Delhi violence: पूर्व पार्षद इशरत जहां की याचिका पर फैसला सुरक्षित, ट्रायल कोर्ट के फैसले को दी थी चुनौती
इशरत के अधिवक्ता ललित वलेचा ने कहा कि निचली अदालत का फैसला लोकतांत्रिक प्रक्रिया और मौलिक अधिकार के खिलाफ है।
नई दिल्ली [विनीत त्रिपाठी]। उत्तर-पूर्वी दिल्ली दंगा मामले की जांच के लिए 60 दिन का अतिरिक्त समय देने के निचली अदालत के फैसले को चुनौती देने वाली याचिका पर दिल्ली हाई कोर्ट ने अपना फैसला सुरक्षित रख लिया। सोमवार को वीडियो कॉन्फ्रेंसिंग के माध्यम से सुनवाई के दौरान पुलिस ने जहां याचिका विरोध किया। वहीं दूसरी तरफ इशरत जहां के अधिवक्ता ने निचली अदालत के फैसले को रद करने की मांग की।
इशरत के अधिवक्ता ललित वलेचा ने कहा कि निचली अदालत का फैसला लोकतांत्रिक प्रक्रिया और मौलिक अधिकार के खिलाफ है। उन्होंने यह भी कहा कि अभियोजन पक्ष ने जांच की अवधि बढ़ाने के लिए याचिका दायर करने के दौरान अपने दिमाग का इस्तेमाल नहीं किया।
इस दौरान केंद्र सरकार की तरफ से पेश हुए अधिवक्ता अमित महाजन ने जेएनयू छात्र शरजिल इमाम की इसी से जुड़ी याचिका पर हाई कोर्ट की अन्य पीठ के फैसले को पीठ के समक्ष पेश करने की बात कही। जिसमें पीठ ने जांच की अवधि बढ़ाने के फैसले को चुनौती देने वाली इमाम की याचिका खारिज कर दी थी। न्यायमूर्ति सुरेश कुमार कैत की पीठ ने दोनों पक्षों को सुनने के बाद अपना फैसला सुरक्षित रख लिया। इशरत जहां ने निचली अदालत द्वारा 15 जून को दिए गए आदेश को चुनौती दी है।
याचिकाकर्ता ने कहा है कि कानून ने जांच के लिए 90 दिनों का समय दिया है और अतिरिक्त समय दिया जाना कानून का उल्लंघन और आरोपित के मौलिक अधिकार का भी उल्लंघन है। साथ ही उन्होंने कहा कि जांच के लिए अतिरिक्त समय दिए जाने की स्थिति में आरोपित जमानत नहीं मांग सकता और यह उसके मौलिक अधिकार का हनन है। उन्होंने मांग की थी कि तथ्यों पर गौर करके जांच के लिए अतिरिक्त समय दिए जाने के निचली अदालत के आदेश को निरस्त किया जाए।
पुलिस ने दिल्ली दंगा के मामले में इशरत जहां को 21 मार्च को गिरफ्तार किया था। इसके बाद लाकडाउन को देखते हुए पुलिस द्वारा जांच के लिए अतिरिक्त 60 दिनों का समय देने की मांग को निचली अदालत ने स्वीकार कर लिया था। अदालत ने इशरत जहां को हाल ही में शादी के लिए 10 दिनों की अंतरिम जमानत दी थी। हालांकि उनकी अंतरिम जमानत को और बढ़ाने से इन्कार कर दिया था।