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फंड को लेकर दिल्ली सरकार व नगर निगम में चलता रहा आरोप-प्रत्यारोप, आखिर किसकी गलती

निगम की कार्यशैली पर सवाल उठाते हुए विधानसभा में सरकार ने चर्चा की तो समय-समय पर निगम दिल्ली सरकार के खिलाफ निंदा प्रस्ताव पारित करते रहे।

By Prateek KumarEdited By: Published: Mon, 13 Jan 2020 07:29 PM (IST)Updated: Mon, 13 Jan 2020 07:29 PM (IST)
फंड को लेकर दिल्ली सरकार व नगर निगम में चलता रहा आरोप-प्रत्यारोप, आखिर किसकी गलती
फंड को लेकर दिल्ली सरकार व नगर निगम में चलता रहा आरोप-प्रत्यारोप, आखिर किसकी गलती

नई दिल्ली [निहाल सिंह]। भाजपा और आप में चली तनातनी का असर दिल्ली सरकार और निगमों के संबंधों पर भी पड़ा है। इसकी वजह से निगमों के हालात खराब हो गए। आलम यह है कि स्थानीय निकायों में काम करने वाले कर्मचारियों से लेकर अधिकारियों को दो से तीन माह की देरी से वेतन मिल रहा है। वेतन देरी से मिलने की वजह से निगमों में हड़ताल और कर्मचारियों का धरना प्रदर्शन भी चलता रहा है। हालांकि एक ओर जहां दिल्ली सरकार निगमों को पहले से ज्यादा फंड देने का दावा करती है, वहीं सत्ताधारी भाजपा निगमों को फंड कम जारी करने की बात कहकर पंगु बनाने का आरोप लगाती रही है।

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निगम की कार्यशैली पर सवाल

आलम यह है कि बीते पांच वर्ष में निगम की कार्यशैली पर सवाल उठाते हुए विधानसभा में सरकार ने चर्चा की तो समय-समय पर निगम दिल्ली सरकार के खिलाफ निंदा प्रस्ताव पारित करते रहे। निगमों के नेताओं ने कई बार न केवल सरकार के खिलाफ प्रदर्शन किया, बल्कि पूरे पांच वर्ष तक एक दूसरे पर आरोप प्रत्यारोप का दौर भी चलता रहा।

लड़ाई कोर्ट तक पहुंची

पांच वर्षो में दिल्ली सरकार और नगर निगम के संबंध इस हद तक खराब हो गए कि यह लड़ाई कोर्ट तक पहुंच गई। निगमों को समय से फंड न देने और कम फंड देने के मामले में दिल्ली के तीनों नगर निगम का मामला कोर्ट में पहुंच गया था। इसमें दिल्ली हाई कोर्ट ने दिल्ली सरकार को निगमों को फंड जारी करने के निर्देश दिए। हालांकि, इसके बावजूद समय-समय पर निगम के नेता फंड रोकने से लेकर फंड कम देने के आरोप लगाते रहते हैं ।

दिल्ली सरकार बनाती है निगम में भ्रष्टाचार को मुद्दा

दिल्ली सरकार और नगर निगमों में अक्सर फंड को लेकर तनातनी होती है। दिल्ली सरकार कहती है कि वह पहले से ज्यादा फंड निगमों को दे रही है, लेकिन निगम हैं कि भ्रष्टाचार को रोकने में नाकाम हो रहे हैं। यही वजह है कि निगमों की आर्थिक स्थिति खराब हो रही है। सरकार का कहना है कि विज्ञापन से लेकर पार्किंग और संपत्तिकर की ईमानदारी से वसूली करके भ्रष्टाचार कम कर सकते हैं। इससे निगमों की खराब हालत ठीक हो सकती है।

सीएम और महापौर में नहीं होती मुलाकात

दिल्ली के विकास के लिए दिल्ली के नगर निगमों के साथ दिल्ली सरकार का एकजुट होना जरूरी हैं। लेकिन, हालत यह है कि अब महापौर, मुख्यमंत्री और मंत्रियों की मुलाकात तक नहीं होती। पांच वर्ष में सीएम और महापौर के बीच गिनी-चुनी मुलाकातें हुई हैं। हालांकि, इसे लेकर तीनों नगर निगम के महापौर और पार्षद सरकार के खिलाफ प्रदर्शन भी कर चुके हैं। इतना ही नहीं दिल्ली में आग लगने से लेकर बिल्डिंग गिरने की घटनाओं पर भी आरोप प्रत्यारोप से नहीं चूकते हैं।

