Delhi Door To Door Ration Scheme: दिल्ली सरकार की कार्रवाई पर दिल्ली हाईकोर्ट ने अहम टिप्पणी, जानें क्या कहा?
मंत्रिमंडल के निर्णय को उपराज्यपाल द्वारा या उनके नाम पर की गई कार्यकारी कार्रवाई के रूप में वर्णित नहीं किया जा सकता है क्योंकि उन्होंने इस पर अपनी असहमति व्यक्त की है और इसे राष्ट्रपति के समक्ष नहीं रखा गया है।
नई दिल्ली [विनीत त्रिपाठी]। मुख्यमंत्री घर-घर राशन योजना को लागू करने की दिल्ली सरकार की कार्रवाई पर दिल्ली हाई कोर्ट ने अहम टिप्पणी की। कार्यवाहक मुख्य न्यायाधीश विपिन सांघी व न्यायमूर्ति जसमीत सिंह की पीठ ने कहा कि आउटलेट पर कतार में लगने से किसी भी व्यक्ति की गरिमा और निजता के अधिकार को ठेस नहीं पहुंचती है।
आउटलेट किसी भी वस्तु या सेवा के लिए हो सकता है। लोग दवाएं खरीदने से लेकर दूध, बस, रेलवे स्टेशनों, एयरपोर्ट और सिनेमा घरों में टिकट खरीदने के लिए कतार में खड़े होते हैं। ऐसा विचार समाज में दूसरों के अधिकारों के लिए सभ्यता, व्यवस्थित आचरण और सम्मान को नष्ट कर देगा और इसे स्वीकार नहीं किया जा सकता। पीठ ने यह टिप्पणी योजना का बचाव करते हुए बंधुआ मुक्ता मोर्चा की तरफ से पेश हुए अधिवक्ता तल्हा ए रहमान की दलीलों को खारिज करते हुए की।
पीठ ने कहा कि रहमान की इस दलील में कोई दम नहीं दिखता कि लाभार्थियों का उचित मूल्य की दुकानों से राशन लेने के लिए कतार में लगना गरिमा और गोपनीयता के अधिकार के खिलाफ है। पीठ ने कहा कि राष्ट्रीय खाद्य सुरक्षा अधिनियम (एनएफएसए) के तहत ही घर-घर राशन योजना लागू हो सकती है। आक्षेपित योजना को लागू करने के लिए मंत्रीमंडल की कार्रवाई नियमों के अनुसार नहीं थी।
राष्ट्रीय राजधानी क्षेत्र की कार्रवाई होने के लिए इसे आवश्यक रूप से उपराज्यपाल के नाम पर होना चाहिए। वर्तमान मामले में ऐसा नहीं किया गया है। मंत्रिमंडल के निर्णय को उपराज्यपाल द्वारा या उनके नाम पर की गई कार्यकारी कार्रवाई के रूप में वर्णित नहीं किया जा सकता है क्योंकि उन्होंने इस पर अपनी असहमति व्यक्त की है और इसे राष्ट्रपति के समक्ष नहीं रखा गया है। मालूम हो कि कोरोना संक्रमण के बाद दिल्ली सरकार की ओर से गरीबों के लिए घर-घर राशन योजना शुरू की गई थी। ऐसा करने के पीछे एक उद्देश्य ये भी था कि संक्रमण कम फैले।