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नई शिक्षा नीति पर शिक्षा मंत्री मनीष सिसोदिया ने उठाए सवाल, पूछा- यह फीस प्रेशर को कैसे तोड़ेगी

केंद्र सरकार द्वारा बनाई गई नई शिक्षा नीति पर दिल्‍ली के शिक्षा मंत्री मनीष सिसोदिया ने सवाल उठाया है। उन्‍होंने कहा कि यह फीस प्रेशर को कैसे तोड़ेगी।

By Prateek KumarEdited By: Published: Thu, 30 Jul 2020 06:57 PM (IST)Updated: Thu, 30 Jul 2020 07:11 PM (IST)
नई शिक्षा नीति पर शिक्षा मंत्री मनीष सिसोदिया ने उठाए सवाल, पूछा- यह फीस प्रेशर को कैसे तोड़ेगी

नई दिल्‍ली, जागरण संवाददाता। केंद्र सरकार द्वारा नई शिक्षा नीति बनाए जाने पर दिल्‍ली में आम आदमी पार्टी की सत्‍तासीन सरकार के शिक्षा मंत्री मनीष सिसोदिया ने कहा कि बहुत सालों से देश नई शिक्षा नीति का इंतजार कर रहा था। करीब 34 साल लग गए नई शिक्षा नीति आने में। अब यह सामने आया है। यह आगे की सोच रखने वाली एक नीति जरूर है मगर इस नीति में दो समस्‍याएं मुझे नजर आ रही हैं। पहली यह है कि यह पहले से चली आ रही पेरेंट्स के ऊपर फीस दबाव को तोड़ पाने में समक्ष नहीं है। वहीं, दूसरी बात यह है कि यह नीति यह बात पाने में साफ नहीं है कि यह अपने लक्ष्‍य को किस तरह पा सकेगी। यह नीति या तो इन गंभीर मुद्दे पर चुप है या तो यह उलझी हुई है। 

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सिसोदिया ने कहा कि यह एक अच्छा प्रोगेसिव डॉक्यूमेंट है। आज की चुनौतियों और खामियों को स्वीकार करता है। लेकिन पुरानी परंपरा के दबाव से मुक्त नहीं है। जिन सुधारों की बात की गई वो कैसे हासिल करेंगे उसपर या तो भ्रम है या चुप्पी है।

उन्‍होंने आगे कहा कि एचआरडी (HRD) मिनिस्ट्री का नाम शिक्षा मंत्रालय किया गया है यह अच्छी बात है मैं खुद यह कहता रहा हूं, लेकिन केवल नाम बदलने से कुछ नहीं होगा, बाकी चीज़ भी बदलनी होंगी जो नहीं बदल रहीं। अर्ली चाइल्डहुड एजुकेशन को फॉर्मल माना जाएगा ये अच्छी बात है। फाउंडेशन की पढ़ाई मातृभाषा में होगी, अच्छी बात है। B.Ed अब 4 साल की होगा, अच्छा है।

सिसोदिया के सवाल-

खामियां

1. अत्यधिक विनियमित और खराब वित्त पोषित नीति (Highly regulated and poorly funded policy)

-शिक्षा बोर्ड, शिक्षा आयोग, रेगुलेटरी अथॉरिटी आदि आपस मे टकराएंगी।

-कैसे GDP का 6% शिक्षा पर खर्च करेंगे इसका कोई ब्यौरा नहीं। ऐसे बात तो 1966 से कही जा रही है। बिना कानून बने ये नहीं होगा।

-फंडिंग के बारे कोई समाधान नहीं है।

2. पालिसी सबको समान शिक्षा की बात हो रही है लेकिन मॉडल फेल है। एक DPS स्कूल में जाने वाला मॉडल है दूसरा आंगनवाड़ी वाला मॉडल है। ये दोनों समान कैसे हो सकते हैं।

3. क्वालिटी एजुकेशन सबको देना सरकार की ज़िम्मेदारी है। लेकिन सरकारी स्कूल सिस्टम को कैसे सुधारा जाए इसका कोई ज़िक्र नहीं। बल्कि ये तो प्राइवेट स्कूल को बढ़ाने पर ज़ोर है। आप प्राइवेट स्कूल बढ़ाने की पालिसी लेकर आये हो 34 साल बाद?

4. 4 साल का B.Ed होगा अच्छी बात है। यानी आप टीचिंग में क्वालिटी लाना चाहते हो।

लेकिन आज के 80 लाख टीचर को ये आप पालिसी में कहां लगवाओगे इस पर कोई बात नहीं। यानी मौजूदा टीचर की ट्रेनिंग पर कोई काम नहीं होगा।

5. पालिसी वोकेशनल को प्रमोट करेगी। अच्छा है, लेकिन वो तो आज भी है। आज भी वोकेशनल एजुकेशन को सम्मान नहीं मिलता।

6. बोर्ड एग्जाम को आसान किया जाएगा। दो बार मौके देंगे। जबकि ज़रूरत है बोर्ड कैसे अच्छे से इवैल्यूएशन करे ज़रूरी वो है।

7. नेशनल टेस्टिंग एजेंसी बनाई जाएगी। अच्छा है। मल्टीपल एग्जाम नहीं होंगे। लेकिन फिर जब बोर्ड एग्जाम ले रहे हो तो NTA की क्या ज़रूरत है।

हायर एजुकेशन में सवाल

1. सभी यूनिवर्सिटी को बहु अनुशासनिक (multi disciplinary) बनाएंगे, लेकिन आइआइटी में लोग एक्टिंग सीखेंगे और एफटीआइआइ (FTII) में इंजीनियरिंग सीखेंगे। ये कैसे होगा? ये तो सब बर्बाद कर देगा।

2. पूरी पालिसी में स्पोर्ट्स नहीं है। ये आश्चर्यजनक है। हो सकता है अलग कोई पालिसी बना रहे हों।

समाधान/सुझाव

1. सीरियस हैं तो फंडिंग को लेकर कानून बनाओ। एजुकेशन बजट का कानून बनाया जाए कि 6% GDP का खर्च शिक्षा पर अनिवार्य होगा।

2. मौजूदा टीचरों को नेशनल और अंतरराष्ट्रीय ट्रेनिंग दिलवाएं। 80 लाख टीचर हैं देश में।

3. ओवर रेगुलेशन के मोह से निकलो। स्वायत्तता दो टीचर्स को, अन्य लोगों। अलग अलग आयोग, समिति, आदि बनाने से काम नहीं होगा।


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