जेटली मानहानि मामले में केजरीवाल को झटका, सुप्रीम कोर्ट ने खारिज की याचिका
केजरीवाल को सुप्रीम कोर्ट से बड़ा झटका लगा है। शीर्ष अदालत ने साफ कर दिया कि केजरीवाल पर फौजदारी और दीवानी का केस एक साथ चलेगा।
नई दिल्ली (जेएनएन)। दिल्ली के मुख्यमंत्री अरविन्द केजरीवाल को सुप्रीम कोर्ट से बड़ी निराशा हाथ लगी है। सुप्रीम कोर्ट ने केजरीवाल के खिलाफ दिल्ली की पटियाला हाउस अदालत में लंबित आपराधिक मानहानि की सुनवाई पर रोक लगाने से इन्कार कर दिया। साफ हो गया है कि केजरीवाल पर दीवानी और आपराधिक मानहानि दोनों के मुकदमें एक साथ चलेंगे। हाईकोर्ट पहले ही याचिका खारिज कर चुका है।
वित्त मंत्री अरुण जेटली ने डीडीसीए विवाद में उन्हें बदनाम करने के आरोप में अरविंद केजरीवाल व आम आदमी पार्टी के पांच अन्य नेताओं के खिलाफ दिल्ली की पटियाला हाउस अदालत में आपराधिक मानहानि का मुकदमा दाखिल कर रखा है। इसके अलावा दिल्ली हाईकोर्ट में उन लोगों के खिलाफ मानहानि का दीवानी मुकदमा भी दाखिल किया है। अरविन्द केजरीवाल ने हाईकोर्ट से याचिका खारिज होने के बाद सुप्रीमकोर्ट में याचिका दाखिल कर दीवानी मुकदमें की सुनवाई पूरी होने तक आपराधिक मुकदमें की सुनवाई पर रोक लगाने की मांग की थी।
लाभ का पदः मुश्किल में केजरीवाल, 21 AAP विधायकों पर फैसला आज संभव
मंगलवार को मामले की सुनवाई के दौरान केजरीवाल की ओर से पेश वरिष्ठ अधिवक्ता राम जेठमलानी ने आपराधिक मानहानि के मुकदमे की सुनवाई पर रोक लगाने की मांग करते हुए कहा कि अगर दिल्ली हाईकोर्ट ने मानहानि के दीवानी मुकदमे में फैसला दे दिया तो निचली अदालत को हाईकोर्ट के फैसले का अनुसरण करना पड़ेगा क्योंकि वह मामला भी समान तथ्यों और परिस्थितियों पर आधारित है। उनकी मांग थी कि निचली अदालत मे लंबित आपराधिक मानहानि के मुकदमें पर रोक लगा दी जाए जबकि हाईकोर्ट के समक्ष लंबित दीवानी मामले की सुनवाई चलती रहे। लेकिन न्यायमूर्ति पीसी पंत व न्यायमूर्ति यूयू ललित की पीठ दलीलों से बहुत प्रभावित नहीं हुई। पीठ ने याचिका खारिज करते हुए कहा कि उन्होंने हाईकोर्ट का आदेश देखा है और उन्हें हाईकोर्ट व निचली अदालत के आदेश में दखल देने का कोई कारण नजर नहीं आता।
केंद्र सरकार के नोटबंदी के फैसले के खिलाफ HC पहुंचीं पूनम महाजन
दिल्ली हाईकोर्ट ने गत 19 अक्टूबर को निचली अदालत में चल रहे मानहानि के मुकदमें पर रोक लगाने की मांग खारिज करते हुए अपने फसले में कहा था कि दोनों मुकदमें साथ चलने से याचिकाकर्ता के हित प्रभावित नहीं होंगे।