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Delhi: आरोप पत्र में नाम नहीं होने का मतलब यह नहीं कि आरोपित लेनदेन में नहीं था शामिल- HC

400 करोड़ की धोखाधड़ी मामले में आरोपित दीप कंवर सिंह वालिया को दिल्ली हाई कोर्ट ने यह कहते हुए जमानत देने से इन्कार कर दिया कि आरोप पत्र में नाम नहीं होने का मतलब यह नहीं कि आरोपित लेनदेन में शामिल नहीं था।

By Vineet TripathiEdited By: GeetarjunPublished: Sun, 25 Dec 2022 12:01 AM (IST)Updated: Sun, 25 Dec 2022 12:01 AM (IST)
आरोप पत्र में नाम नहीं होने का मतलब यह नहीं कि आरोपित लेनदेन में नहीं था शामिल- HC

नई दिल्ली, जागरण संवाददाता। 400 करोड़ की धोखाधड़ी मामले में आरोपित दीप कंवर सिंह वालिया को दिल्ली हाई कोर्ट ने यह कहते हुए जमानत देने से इन्कार कर दिया कि आरोप पत्र में नाम नहीं होने का मतलब यह नहीं कि आरोपित लेनदेन में शामिल नहीं था। न्यायमूर्ति सुधीर कुमार जैन की पीठ ने कहा कि 400 करोड़ रुपये की धोखाधड़ी की गई है और 150 लोगों के पैसे ठगे गए।

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अदालत ने कहा कि याचिकाकर्ता इस संबंध में कोई दस्तावेज नहीं पेश कर सका कि वह कंपनी में सिर्फ कर्मचारी है। अपराध की गंभीरता और तथ्यों को देखते हुए आरोपित को जमानत नहीं दी जा सकती है।

अदालत ने क्या कहा?

अदालत ने कहा कि आरोपित दीप कंवर सिंह वालिया ने दलील दी है कि सह-आरोपित सतिंदर सिंह भसीन के खिलाफ हुई प्राथमिकी और दाखिल आरोप पत्र में याचिकाकर्ता का नाम नहीं है। हालांकि, यह भी स्पष्ट है कि वालिया के हस्ताक्षर के तहत निवेशक का पैसा कंपनी के उक्त खाते से अन्य कंपनियों को भेजा गया था।

इतना ही नहीं आरोपित ने जांच में सहयोग नहीं किया और गिरफ्तारी से भाग रहा है। ऐसे में इस स्तर पर यह नहीं कहा जा सकता है कि आरोपित प्रत्यक्ष व अप्रत्यक्ष रूप से कंपनी से जुड़े कार्यों से जुड़ा नहीं था।

यह है मामला

पूरा मामला दिसंबर 2018 को आर्थिक अपराध शाखा में धोखाधड़ी, आपराधिक साजिश समेत अन्य धाराओं के तहत हुई प्राथमिकी से जुड़ा है। शिकायतकर्ता ने आरोप लगाया है कि नोएडा सेक्टर-143बी स्थित बिसनेस टावर में 23.61 लाख रुपये निवेश किया था।

कंपनी ने दावा किया था कि उन्हें तीन साल में आवंटन दे दिया जाएगा, लेकिन उन्हें इसका आवंटन नहीं किया गया। इसके बाद कंपनी ने नोएडा प्राधिकरण से स्वीकृति के बगैर ही 12 जनवरी 2015 में रिवाइज मैप दाखिल कर दिया। फिर यह प्रोजेक्ट किसी अन्य कंपनी को सौंप कर लिया और निवेशकों को उनके साथ अनुबंध करने के लिए मजबूर किया गया।

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फंड की अनियमितता का लगाया आरोप

वहीं, कंपनी के निदेशकों धर्म नारायण गौतम, विनोद कुमार, कनवरजीत सिंह और सतिंदर सिंह भसीन ने अवैध तरीके से कंपनी के फंड के साथ अनियमितता की। इसके साथ ही कंपनी ने प्रोजेक्ट के संबंध में गलत विज्ञापन दिया।


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