उपराज्यपाल की अनुमति के बगैर दिल्ली विस स्पीकर नहीं कर सकते नियुक्ति : दिल्ली हाई कोर्ट
वर्ष 2002 में तत्कालीन स्पीकर द्वारा सचिव के रूप में की गई नियुक्ति को रद करने के एलजी के निर्णय को अदालत ने उचित ठहराया। साथ ही कहा कि याचिकाकर्ता सिद्धार्थ राव की नियुक्ति और पदोन्नति की पूरी श्रृंखला अनियमितताओं से परिपूर्ण है।
नई दिल्ली, जागरण संवाददाता। उपराज्यपाल की अनुमति के बगैर दिल्ली विधानसभा में स्पीकर द्वारा की गई नियुक्ति व पदोन्नति को दिल्ली हाई कोर्ट ने अवैध और अनियमितताओं से परिपूर्ण करार दिया है। नियुक्ति को रद करने के तत्कालीन उपराज्यपाल के निर्णय को चुनौती देने वाली याचिका को खारिज करते हुए न्यायमूर्ति चंद्र धारी सिंह की पीठ ने कहा कि याचिकाकर्ता सिद्धार्थ राव की नियुक्तियों से लेकर पदोन्नति की पूरी श्रृंखला सक्षम प्राधिकारी (उपराज्यपाल) के अनुमोदन के बिना की गई और यह अनियमितताओं और अवैधताओं के साथ कानून की उचित प्रक्रिया को दूषित करने वाली है।
याचिकाकर्ता ने अपने बचाव के लिए नहीं दिया स्पष्टीकरण
अदालत ने कहा कि उपराज्यपाल के आदेश पर राव के खिलाफ न सिर्फ कारण बताओ नोटिस जारी किया गया था, बल्कि सुनवाई का मौका भी दिया गया था। हालांकि, उक्त नोटिस के बावजूद भी याचिकाकर्ता ने अपने बचाव के लिए कोई स्पष्टीकरण नहीं दिया।
ऐसे में सक्षम प्राधिकारी यानी उपराज्यपाल ने याचिकाकर्ता की सेवा को सही तरीके से समाप्त कर दिया था।अदालत ने कहा कि याचिकाकर्ता को अपना पक्ष रखने के पर्याप्त अवसर दिए गए थे, लेकिन याची ने अपनी आंख और कान बंद रखना उचित समझा चुना। ऐसे में उनकी बर्खास्तगी को अवैध नहीं कहा जा सकता है।
अदालत ने यह भी कहा कि यह कानून की स्थापित स्थिति है कि जब कोई नियुक्ति कानून की नजर में नियुक्ति नहीं होती है, तो नियुक्त व्यक्ति न तो पद पर अधिकार का दावा कर सकता है और न ही भारत के संविधान के अनुच्छेद 311 के तहत प्रदान की गई संवैधानिक गारंटी का दावा कर सकता है।
यह है मामला
पूरा मामला आरके पुरम स्थित केंद्रीय सचिवालय में पब्लिसिटी आफिसर पद पर तैनात रहे याचिकाकर्ता सिद्धार्थ राव की दिल्ली विधान सभा में प्रतिनियुक्ति से लेकर उनके विस सचिव बनने से जुड़ा है। तत्कालीन विस स्पीकर के 16 दिसंबर 1998 के दिल्ली सरकार के सर्विस विभाग को लिखे पत्र के आधार पर राव को स्पीकर का आफिसर आफ स्पेशल ड्यूटी नियुक्त किया गया। इसके बाद प्रतिनियुक्ति पर याचिकाकर्ता की सेवाओं के लिए स्पीकर द्वारा सचिव कैबिनेट सचिवालय को 29 दिसंबर 1998 को पत्र लिखे गए पत्र के आधार पर 31 दिसंबर को विस में शामिल होने से मुक्त कर दिया गया।
राव ने विस में संयुक्त सचिव के पद एक जनवरी 1999 को कार्यभार ग्रहण किया। स्पीकर ने इसके बाद राव को विस में स्थायी रूप से स्थानांतरित करने के संबंध में 21 अगस्त 2001 तत्कालीन प्रधानमंत्री को पत्र लिखा। इस पर प्रतिनियुक्ति अवधि पूरी होने पर राव को विस सचिवालय में स्थायी रूप से समाहित कर लिया गया।
