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वकीलों पर कार्रवाई के मामले में हाई कोर्ट की टिप्पणी, कहा- फेसबुक के आधार पर तय नहीं होगा किसी का मौजूदा स्थान

दिल्ली हाई कोर्ट ने सख्त टिप्पणी करते हुए कहा कि किसी के फेसबुक पोस्ट के आधार पर तय नहीं किया जाना चाहिए की वह किस स्थान पर मौजूद है। आईपीएबी द्वारा दो अधिवक्ताओं पर कार्रवाई करने के मामले में कोर्ट ने यह टिप्पणी की है।

By Vineet TripathiEdited By: Abhi MalviyaPublished: Wed, 14 Dec 2022 02:46 PM (IST)Updated: Wed, 14 Dec 2022 02:46 PM (IST)
वकीलों पर कार्रवाई के मामले में हाई कोर्ट की टिप्पणी, कहा- फेसबुक के आधार पर तय नहीं होगा किसी का मौजूदा स्थान
आइपीएबी ने लगाया था पांच हजार का जुर्माना

नई दिल्ली, जागरण संवाददाता। दिल्ली हाई कोर्ट ने दो अधिवक्ताओं पर हुई कार्रवाई के मामले में फेसबुक पोस्ट को लेकर सख्त टिप्पणी की है। हाई कोर्ट ने कहा है कि किसी व्यक्ति के फेसबुक पोस्ट के आधार पर यह तय नहीं किया जा सकता है कि वह उसी स्थान पर मौजूद था या नहीं।

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दरअसल, दो अधिवक्ताओं के खिलाफ कार्रवाई करने के बौद्धिक संपदा अपीलीय बोर्ड (आईपीएबी) के आदेश को रद्द करते हुए दिल्ली हाई कोर्ट ने स्पष्ट किया है कि अदालत फेसबुक पर पोस्ट को किसी विशेष समय पर किसी व्यक्ति का स्थान निर्धारित करने के रूप में नहीं माना जा सकता है। न्यायमूर्ति सी हरि शंकर की पीठ ने आइपीएबी के आदेश को रद्द करते हुए अधिवक्ताओं के मामले में दोबारा सुनवाई करने का निर्देश दिया।

ये है पूरा मामला

दिसंबर 2020 में आबीपीएबी ने मामले में अधिवक्ता की तरफ से प्राक्सी वकील के तौर पर पेश होकर अगली तारीख मांगने पर दो अधिवक्ताओं के खिलाफ कार्रवाई करने का बार काउंसिल आफ इंडिया को निर्देश दिया था।इसे लेकर दोनों अधिवक्ताओं ने कहा था कि वे कोरोना संक्रमण के कारण क्वारंटाइन में हैं।

आइपीएबी ने लगाया था पांच हजार का जुर्माना

स्थगन अनुरोध का विरोध करते हुए आइपीएबी के अधिवक्ता ने पेश हुए अधिवक्ताओं में से एक का फेसबुक पेज दिखाते हुए दावा किया था कि उसकी अंतिम गतिविधि चेन्नई के मरीना बीच पर दिखाई गई थी। आइपीएबी ने पांच हजार रुपये का जुर्माना लगाते हुए अगली तारीख देने के अनुरोध को ठुकरा दिया था।

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हालांकि, पीठ ने कहा कि बहस करने वाले वकील सुवर्ण राजन चौहान थे, जो वास्तव में क्वारंटाइन में थे और 30 अप्रैल को उनकी मृत्यु हो गई। अदातल ने कहा कि वैसे भी अदालत की राय में एक फेसबुक पोस्ट के आधार पर वकील के खिलाफ प्रतिकूल दृष्टिकोण लेने और बार काउंसिल आफ इंडिया को भेजने से पहले आइपीएबी को कम से कम एक बार परिस्थितियों को स्पष्ट करने का मौका देना चाहिए था।

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