Delhi Ordinance Row: सिर्फ तबादला-नियुक्ति तक ही सीमित नहीं केंद्र का अध्यादेश, जानें इसकी बड़ी बातें
2015 में जब दिल्ली की जनता ने अरविंद केजरीवाल को भारी बहुमत से जिताकर भेजा तो केंद्र की मोदी सरकार ने तीन महीने के अंदर गैर-कानूनी अधिसूचना जारी कर केजरीवाल सरकार की ताकत को छीनने का प्रयास किया।
नई दिल्ली, राज्य ब्यूरो। केंद्र सरकार का दिल्ली प्रशासन को लेकर 19 मई को लाया गया अध्यादेश सिर्फ अधिकारियों के तबादला-नियुक्ति तक सीमित नहीं है, बल्कि इसका व्यापक स्वरूप है जो दिल्ली सरकार की पूरी व्यवस्था को प्रभावित करेगा।
अध्यादेश लागू होने के बाद अब सरकार की गतिविधियों पर केंद्र की निगरानी रहेगी। चुनी हुई सरकार के आदेशों की भी जांच होगी। इसके लिए सचिव स्तर का अफसर नियुक्त होगा।
दिल्ली सरकार की शक्तियों में भारी कटौती
केंद्र द्वारा जारी अध्यादेश की बात करें तो केंद्र ने अध्यादेश के जरिये दिल्ली सरकार की शक्तियों में भारी कटौती कर दी है। अध्यादेश में सचिव स्तर के एक अधिकारी के तहत निगरानी की व्यवस्था की गई है। यह अधिकारी दिल्ली मंत्रिमंडल के फैसलों की जांच करेगा। मंत्रियों के फैसले संविधान के दायरे में हैं या नहीं, यह सुनिश्चित करना इस अधिकारी का जिम्मा होगा।
गतिविधियों पर केंद्र की रहेगी निगरानी
अगर कुछ भी इधर-उधर हो तो उसकी जानकारी उपराज्यपाल को देनी होगी। अध्यादेश की धारा 45K(3) में कहा गया है कि यदि मंत्रिपरिषद के सचिव की राय है कि मंत्रिपरिषद ने विचार के बाद जो प्रस्ताव तय किया है, वह वर्तमान में लागू कानून के प्रावधानों या बनाई गई प्रक्रिया के किसी नियम के अनुसार नहीं है तो इस बात को एलजी के संज्ञान में लाना सचिव का कर्तव्य होगा।
अध्यादेश पर क्या सोचती है AAP
उधर, आम आदमी पार्टी का कहना है कि अध्यादेश लाकर दिल्ली की चुनी हुई सरकार की शक्तियों को छीनने का ये केंद्र सरकार का पहला प्रयास नहीं है। 2015 में जब दिल्ली की जनता ने अरविंद केजरीवाल को भारी बहुमत से जिताकर भेजा तो केंद्र की मोदी सरकार ने तीन महीने के अंदर गैर-कानूनी अधिसूचना जारी कर केजरीवाल सरकार की ताकत को छीनने का प्रयास किया।
इसी तरह मई 2015 में केंद्रीय गृह मंत्रालय ने अधिसूचना जारी करते हुए कहा कि दिल्ली की चुनी हुई सरकार के पास अब सेवा विभाग नहीं है। दिल्ली सरकार के पास अफसरों के तबादले-नियुक्ति की ताकत नहीं है, उन पर भ्रष्ट अफसरों पर कार्रवाई की ताकत नहीं है।
आप के अनुसार आठ साल की कानूनी लड़ाई के बाद 11 मई को सुप्रीम कोर्ट की संवैधानिक पीठ ने कहा था कि केंद्र का ये आदेश गलत था और सेवा विभाग का अधिकार दिल्ली की चुनी हुई सरकार के पास है।
अध्यादेश की हैं ये बड़ी बातें
- अध्यादेश में यह भी कहा गया है कि अगर सचिव स्तर के अधिकारी किसी गड़बड़ी को नजरअंदाज करते हैं तो उन पर कार्रवाई हो सकती है। एलजी या केंद्र सरकार को रिपोर्ट देनी होगी। अगर चूके तो कार्रवाई की जाएगी।
- अफसरों को उन विषयों पर बेहद सावधान रहना है जिनकी वजह से केंद्र के साथ विवाद हो सकता है। अध्यादेश के अनुसार, ऐसे किसी भी मामले की जानकारी फौरन एलजी को देनी होगी।
- दिल्ली सरकार (संशोधन) अध्यादेश, 2023 में सरकार के हर विभाग के सचिव को कैबिनेट नोट समेत हर मेमो को तैयार करने और प्रमाणित करने का उत्तरदायी बनाया गया है। सचिव ही मंत्रियों और मुख्यमंत्री के सामने आने वाले हर प्रस्ताव पर विचार और मंजूरी के जिम्मेदार होंगे।
- अध्यादेश में मुख्य सचिव और संबंधित विभाग के सचिव की जवाबदेही तय की गई है। उन्हें अध्यादेश के प्रविधानों का पालन सुनिश्चित कराना होगा। कुछ भी इधर-उधर हो तो उन्हें प्रभारी मंत्री, मुख्यमंत्री और एलजी को लिखित में बताना होगा।
- अध्यादेश में सचिव स्तर के हर अधिकारी के लिए अथारिटी की तरफ से आए हर प्रस्ताव को मंजूरी देने का प्रविधान है।
- दिल्ली सरकार के मंत्रियों के फैसले संविधान के दायरे में हैं या नहीं, यह सुनिश्चित करना सचिव स्तर के अधिकारी की जिम्मेदारी होगी।
हर प्रस्ताव का होगा निरीक्षण
कैबिनेट में आने वाले प्रस्ताव का पहले सचिव स्तर का अधिकारी निरीक्षण करेगा। यह भी व्यवस्था की गई है िक दिल्ली कैबिनेट की सूचनाएं केंद्र को देने में विफल रहने वाले अफसरों पर कार्रवाई भी होगी।