मामला स्थायी नियुक्ति तक ही नहीं रहा। इसके बाद उनके सचिव पद पर पदोन्नत करने के लिए स्पीकर ने 13 नवंबर 2002 को लोक सभा से राय मांगी। दो फरवरी को लोस महासचिव ने राय दी थी कि सचिवालय के कर्मचारियों की भर्ती और सेवा की शर्तों पर अधिकारियों का कोई सीधा नियंत्रण नहीं होना चाहिए। हालांकि, अंतिम निर्णय स्पीकर के विवेकाधिकार पर छोड़ दिया था।
इसी आधार पर दो दिसंबर 2002 को राव को सचिव के पद पर पदोन्नत कर दिया गया। हालांकि, तत्कालीन उपराज्यपाल ने राव को 17 मई 2010 को सेवाओं से मुक्त कर दिया गया था और छह दिसंबर 2013 को उनकी सेवाओं को समाप्त कर दिया गया था।याचिकाकर्ता की दलीलसिद्धार्थ राव ने तर्क दिया कि उन्हें बिना कोई कारण बताए 17 मई 2010 को मुक्त कर दिया और छह दिसंबर 2013 को उन्हें बर्खास्त कर दिया गया था।
उन्होंने तर्क दिया था कि बिना कोई जांच किए जारी किया गया आदेश संविधान के अनुच्छेद-311 का उल्लंघन है।इस आधार पर भी आदेश को चुनौती दी गई कि प्रतिवादी न तो नियुक्ति प्राधिकारी है और न ही याचिकाकर्ता का अनुशासनिक प्राधिकारी। उन्होंने यह भी दलील दी कि अखिल भारतीय सेवा या विनियमन 3(बी) के तहत एक केंद्रीय सेवा का सदस्यता रखने वाले किसी भी अधिकारी के मामले में यूपीएससी से परामर्श की आवश्यकता नहीं है।
स्पीकर को नहीं है नियुक्ति का अधिकार
एएससी उपराज्यपाल की तरफ पेश हुए एडिशनल स्टैंडिंग काउंसल (एएससी) यीशु जैन ने कहा कि मूल प्रश्न यह है कि क्या दिल्ली विस स्पीकर के पास कोई भी भर्ती नियम की अनुपस्थिति में गैर-मौजूद पद पर ओएसडी की भर्ती करने, संयुक्त सचिव के पद से लेकर सचिव के पद पर नियुक्ति करने की कोई शक्ति है। उन्होंने दलील दी कि संविधान के अनुच्छेद-187 के तहत राज्यों को अलग-अलग सचिवीय कर्मचारी रखने के लिए प्रदान की गई शक्तियां केंद्र शासित प्रदेश होने के कारण राष्ट्रीय राजधानी क्षेत्र दिल्ली के पास नहीं है।
ऐसे में अनुच्छेद 187 केंद्र शासित प्रदेश की विधान सभा यानी दिल्ली पर लागू नहीं होता है। जैन ने कहा कि अन्य राज्यों के विपरीत दिल्ली की विधान सभा में उपराज्यपाल के अनुमोदन से पद सृजित किए जा सकते हैं। उपराज्यपाल ही दिल्ली के सक्षम प्राधिकारी हैं। उन्होंने यह भी दलील दी कि 14 दिसंबर 1993 को विधान सभा के गठन के बाद से कोई अलग सचिवीय संवर्ग नहीं है या न ही अलग सचिवीय संवर्ग के निर्माण के लिए कोई मंजूरी है।
विस में स्पीकर या किसी अन्य प्राधिकरण के पास कोई पद सृजित करने या सचिव के पद सहित किसी भी पद पर नियुक्ति की कोई अधिकार नहीं है। यीशू जैन ने कहा कि केंद्रीय सिविल सेवा के लिए सभी नियुक्तियों के नियुक्ति की शक्तियां उपराज्यपाल के पास हैं।