गौतम नवलखा मामले में सुप्रीम कोर्ट के आदेश का अध्ययन कर फैसला सुनाएगा हाई कोर्ट
नवलखा के मामले में सुनवाई के दौरान गौतम या उनके वकील को अरेस्ट मेमो नहीं देने पर हाई कोर्ट ने नाराजगी जताई है। सुनवाई के दौरान जस्टिस मुरलीधर ने गवाहों की विश्वसनीयता पर सवाल उठाए।
नई दिल्ली [जेएनएन]। भीमा-कोरेगांव हिंसा मामले में महाराष्ट्र की पुणे पुलिस द्वारा गिरफ्तार किए गए सोशल एक्टिविस्ट गौतम नवलखा के मामले में दायर याचिका पर बुधवार को लंबी बहस हुई। न्यायमूर्ति एस मुरलीधर व न्यायमूर्ति विनोद गोयल की पीठ ने महाराष्ट्र पुलिस द्वारा की गई गिरफ्तारी पर कई गंभीर सवाल उठाए। पीठ ने कहा कि वह इस प्रकरण में निचली अदालत द्वारा नवलखा को पुणे की एक अदालत ले जाने को लेकर दिए गए ट्रांजिट रिमांड व गिरफ्तारी की वैधता का परीक्षण करेगी। मामले में दोनों पक्षों को सुनने के बाद जब पीठ अपना फैसला लिखवा रही थी तभी पुणे पुलिस के वकील एडिशनल सॉलिसिटर जनरल अमन लेखी ने बताया कि इसी मामले में सुप्रीम कोर्ट में चल रही एक अन्य सुनवाई में उसने ट्रांजिट रिमांड पर छह सितंबर तक रोक लगा दी है।
इस पर नवलखा की वकील नित्या रामकृष्णन ने कहा कि अदालत अपना फैसला सुना दे, हम इसकी जानकारी सुप्रीम कोर्ट को दे देंगे। इस पर पीठ ने कहा कि ऐसे में जब इसी मामले में सुप्रीम कोर्ट ने आदेश दे दिया हो तो फिर इस अदालत के लिए इसका परीक्षण जारी रखना उचित नहीं होगा। अदालत सुप्रीम कोर्ट के फैसले का अध्ययन कर गुरुवार को अपना निर्देश जारी करेगी। सुनवाई के दौरान पीठ ने यहां तक टिप्पणी की कि अगर प्रकरण में अन्य गिरफ्तारी वैध साबित भी हो जाती है तब भी वह गौतम नवलखा की गिरफ्तारी को सही नहीं ठहरा सकती।
क्या दस्तावेज मराठी में होना अनिवार्य है
पीठ ने पुणे पुलिस से पूछा कि आखिर क्यों मराठी भाषा में मौजूद दस्तावेजों का अनुवाद कर अदालत व नवलखा को नहीं दिया गया। पीठ ने साकेत कोर्ट के ट्रांजिट रिमांड आदेश पर भी सवाल उठाते हुए कहा कि बिना अनुवादित दस्तावेजों के आदेश देने से पहले निचली अदालत ने अपने दिमाग का इस्तेमाल क्यों नहीं किया। एक व्यक्ति की स्वतंत्रता के सवाल को ध्यान में रखते हुए पीठ ने पुणे पुलिस से पूछा कि आखिर कब तक वह अनुवादित दस्तावेज को नवलखा व अदालत को उपलब्ध करा सकेगी। क्या महाराष्ट्र में सभी सरकारी व कानूनी दस्तावेज मराठी में होना अनिवार्य है। इस पर पुणे पुलिस ने कहा कि वह सभी अनुवादित दस्तावेज नवलखा के वकील को उपलब्ध करा देगी।
दिल्ली से बाहर न ले जाया जाए
