Delhi News: उद्यमी दादी इंस्टाग्राम पर मचा रहीं धमाल, युवाओं के लिए बनीं प्रेरणा
Delhi News दादी के क्रोशिया से चीजें बनाने के हुनर को उनकी पोती युक्ति बजाज ने इंस्टाग्राम के माध्यम से दुनिया के सामने रखा और देखते ही देखते उनका हुनर लोगों को भा गया। दादी को इंस्टाग्राम पर काफी आर्डर मिल रहे हैं।
नई दिल्ली [मनीषा गर्ग]। सपने देखने और काम करने की कोई उम्र नहीं होती। जनकपुरी पूर्व निवासी 79 वर्षीय शीला बजाज उर्फ दादी ने इस बात को साबित किया है। उम्र के इस पड़ाव में वे एक उद्यमी बनकर उभरी हैं। उन्होंने वर्ष 2020 में लाकडाउन के दौरान क्रोशिया से स्वेटर, बैग, मफलर, दस्ताने, खिलौने, हेयरबैंड और ईयर रिंग जैसी चीजें बनाने का काम शुरू किया था।
दादी के इस हुनर को उनकी पोती युक्ति बजाज ने इंस्टाग्राम के माध्यम से दुनिया के समक्ष रखा और देखते ही देखते उनके हाथों का हुनर लोगों के मन को भा गया। अब तक घर के बच्चों के लिए क्रोशिया से स्वेटर बुनने वाली दादी अब कारोबारी बन गई हैं और आर्डर पर क्रोशिया से बनीं चीजें तैयार करती हैं। घर में दादी-नानी के बुने हुए स्वेटर को ओल्ड फैशन कहने वाले युवा शीला बजाज के क्रोशिया से तैयार स्वेटर को काफी पसंद कर रहे हैं।
स्थिति यह है कि दादी को इंस्टाग्राम पर इतने आर्डर मिल रहे हैं कि उनके लिए उन्हें तैयार करना मुश्किल हो गया है। शीला बजाज बताती हैं कि इस उम्र में लंबे समय तक बैठे रहना मेरे लिए काफी मुश्किल होता है। ऐसे में मैं थोड़ी देर आराम करती हूं और फिर काम में जुट जाती हूं। अब मैं काफी खुश हूं और मेरा मन लगा रहता है।
पोती ने जीवन में भर दिया उत्साह
युक्ति बताती हैं कि लाकडाउन के दौरान समय बिताना दादी के लिए काफी चुनौतीपूर्ण हो गया था। उस समय वे अपनी पुरानी चीजों को खंगालती रहती थीं। तब मुझे पता चला कि दादी क्रोशिया जानती हैं। मैंने दादी को राजी किया कि वे लाकडाउन में क्रोशिया से तरह-तरह की चीजें बनाएं, जो आज के फैशन के अनुकूल हो।
इसमें मैंने दादी की सहायता की और उन्होंने यू-ट्यूब से नवीनतम फैशन को जाना। इसके बाद मैंने इंस्टाग्राम पर काट क्राफ्ट हैंडेड नाम से दादी का एक पेज बनाया और उस पर दादी के क्रोशिया से तैयार किए सामान के फोटो व वीडियो को पोस्ट किया। लोगों को दादी के हाथों का हुनर काफी पसंद आया और हमें जमकर आर्डर मिलने लगे।
आज इंस्टाग्राम पर दादी के 40 हजार से अधिक फालोअर्स हैं। मनोरंजन के लिए दादी ने जो काम शुरू किया था, धीरे-धीरे वह कारोबार बन गया। नवंबर 2020 में दादी को उनको पहला 350 रुपये का चेक मिला था, आज दादी का वार्षिक कारोबार करीब चार लाख रुपये का है। इसमें आस-पड़ोस की महिलाएं व दादी-नानी भी मदद के लिए आगे आई हैं, ताकि समय पर आर्डर पूरा कर डिलीवर किया जा सके।
युक्ति बताती हैं कि मैं निजी कंपनी में काम करती हूं और कोरोना महामारी के चलते घर से ही काम कर रही हूं। काम के दौरान ब्रेक मिलने पर मैं दादी को पूरा सहयोग करती हूं। हालांकि मैंने भी क्रोशिया सीखने का प्रयास किया था, पर मैं सफल नहीं हुई। दादी कहती हैं कि युक्ति ने मेरे जीवन में उत्साह भर दिया है और मैं इस काम को बढ़ाना चाहती हूं, ताकि और बुजुर्ग महिलाएं भी मुझसे प्रेरित हों और अपने हुनर के माध्यम से उद्यमी बनकर उभरें।
काफी कूल हैं ये दादी
समय के साथ दादी ने खुद को काफी बदला है, ताकि नई पीढ़ी के साथ कदमताल मिला सकें। दादी की यह बात युक्ति को काफी पसंद है। युक्ति बताती हैं कि वे अपनी सभी बातें दादी को साझा करती हैं और दादी उन्हें भलीभांति समझती भी हैं। यही कारण है कि माता-पिता की मृत्यु के बाद भी मुङो कभी उनकी कमी दादी ने महसूस नहीं होने दी और इसलिए मैं दादी को ही मम्मी कहकर बुलाती हूं।
आसान नहीं था सफर
दादी 1947 में परिवार के साथ पाकिस्तान से भारत आई थीं। यहां बिहार के गया में उनका बचपन बीता और बचपन में ही क्रोशिया, सिलाई और कढ़ाई को काफी रुचि के साथ सीखा। 1961 में शादी के बाद वे दिल्ली आ गईं और यहां भी पति के साथ घर के खर्च में हाथ बंटाने के लिए वे सिलाई का काम करती थी।
हालांकि बच्चों को कभी अपना यह हुनर नहीं सिखाया। युक्ति के पिता की मौत सड़क हादसे में हो गई थी। सात वर्ष पूर्व युक्ति की मां का भी निधन हो गया। अब परिवार में पोती व पोता हैं। पोता भी कनाडा में अपनी पत्नी के साथ रहता है।