कोरोना संक्रमण के बीच ओजोन प्रदूषण बढ़ा सकता है दिल्ली-NCR के लोगों की परेशानी
Delhi Pollution सिस्टम ऑफ एयर क्वालिटी एंड वेदर फोरकास्टिंग एंड रिसर्च (सफर) ने भी ओजोन की मौजूदगी को खासतौर पर इंगित किया है।
नई दिल्ली [संजीव गुप्ता]। Delhi Pollution: देशव्यापी लॉकडाउन के बीच जहां हवा के सभी प्रदूषक तत्व इन दिनों अपने निम्न स्तर पर आ गए हैं, वहीं ओजोन अब भी उच्च स्तर पर बना हुआ है। ऐसे में कोरोना संक्रमण के साथ दिल्ली में ओजोन प्रदूषण भी फेफड़ों के लिए खतरा बन रहा है। सिस्टम ऑफ एयर क्वालिटी एंड वेदर फोरकास्टिंग एंड रिसर्च (सफर) ने भी ओजोन की मौजूदगी को खासतौर पर इंगित किया है।
सेंटर फॉर साइंस एंड एन्वायरमेंट (सीएसई) के मुताबिक, आठ घंटे के औसत में ओजोन प्रदूषक की मात्रा 100 माइक्रोग्राम प्रति घन मीटर से ज्यादा नहीं होनी चाहिए, लेकिन आइटीओ पर इसकी आठ घंटे की औसत मात्रा 140 माइक्रोग्राम प्रति घन मीटर तक आ रही है। वहीं शहर से बाहर दिल्ली टेक्नीकल यूनिवर्सिटी (डीटीयू) में यह 129 माइक्रोग्राम प्रति घन मीटर तक मापी गई है।
ऐसे पैदा होता है ओजोन का प्रदूषण
सीएसई में वायु प्रदूषण विशेषज्ञ विवेक चट्टोपाध्याय के मुताबिक तीखी धूप की किरणों नाइट्रोजन डाइऑक्साइड से प्रतिक्रिया करके ओजोन के प्रदूषक कण बनाती हैं। इसके अलावा यह सड़कों पर दौड़ते वाहनों से निकल रहे धुएं, कचरा जलाने और उद्योगों के धुएं से भी पैदा होता है।
डॉ. एसके त्यागी (पूर्व अपर निदेशक, सीपीसीबी) के मुबातिबक, आमतौर पर हवा में प्रदूषक तत्व पीएम 10 और पीएम 2.5 के आधार पर ही वायु गुणवत्ता मापी जाती है, लेकिन गर्मियों में ओजोन प्रदूषण पर भी निगाह रहती है। हैरत की बात यह कि लॉकडाउन में भी इसका उच्च स्तर गंभीर मसला है। इसकी रोकथाम के लिए उपाए किए जाने चाहिए।
क्यों खतरनाक है ओजोन?
2017 में अमेरिका के हेल्थ इफेक्ट इंस्टीट्यूट की एक रिपोर्ट में कहा गया था कि ओजोन का सीधा असर फेफड़ों और कॉर्निक आब्सट्रेक्टिव पल्मोनरी डिजिज (सीओपीडी) पर पड़ता है। अस्थमा, सांस और फेफड़ों की बीमारियों से जूझ रहे व्यक्ति पर इसका असर तुरंत दिखने लगता है। इससे फेफड़ों के टिशू खराब होते हैं, छाती में दर्द, कफ, सिर दर्द, छाती में जकड़न जैसी समस्याएं भी हो सकती हैं। इन दिनों दोपहर दो से लेकर तीन बजे के बीच धूप का स्तर ज्यादा तीखा रहता है। इस दौरान ओजोन के प्रदूषक तत्व भी ज्यादा पैदा होते हैं।