Earthquake In Delhi: साल दर साल भूकंप के प्रति संवेदनशील हो रही दिल्ली, विशेषज्ञों ने बताया ये मास्टर प्लान
अधिकारियों के अनुसार लैंड पूलिंग पालिसी 2018 में अधिसूचित हुई। लेकिन अभी तक सफल नहीं हो सकी है। इसकी दो सबसे बड़ी बाधाएं यह हैं कि इसमें 70 प्रतिशत भूमालिकों का एक साथ आना और 70 प्रतिशत जमीन एक जगह मिलना जरूरी है।
नई दिल्ली, संजीव गुप्ता। पिछले कुछ सालों में दिल्ली की आबादी तेजी से बढ़ी है। अनधिकृत कालोनियां भी बढ़ी हैं। नियमित कालोनियों में बिल्डर फ्लैट के चलन से भी आबादी कई गुना बढ़ रही है। आबादी के बढ़ने और सुविधाओं के सीमित रहने की वजह से सिस्मिक जोन-चार में शामिल राजधानी प्राकृतिक आपदाओं के लिए संवेदनशील हो रही है। इस समस्या को दूर करने के लिए राजधानी में कई स्तरों पर प्लानिंग हुई। री-डिवेलपमेंट प्लान भी बनें, लेकिन यह सिरे नहीं चढ़ सके। इसका सबसे बड़ा उदाहरण लैंड पूलिंग पालिसी रहा। इसके तहत एक भी सेक्टर अब तक फाइनल नहीं हो पाया है।
अभी तक किए गए प्रयास
अधिकारियों के अनुसार लैंड पूलिंग पालिसी 2018 में अधिसूचित हुई। लेकिन अभी तक सफल नहीं हो सकी है। इसकी दो सबसे बड़ी बाधाएं यह हैं कि इसमें 70 प्रतिशत भूमालिकों का एक साथ आना और 70 प्रतिशत जमीन एक जगह मिलना जरूरी है।
हालांकि ड्राफ्ट मास्टर प्लान-2041 में एफएआर बढ़ाकर पुरानी बिल्डिंगों को पुनर्विकसित करने का प्लान है। इससे राजधानी की इन कालोनियों में बसी आबादियों के लिए उंची इमारतें बनेंगी। इससे बची जगहों पर जनसुविधाओं को बढ़ाया जाएगा। इससे यहां पार्किंग, सड़कें, हेल्थ सर्विसेज, पार्क आदि के लिए जगह बचेगी।
अगस्त-2022 में शहरी विकास मंत्रालय ने शहरी पुनर्विकास में तेजी लाने के लिए दिल्ली विकास अधिनियम 1957 में बदलाव भी प्रस्तावित किए हैं। यदि इसे मंजूरी मिलती है तो एक बड़ी अडचन साफ होगी।
क्यों है पुनर्विकास की जरूरत
राजधानी की घनी आबादी वाली कालोनियों में इस समय बिल्डर फ्लैट्स का चलन तेजी से फलफूल रहा है। 50 से 200 गज जमीन पर चार मंजिल इमारत में यह लोग कई फ्लैट्स बना देते हैं। इनमें से ज्यादातर फ्लैट्स का न लेआउट प्लन होता है न क्वालिटी चेक। यह भूकंपरोधी हैं या नहीं यह तो काफी बाद में आता है।
क्या कहते हैं विशेषज्ञ
डीडीए के पूर्व कमिश्नर (प्लानिंग) ए के जैन ने बताया कि नियम तो अनेक हैं लेकिन उन्हें लागू करना राजधानी में मुश्किल हो रहा है। राजधानी की 50 प्रतिशत से अधिक बिल्डिंग के लिए प्लान नहीं है। गांव में निर्माण पर कोई रोकटोक नहीं है। 2007 में एक कमेटी बनी थी जिसने 80 प्रतिशत बिल्डिंग अनसेफ बताई थीं। डीडीए फ्लैट्स में भी आल्ट्रेशन काफी अधिक हो रहे है। भवन उपनियम सख्ती से लागू हो नहीं पाते।
2021 के मास्टर प्लान में अहम भूमिका निभा चुके ए के जैन ने बताया कि उन्होंने सुझाव दिया था कि गांव, पुरानी दिल्ली, अनधिकृत कॉलोनियों में 100 साल पुरानी बिल्डिंग के लिए स्ट्रक्चरल सेफ्टी सर्टिफिकेट अनिवार्य किया जाए। इनमें यदि रेट्रोफिटिंग की जरूरत होती है तो उसे सरकार सबसिडाइज्ड रेट पर करे ताकि लोगों पर बहुत अधिक बोझ न आए। इसके लिए पहले लोगों को छह महीने का समय दिया गया, फिर एक साल का, फिर दो साल का और अंत में यह रद्द हो गया। यदि रीडिवेलमेंट की बात की जाए तो इसे जूडिशरी प्रासेस में लाना होगा ताकि इलेक्टेड बॉडी की दखलअंदाजी इसमें कम हो जाए।
डीडीए के पूर्व प्लानिंग कमिश्नर सब्यसाची दास ने बताया कि डीडीए एक्ट में जो बदलाव किए जा रहे हैं वह काफी पहले हो जाने चाहिए थे। यह पुनर्विकास के लिए जरूरी हैं। करीब दस साल पहले ही हम इसमें लेट हैं। इन बदलावों के बिना कोई भी प्लान सिरे नहीं चढ़ सकता। जमीन आज सबसे बड़ी समस्या है। लोग पुनर्विकास में हिस्सा नहीं लेते, इसी वजह से अनधिकृत और पुराने बसे एरिया के हालात बद से बदतर हो रहे हैं। राजधानी में लोग सालों से एक ही जगह में रह रहे होते हैं। उनकी भावनाएं भी जुड़ी होती है और यह उनकी कमाई का जरिया भी होता है। इसलिए सभी लोग इसके लिए तैयार नहीं होते।