद्रास्वामी ने शिवलिंग की खुदाई कराई थी। बीस फीट खुदाई के बाद भी शिवलिंग का छोर नहीं मिला था। इस दौरान एक गुफा मिली थी। वह पास में बने खंडहरों में जाकर निकली। खुदाई के दौरान चौबीस मुखी एक शंख निकला था। इसे चंद्रास्वामी अपने साथ ले गए थे। ग्रामीणों ने कभी गांव में रामलीला का मंचन नहीं किया है। दशहरा के पर्व पर गांव में मातम जैसा माहौल रहता है।

केंद्र और प्रदेश सरकार मिलकर रामायण सर्किट विकसित कर रही है। इसमें अयोध्या, चित्रकूट और हस्तिनापुर के साथ ग्रेटर नोएडा में बिसरख के रावण मंदिर को भी शामिल किया गया है। अभी कुछ दिन पहले प्रदेश के पर्यटन विभाग के निदेशक अभिलाष शर्मा ने यह जानकारी दी थी। ग्रेटर नोएडा प्राधिकरण ने भी बिसरख गांव के रावण मंदिर को विकसित कर शहर में पर्यटन को बढ़ावा देने की दिशा में प्रभावी कदम उठाए हैं।

बिसरख के रावण मंदिर को हेलीकॉप्टर सेवा से जोड़ने की मांग

मई, 2017 में दादरी आर्य प्रतिनिधि सभा के जिलाध्यक्ष आनंद आर्य ने प्रदेश के मुख्यमंत्री योगी आदित्य नाथ को पत्र लिखकर बिसरख रावण मंदिर को हेलीकॉप्टर सेवा से जोड़ने की मांग की थी। उन्होंने कहा था कि गौतमबुद्ध नगर जिले में बिसरख धाम रावण की जन्मस्थली है। यहां रावण द्वारा स्थापित शिवलिंग है। वर्तमान में बिसरख धाम रावण मंदिर के नाम से प्रसिद्ध है। इस मंदिर में रावण से जुड़ी अन्य चीजें जुड़ी हैं। इसलिए रामायणकालीन इतिहास को बचाने के लिए बिसरख को इस हेलीकॉप्टर सेवा में शामिल किया जाए।


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