इससे पहले पुणे पुलिस की तरफ से अदालत में बहस कर रहे एडिशनल सॉलिसिटर जनरल अमन लेखी ने अदालत में कहा था कि अनुवादित प्रति अभी तैयार नहीं है। गौरतलब है कि मंगलवार को पुणे पुलिस ने गौतम नवलखा को नेहरू एंक्लेव स्थित घर से गिरफ्तार किया था। नवलखा की तरफ से दायर बंदी प्रत्यक्षीकरण याचिका पर सुनवाई करते हुए हाई कोर्ट ने आदेश दिया था कि उन्हें दिल्ली से बाहर न ले जाया जाए।
नवलखा के घर के बाहर भारी सुरक्षा
भीमा-कोरेगांव हिंसा मामले में नाम आने के बाद मानवाधिकार कार्यकर्ता गौतम नवलखा के दिल्ली स्थित घर के बाहर भारी सुरक्षा-व्यवस्था की गई है। कथित गैरकानूनी गतिविधियों को लेकर महाराष्ट्र पुलिस द्वारा गिरफ्तार किए जाने के बाद दिल्ली हाई कोर्ट ने उन्हें उनके घर में नजरबंद करने का आदेश दिया है। कोर्ट के आदेश के बाद उनके घर के बाहर भारी सुरक्षा-व्यवस्था की गई है। नेहरू एंक्लेव स्थित नवलखा के घर के बाहर और सड़क पर बैरिकेड लगाए गए हैं तथा किसी भी बाहरी व्यक्ति को परिसर के अंदर नहीं जाने दिया जा रहा है।
वामपंथी संगठनों ने किया प्रदर्शन
बता दें कि इस मामले पर विभिन्न वामपंथी संगठनों के कार्यकर्ताओं ने देश के कई हिस्सों में विरोध-प्रदर्शन भी किया। पुलिस की इस कार्रवाई की तमाम दलों ने भी निंदा की है। कांग्रेस-वामदलों समेत तमाम दलों ने इसे मोदी सरकार का तानाशाही एक्शन करार दिया है। मामले में जिस तरह से गिरफ्तारी हुई है इसके बाद राष्ट्रीय मानवाधिकार आयोग ने महाराष्ट्र सरकार को नोटिस भेजा है।
सबूत हैं इसलिए किया गिरफ्तार
मामले में महाराष्ट्र के गृहमंत्री दीपक केसरकर का बड़ा बयान आया है। उनका कहना है कि जो भी गिरफ्तारियां हुई हैं, वह सबूत मिलने के बाद ही हुई हैं। उन्होंने कहा कि अगर कोई इस मुद्दे पर बहस करना चाहता है, तो वह कर सकता है। मंत्री ने कहा कि हमने सभी कानूनी प्रक्रियाओं का पालन किया है।
कौन हैं गौतम नवलखा
गौतम नवलखा सामाजिक कार्यकर्ता हैं। उन्होंने नागरिक अधिकार, मानवाधिकार और लोकतांत्रिक अधिकार के मुद्दों पर काम किया है। वर्तमान में नवलखा अंग्रेजी पत्रिका इकोनॉमिक एंड पोलिटिकल वीकली (ईपीडब्ल्यू) में सलाहकार संपादक के तौर पर भी काम कर रहे हैं। नवलखा लोकतांत्रिक अधिकारों के लिए काम करने वाली संस्था पीपल्स यूनियन फॉर डेमोक्रेटिक राइट्स (पीयूडीआर) से जुड़े हैं। उन्होंने इंटरनेशनल पीपल्स ट्रिब्यूनल ऑन ह्यूमन राइट्स एंड जस्टिस इन कश्मीर के संयोजक भी तौर पर काम किया है। वह कश्मीर मुद्दे पर जनमत संग्रह का समर्थन कर चर्चा में रहे हैं और इसी वजह से मई 2011 में श्रीनगर एयरपोर्ट पर उन्हें रोक लिया गया था। कश्मीर की तरह ही छत्तीसगढ़ और झारखंड में भी सेना की कार्रवाई शुरू होने पर गौतम नवलखा माओवांदी आंदोलनों पर भी नजर रखने लगे थे।