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ग्लेंडर्स बीमारी की चपेट में दिल्ली के अश्व, घोड़े वाली गली में पसरा सन्नाटा

दामोदर बताते हैं कि जब से संक्रमण वाली बात सुनी है तब से मन में खौफ पैदा हो गया है कि कहीं काम-धंधा तो चौपट नहीं हो जाएगा।

By Amit MishraEdited By: Published: Fri, 29 Dec 2017 02:38 PM (IST)Updated: Fri, 29 Dec 2017 08:29 PM (IST)
ग्लेंडर्स बीमारी की चपेट में दिल्ली के अश्व, घोड़े वाली गली में पसरा सन्नाटा
ग्लेंडर्स बीमारी की चपेट में दिल्ली के अश्व, घोड़े वाली गली में पसरा सन्नाटा

नई दिल्ली [ललित कौशिक]। राजधानी के अश्व ग्लेंडर्स बीमारी की मार झेल रहे हैं और अश्व पालकों के माथे चिंता की लकीरें गहरी उभर आई हैं। आलम यह है कि अश्व संक्रमण से अधिक तेज चिंता और परेशानी का फैलाव हो रहा है। जैसे ही किसी घोड़े का सैंपल लिया जाता है, आस-पास के मालिकों जान हलक में अटक जाती है।

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करोलबाग के गोशाला रोड पर स्थित है घोड़े वाली गली। नाम के अनुरूप ही यहां हर तरफ अश्व पालन का नजारा आसानी से दिख जाएगा। लगन-साये के दौरान यह इलाका काफी गुलजार होता है, लेकिन आजकल यहां सन्नाटा पसरा है। कारण है घोड़ों की ग्लेंडर्स बीमारी और पालक इससे चिंताग्रस्त हैं। घोड़ों के इस्तेमाल को लेकर रोक होने व इसके बाद जो असमंजस की स्थिति पैदा हुई है, उससे उनकी जिंदगी ठहर सी गई है। उन्हें भी इस बात का भय सताने लगा है कि कहीं उनके घोड़े भी तो इस बीमारी से संक्रमित नहीं हो जाएंगे।

घोड़े वाले को नुकसान 

पालक अब हाथ पर हाथ रखे घोड़ों के खून जांच की रिपोर्ट के आने का इंतजार कर रहे हैं, जिसके शनिवार तक आने की संभावना है। मानक चंद घोड़े वाले ने सबसे प्रमुख समस्या की ओर ध्यान दिलाया, कहने लगे आज के समय घोड़े की कीमत लाखों तक होती है। ऐसे में किसी बीमारी का संक्रमण निकल जाए तो घोड़े वाले को सिवाय नुकसान के कुछ हाथ नहीं लगता। एक तो वह घोड़ा काम का नहीं रह जाता और अन्य घोड़ों में भी संक्रमण का कारण बन जाता है। संक्रमण से घोड़े के मरने पर सरकार की ओर से 25000 रुपये और गधे-खच्चर के मरने पर 16000 रुपये ही मुआवजा मिलता है, जो नाकाफी है।

100 साल पुराना है घोड़ों का काम

मानक ने कहा कि कई परिवारों का तो यह सौ साल से भी पुराना काम है। हालांकि ऐसे परिवारों की संख्या यहां पर अब काफी कम बची है। यहां तकरीबन 35 घोड़े-घोड़ियां हैं। इतनी संख्या में ही करोलबाग के संत नगर में भी घोड़े हैं। वहीं, दामोदर बताते हैं कि जब से संक्रमण वाली बात सुनी है तब से मन में खौफ पैदा हो गया है कि कहीं काम-धंधा तो चौपट नहीं हो जाएगा। वैसे अभी तक किसी ने भी बुकिंग रद नहीं कराई है। पश्चिमी दिल्ली की तरफ घोड़े ले जाने के लिए मना किया गया है। हमारे घोड़े दिल्ली-एनसीआर के कई हिस्सों में जाते हैं।

पुलिस के घोड़ों में नहीं है ग्लेंडर्स बीमारी

सुकून की बात है कि दिल्ली पुलिस के घोड़े बीमारी से महफूज है। माउंडेट पुलिस (घोड़ों को देखरेख करने वाली पुलिस) ने सभी 31 घोड़ों के नमूने की हरियाणा स्थित लैब में जांच कराई, जिसमें घोड़े स्वस्थ पाए गए। डीसीपी प्रोविजनिंग एंड लॉजिस्टिक शरत कुमार सिन्हा ने इसकी पुष्टि की। उन्होंने कहा कि आगे भी दिल्ली पुलिस के घोड़ों में ग्लेंडर्स बीमारी न हो इसके लिए एहतियात के तौर पर हर दो-चार दिनों में नमूने लेकर जांच के लिए लैब में भेजा जाएगा। इसके अलावा अस्तबल में साफ-सफाई, पशुओं का खान-पान आदि सभी पर ध्यान रखा जा रहा है। उन्होंने कहा कि गणतंत्र दिवस में घोड़ों की उपस्थिति में कोई शंका नहीं है।

संक्रमण को लेकर चिड़ियाघर प्रशासन भी सतर्क

चिड़ियाघर के क्यूरेटर रियाज अहमद खान ने बताया कि चिड़ियाघर प्रशासन संक्रमण से बचाव के लिए सतर्क है। दावा किया कि प्रवेश द्वार से लेकर वन्य प्राणियों के बाड़े तक में संक्रमण से निपटने के लिए पुख्ता इंतजाम है। बाड़े में वन्य प्राणियों की देखभाल करने वाले कीपर की भी अलग पोशाक होती है। वह लाल दवा से ही हाथ-पैर धोकर अंदर जाते है। इससे किसी प्रकार के संक्रमण के होने की आशंका नहीं रहती है।

संक्रमण होने का सवाल ही नहीं

चिड़ियाघर के प्रवेश द्वार पर भी टायर बाथ बनाया गया है, जिसमे से होकर ही वाहन अंदर आते है। उन्होंने बताया कि इस समय से जो बीमारी घोड़ों में हो रही है, वो ज्यादातर पालतू जीव-जंतुओं में होती है। ऐसे में चिड़ियाघर में संक्रमण होने का सवाल ही नहीं होता है। यहां पर ऐसा कोई वन्य प्राणी नहीं है। इसके अलावा बाड़े जिस तरह से बने हुए हैं उससे पर्यटकों और वन्य प्राणियों के बीच में किसी प्रकार का संपर्क होने की आशंका न के बराबर ही रहती है।  

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