दिल्ली सरकार ने राजधानी में बंदरों के बंध्याकरण की योजना ली वापस, जानिए क्या रही इसके पीछे की वजह
दिल्ली सरकार के वन और वन्यजीव विभाग द्वारा राष्ट्रीय राजधानी में बंदरों की आबादी को नियंत्रित करने के लिए तीन साल पहले दूरबीन पद्धति से उनका बंध्याकरण करने की योजना तैयार की गई थी।
नई दिल्ली, राज्य ब्यूरो। दिल्ली सरकार ने राष्ट्रीय राजधानी में बंदरों की आबादी को नियंत्रित करने के लिए तीन साल पहले तैयार बंध्याकरण योजना को वापस ले लिया है। गर्भनिरोधक टीका लगाने का प्रस्ताव भी विचाराधीन नहीं है। इससे इतर भारतीय वन्यजीव संस्थान की मदद से बंदरों की गणना करने और उन्हें पकड़ने वाले नगर निगम के कर्मचारियों को प्रशिक्षित करने के लिए प्रस्ताव तैयार किया गया है। दिल्ली सरकार के वन और वन्यजीव विभाग द्वारा राष्ट्रीय राजधानी में बंदरों की आबादी को नियंत्रित करने के लिए तीन साल पहले दूरबीन पद्धति से उनका बंध्याकरण करने की योजना तैयार की गई थी।
अधिकारियों ने बताया कि बंदरों के प्रजनन को रोकने के लिए गर्भनिरोधक टीका देने की योजना भी तब तक ठंडे बस्ते में ही रहेगी, जब तक उसके प्रभाव और दीर्घकालिक असर का पुख्ता सबूत न मिल जाए। अधिकारियों ने बताया कि विभाग, भारतीय वन्यजीव संस्थान (डब्ल्यूआइआइ) की मदद से बंदरों की गणना करने और देहरादून स्थित संस्थान से बंदर पकड़ने वाले नगर निगम कर्मचारियों को प्रशिक्षित करवाने का प्रस्ताव तैयार कर रहा है। अधिकारी ने बताया कि यह फैसला हाल ही में हाई कोर्ट द्वारा राष्ट्रीय राजधानी में बंदरों की समस्या से निपटने के तरीकों को खोजने के लिए गठित पैनल की बैठक में लिया गया, जिसमें डब्ल्यूआइआइ के विशेषज्ञों ने भी हिस्सा लिया। बता दें कि पशु अधिकार कार्यकर्ता दिल्ली में बंदरों के बंध्याकरण का लगातार विरोध कर रहे थे। इस संबंध में हिमाचल प्रदेश और उत्तर प्रदेश के आगरा की असफलता का हवाला भी दे रहे थे।
यह थी योजना
वर्ष 2018 में तत्कालीन मुख्य वन्यजीव वार्डन ईश्वर सिंह ने बंदरों के उत्पात पर नियंत्रण करने के लिए प्रजनन योग्य आयु के बंदरों का बंध्याकरण करने के लिए तीन साल की योजना तैयार की थी। केंद्र ने पहले वर्ष के लिए 8,000 बंदरों के बंध्याकरण के लिए जनवरी 2019 में वन विभाग को 5.43 करोड़ रुपये मंजूर किए थे। अधिकारियों का कहना है कि राजधानी में एक भी बंदर का बंध्याकरण नहीं किया जा सका है। विभाग ने तीन बार टेंडर मंगाए थे, लेकिन कोई एजेंसी बंदरों को पकड़ने और उनका बंध्याकरण करने आगे नहीं आई। इसके बाद कोरोना महामारी के दौरान भी कुछ नहीं किया जा सका। लिहाजा, केंद्र को फंड वापस कर दिया गया।