आप ने कहा, निगमों पर बकाया है 38 सौ करोड़

आप का दावा है कि सीएजी की रिपोर्ट के मुताबिक 31 मार्च 2018 तक तीनों निगमों पर दिल्ली सरकार का करीब 38 सौ करोड़ रुपये बकाया है। इसमें उत्तरी नगर निगम पर 2037 करोड़, पूर्वी नगर निगम पर 1395 करोड़ और दक्षिणी नगर निगम पर 381 करोड़ रुपए बकाया है, जो दिल्ली सरकार को एमसीडी से लेना है। यही नही पिछले पांच साल से दिल्ली सरकार ने इस बकाया राशि पर कोई भी ब्याज नही लिया है।

विकास के लिए संबंधों को बैठकर सुलझाना चाहिए : केएस मेहरा

दिल्ली नगर निगम के पूर्व आयुक्त केएस मेहरा ने कहा कि स्थानीय निकाय और राज्य सरकार पर नागरिकों को सेवा प्रदान करने की जिम्मेदारी होती है। ऐसे में दोनों में अगर टकराव होता है, तो इसका असर सेवाओं पर पड़ता है। इसलिए दोनों के मुखिया की यह जिम्मेदारी है कि जो भी विवाद है , उसे आपस में ही सुलझाएं। हर साल राज्य सरकार का वित्त विभाग ही तय करता है कि निगम को कितना पैसा मिलना चाहिए। लेकिन, यह पैसा साल की शुरुआत में ही मिलना चाहिए न कि साल के अंत में। हमेशा ऐसा होता रहा है कि किसी न किसी कारण निगम को पैसा मिलने में थोड़ी देरी हो जाती है। इसके चलते निगम के बहुत सारे काम रुक जाते हैं। इसके साथ ही निगम को चाहिए कि जो संसाधन हैं, उनका सही तरीके से उपयोग करे। संपत्तिकर लेंगे तब वहां सुविधाएं देंगे, इस नीति से निगम को भी बचना चाहिए।

निगम बोले, साल दर साल यूं कम हुआ बजट

निगमों में भाजपा की सरकार और हमारी केंद्र व राज्य में सरकार रही है, लेकिन निगमों को इतनी दिक्कतें कभी नहीं हुई हैं। राष्ट्रमंडल खेलों के दौरान राज्य सरकार और निगमों ने मिलकर जो कार्य किया उसकी सराहना आज भी होती है। भाजपा और आप को चाहिए था कि कोई मनमुटाव था तो एक टेबल पर बैठकर दूर करते।

अभिषेक दत्त, कांग्रेस नेता

निगम में आप को करारी हार मिली थी। इसका बदला दिल्ली सरकार ने निगमों को पंगु बनाने की रणनीति से लिया। लेकिन, वह सफल नहीं हो पाए। उन्होंने दस हजार करोड़ रुपये से ज्यादा की राशि रोक ली। महापौर मिलने का समय मांगते रहे, लेकिन मुलाकात करना तक जरूरी नहीं समझा। इसका असर निगम के कर्मचारियों पर तो पड़ा ही साथ ही विकास भी अवरुद्ध हुआ। अगर दिल्ली सरकार निगमों की मदद करती तो दिल्ली को और सुंदर व स्वच्छ बनाया जा सकता था।

जय प्रकाश, भाजपा नेता

दिल्ली सरकार ने निगमों को पहले से ज्यादा पैसा दिया, लेकिन, निगमों में भाजपा के नेता भ्रष्टाचार को बढ़ावा देते रहे। अगर फंड की दिक्कत थी, तो चुनाव में भाजपा ने अपने घोषणा पत्र में कहा था कि केंद्र से फंड लेकर आएंगे फिर फंड क्यों नहीं लेकर आए। केंद्र सरकार निगमों को फंड जारी करेगी तो हमारी सरकार उसे तुरंत निगमों को दे देगी।

किशनवती, आप नेता

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