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दिल्ली हाईकोर्ट ने कहा- न्यायिक प्रक्रिया पर संदेह पैदा कर रहे हैं केजरीवाल

सरकारी गवाह के माध्यम से न्यायिक प्रक्रिया पर आक्षेप लगाने के लिए दिल्ली हाईकोर्ट (Delhi High Court) ने मुख्यमंत्री अरविंद केजरीवाल (Arvind Kejriwal) को आड़े हाथों लिया। न्यायमूर्ति स्वर्ण कांता शर्मा की पीठ ने कहा कि क्षमादान देने के तरीके या अनुमोदकों के बयान दर्ज करने के तरीके पर संदेह करना न्यायिक प्रक्रिया पर संदेह पैदा करने के समान है।

By Vineet Tripathi Edited By: Geetarjun Published: Tue, 09 Apr 2024 11:36 PM (IST)Updated: Tue, 09 Apr 2024 11:36 PM (IST)
दिल्ली हाईकोर्ट ने कहा- न्यायिक प्रक्रिया पर संदेह पैदा कर रहे हैं केजरीवाल
दिल्ली हाईकोर्ट ने कहा- न्यायिक प्रक्रिया पर संदेह पैदा कर रहे हैं केजरीवाल

विनीत त्रिपाठी, नई दिल्ली। सरकारी गवाह के माध्यम से न्यायिक प्रक्रिया पर आक्षेप लगाने के लिए दिल्ली हाईकोर्ट ने मुख्यमंत्री अरविंद केजरीवाल को आड़े हाथों लिया। न्यायमूर्ति स्वर्ण कांता शर्मा की पीठ ने कहा कि क्षमादान देने के तरीके या अनुमोदकों के बयान दर्ज करने के तरीके पर संदेह करना न्यायिक प्रक्रिया पर संदेह पैदा करने के समान है।

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केजरीवाल ने याचिका में तर्क दिया था कि अनुमोदक राघव मगुंटा और शरथ रेड्डी के विलंबित बयानों पर भरोसा नहीं किया जा सकता है, क्योंकि उन्होंने चुनावी बांड के माध्यम से सत्तारूढ़ पार्टी को दान भी दिया था।

'मतलब न्यायिक प्रक्रिया पर संदेह करना'

अदालत ने कहा कि माफी देने या अनुमोदनकर्ता के बयान दर्ज करने के तरीके के बारे में संदेह करना न्यायिक प्रक्रिया पर संदेह करना है, क्योंकि क्षमा देना या अनुमोदनकर्ता का बयान दर्ज करना जांच एजेंसी का क्षेत्र नहीं है। यह एक न्यायिक प्रक्रिया है, जिसमें एक न्यायिक अधिकारी अनुमोदक का बयान दर्ज करने और क्षमा देने या न देने के लिए सीआरपीसी के प्रविधानों का पालन करता है।

अदालत ने कहा कि सीआरपीसी की उक्त प्रक्रिया को चुनौती दिए बिना यह मानना कि मामले में अनुमोदनकर्ता को दी गई माफी ईडी के आदेश पर थी, न्यायिक प्रक्रिया पर सवाल उठा सकती है, जो किसी सरकार या जांच एजेंसी के बजाय कानून द्वारा शासित होती है।

अदालत ने कहा कि वर्तमान मामला पहला और आखिरी नहीं था, जिसमें अनुमोदकों के बयान दर्ज किए गए थे। अभियोजन पक्ष द्वारा उनपर भरोसा किया गया था और ट्रायल के दौरान केजरीवाल अनुमोदक के बयानों का परीक्षण करने के लिए स्वतंत्र होंगे।

विशेष व आमजन के विरुद्ध अलग-अलग नहीं हो सकती जांच

न्यायमूर्ति स्वर्ण कांता शर्मा की पीठ ने कहा कि आपराधिक मामले की जांच विशेष व आमजन के विरुद्ध अलग-अलग नहीं हो सकती। पीठ ने कहा कि यह अदालत कानूनों की दो अलग-अलग श्रेणियां नहीं बनाएगी, जिसमें एक आम जनता के लिए हो और दूसरा जांच एजेंसियों द्वारा मुख्यमंत्री या सत्ता में किसी भी व्यक्ति को केवल सार्वजनिक पद पर होने के आधार पर विशेष अधिकार देते हुए हो।

सार्वजनिक हस्तियों की जवाबदेही आम जनता की तरह ही होनी चाहिए। अदालत ने यह भी कहा कि चुनाव के दौरान गिरफ्तारी के समय को लेकर केजरीवाल के रुख को कायम रखने का मतलब उस व्यक्ति को स्थिति का फायदा उठाने और बाद में दुर्भावनापूर्ण दलील देने की अनुमति देना होगा, जो जांच एजेंसी के सामने खुद को पेश करने में देरी करता है।

अनुमोदकों के बयान को नजरअंदाज करने का नहीं है आधार

अदालत ने कहा कि केवल इसलिए कि अनुमोदकों ने केजरीवाल की भूमिका को छुपाने के बाद के चरण में बयान देने का निर्णय लिया है, यह उनके बयानों को पूरी तरह से नजरअंदाज करने का आधार नहीं हो सकता। ऐसा इसलिए है क्योंकि बाद में आरोपित को अपनी गलती का एहसास हो सकता है अौर वह कानून के अनुसार क्षमा करने की सुरक्षा के बदले में सही तथ्य बताने की पेशकश कर सकता है। अदालत ने कहा कि मगुंटा एस रेड्डी व राघव मगुंटा ने अपनी मर्जी से आरोपित के विरुद्ध बयान दिया है। इस पर यह अदालत ने सवाल नहीं उठा सकती है।

केजरीवाल व आप की तरफ से विजय नायर ने ली थी 100 करोड़ की रिश्वत

अदालत ने यह भी कहा कि 18 नवंबर 2022 को दिए अपने बयान में आप मीडिया प्रभारी विजय नायर ने कहा था कि वह दिल्ली सरकार के मंत्री कैलाश गहलोत को आवंटित सरकारी बंग्ले में रहता था। अदालत ने कहा कि अनुमोदक व गवाह प्रथम दृष्टया बताते हैं कि विजय नायर ने केजरीवाल व आप की तरफ से दक्षिण समूह की शराब लाबी से 100 करोड़ रुपये की रिश्वत ली थी और इसका उपयोग गोवा विधानसभा चुनाव में किया गया था।


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