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गाड़ियों-कारों में जीपीएस को लेकर दिल्ली सरकार नहीं नजर आ रही गंभीर

सुरक्षा के लिहाज से वाहनों में ग्लोबल पोजिशनिंग सिस्टम (जीपीएस) को प्रभावी माना गया है, लेकिन सरकार की सुस्ती के चलते यह व्यवस्था लकीर पीटती नजर आ रही है।

By JP YadavEdited By: Published: Sat, 21 Jul 2018 11:21 AM (IST)Updated: Sat, 21 Jul 2018 11:21 AM (IST)
गाड़ियों-कारों में जीपीएस को लेकर दिल्ली सरकार नहीं नजर आ रही गंभीर
गाड़ियों-कारों में जीपीएस को लेकर दिल्ली सरकार नहीं नजर आ रही गंभीर

नई दिल्ली (जेएनएन)। सुरक्षा के लिहाज से वाहनों में ग्लोबल पोजिशनिंग सिस्टम (जीपीएस) को प्रभावी माना गया है, लेकिन सरकार की सुस्ती के चलते यह व्यवस्था लकीर पीटती नजर आ रही है। सार्वजनिक परिवहन में महिलाओं की सुरक्षा को लेकर कई बार सवाल उठ चुके हैं। इसके बाद भी इस पर ध्यान नहीं देना चिंता का विषय है।

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दिल्ली की सड़कों पर दौड़ रहे अधिकांश ऑटो रिक्शा, टैक्सी, मिनी बस और स्कूल वाहनों में जीपीएस बंद पड़े हैं। सरकार सुस्त है और वाहन चालक भी मस्त हैं, जबकि वर्ष 2012 से ही वाहनों में जीपीएस अनिवार्य किया जा चुका है। दिल्ली सरकार की योजना है कि जीपीएस पर नजर रखने के लिए एक बड़ा कंट्रोल रूम खोला जाए।

कंट्रोल रूम से ऑनलाइन चालान किए जा सकेंगे, लेकिन इस योजना को आगे बढ़ाने का कार्य लगभग ठप है। बता दें कि परिवहन विभाग ने वाहनों की फिटनेस के लिए एक अप्रैल से उनमें जीपीएस और पैनिक बटन होना अनिवार्य कर दिया था, लेकिन चालकों के दबाव में सरकार ने इस व्यवस्था को टाल दिया है। अब वाहन चालक जीपीएस लगवाने में दिलचस्पी नहीं दिखा रहे हैं।

परिवहन विभाग का कहना है कि अप्रैल में जीपीएस लगवाने के लिए लोगों में दिलचस्पी देखी जा रही थी, जोकि अब नहीं दिख रही है। सरकार सुस्त है तो वाहन चालक भी इस पर ध्यान नहीं दे रहे हैं। परिवहन विभाग का कहना है कि बड़ी संख्या में वाहनों में जीपीएस नहीं लगे हैं। जो लगे हैं वे भी बंद पड़े हैं।

नहीं लगवा रहे पैनिक बटन

एक अप्रैल से परिवहन विभाग ने सभी ऑटो, टैक्सी व ग्रामीण सेवा में पैनिक बटन लगवाना अनिवार्य कर दिया था। फिटनेस प्रमाण पत्र के लिए पैनिक बटन अनिवार्य कर दिया था। सरकार का प्रयास था कि जो भी वाहन फिटनेस के लिए आते रहेंगे उनमें पैनिक बटन लगता रहेगा। वाहन चालकों की मांग पर सरकार ने कुछ समय के लिए वाहन चालकों को छूट दी थी। इस बारे में परिवहन मंत्री कैलाश गहलोत से उनका पक्ष जानने के लिए उन्हें फोन किया गया, लेकिन उनसे संपर्क नहीं हो सका।


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