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पहाड़गंज का 'चूर-चूर नान' किसका? दिल्ली हाई कोर्ट ने दिया फैसला- 'जो बनाए उसका'

बता दें कि प्रवीण जैन के अमृतसरी चूर चूर नान ने प्रतिद्वंद्वी राजन सेठ के टेस्टी फूट-पहाड़गंज के मशहूर चूर चूर के नान का नाम इस्तेमाल करने को लेकर मामला कोर्ट पहुंच गया था।

By JP YadavEdited By: Published: Sat, 18 May 2019 10:46 AM (IST)Updated: Sat, 18 May 2019 08:21 PM (IST)
पहाड़गंज का 'चूर-चूर नान' किसका? दिल्ली हाई कोर्ट ने दिया फैसला- 'जो बनाए उसका'

नई दिल्ली, प्रेट्र। पहाड़गंज के मशहूर 'चूर चूर नान' और 'अमृतसरी चूर-चूर नान' को लेकर दिल्ली हाई कोर्ट (Delhi High Court)  की जस्टिस प्रतिभा एम. सिंह अहम फैसला दिया है। HC के इस फैसले से याचिकाकर्ता प्रवीण जैन को झटका लगा है। कोर्ट ने साफ शब्दों में कहा है कि 'चूर चूर नान' और 'अमृतसरी नान' एक सामान्य शब्द है, मसलन अमृतसरी कुल्छा, हैदराबादी बिरयानी, मुरथल के परांठे आदि, ऐसे में यह ट्रेडमार्क नहीं हो सकते हैं। इस फैसले के साथ ही कोर्ट ने राजन सेठ को भी 'चूर-चूर नान' का इस्तेमाल करने का अधिकार दे दिया है। 

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यहां पर बता दें कि प्रवीण जैन के 'अमृतसरी चूर चूर नान' ने प्रतिद्वंद्वी राजन सेठ के 'टेस्टी फूड-पहाड़गंज के मशहूर चूर चूर के नान' का नाम इस्तेमाल करने को लेकर मामला कोर्ट पहुंच गया था। दरअसल, प्रवीण जैन दिल्ली हाई कोर्ट में याचिका दाखिल कर कहा था कि आखिर किसकी है मशहूर 'चूर चूर नान'? यह याचिका चूर-चूर नान के तथाकथित असली मालिक की दावेदारी को लेकर दाखिल की गई थी। 

हाई कोर्ट ने सुनवाई के दौरान कहा कि चूर-चूर शब्द का मतलब चूरा किया हुआ है और चूर-चूर नान का मतलब है चूरा किया हुआ नान। यह शब्द किसी एक के लिए ट्रेडमार्क हस्ताक्षर लेने योग्य नहीं है। न्यायमूर्ति प्रतिभा एम सिंह ने प्रवीण कुमार जैन की याचिका पर सुनवाई करते हुए अपना फैसला सुनाया। प्रवीण जैन पहाड़गंज में एक रेस्तरां के मालिक हैं, जहां नान एवं अन्य व्यंजन परोसे जाते हैं। उन्होंने हाई कोर्ट में याचिका दायर कर दावा किया था कि चूर-चूर नान पर उनका अधिकार है, क्योंकि उन्होंने इसके लिए पंजीकरण कराया हुआ है। ऐसे शब्दों का इस्तेमाल करने के लिए एक अन्य भोजनालय के खिलाफ ट्रेडमार्क उल्लंघन का आरोप लगाया था।

याचिका पर सुनवाई करते हुए हाई कोर्ट ने कहा कि यदि पंजीकरण गलत तरीके से दिए गए हैं या ऐसे सामान्य भावों के लिए आवेदन किया गया है, तो इसे अनदेखा नहीं कर सकते हैं। इन शब्दों का इस्तेमाल सामान्य भाषा में बातचीत के दौरान होता है और चूर-चूर भाव के संबंध में किसी का एकाधिकार नहीं हो सकता है। हाई कोर्ट ने कहा कि याचिकाकर्ता ने भले ही चूर-चूर नान, अमृतसरी चूर-चूर नान का पंजीकरण करा रखा हो, लेकिन इससे किसी भी नान को चूर-चूर करने से नहीं रोका जा सकता।

मिली जानकारी के मुताबिक, दिल्ली की मशहूर पहाड़गंज मार्केट में प्रवीण कुमार जैन खाने की एक छोटी सी दुकान चलाते हैं। इस दुकान की खासियत उसकी 'चूर-चूर नान' है, जो आसपास ही नहीं एनसीआर के शहरों नोएडा, गुरुग्राम, फरीदाबाद, सोनीपत और गाजियाबाद में बहुत मशहूर है। 

प्रवीण ने हाई कोर्ट में याचिका दायर कर दावा किया था कि उनके पिता ने 1980 में 'चूर-चूर नान' बनाना शुरू किया था। कोर्ट में तर्क रखते हुए उन्होंने दावा किया था कि चूर-चूर नान के स्वाद और ख्याति से उन्हें मार्केट में बढ़त मिली है। बावजूद इसके उनके पड़ोसी और प्रतिद्वंदी चूर-चूर नान का इस्तेमाल रेस्तरां के नाम के तौर पर कर रहे हैं। इसके नाम के इस्तेमाल को लेकर प्रवीण ने दिल्ली हाईकोर्ट में एक याचिका दाखिल की थी।

यहां पर बता दें कि पंजाबी खासकर अमृतसरी जायकों का लुत्फ उठाने के लिए पहाड़गंज की देशबंधु गुप्ता रोड सबसे मशहूर है। यहां अमृतसर में परोसे जाने वाले स्वाद से लेकर पुरानी दिल्ली के चटपटे मसालों तक सुस्वाद मिल जाएगा। इस मार्ग पर कदम-कदम पर चूर-चूर के नान की दुकानें और खोमचे लगे हैं। इन सब में सबसे पुरानी दुकान है चावला की जो कि चूर-चूर नान के लिए काफी मशहूर हो चुकी है।

नई दिल्ली रेलवे स्टेशन के नजदीक अजमेरी गेट की तरफ जाने वाली देशबंधु गुप्ता रोड अब अमृतसरी जायकों का नया ठिकाना है। दो दशक में यहां कई तरह के नान और दाल मखनी के जायकों का लोग लुत्फ उठा रहे हैं। इस रोड पर छोटी बड़ी करीब आधा दर्जन दुकानें खुल चुकी हैं लेकिन चावला चूर चूर के नान की मशहूरियत दूर दूर तक है।

खासकर पर्यटकों के लिए स्वाद के इस ठिकाने में सात तरह के नान का स्वाद मौजूद है। आलू, गोभी, पनीर, पालक, दाल, मिर्च, मूली के नान की थाली में दाल मखनी, छोले, रायता और चटपटी चटनी के साथ लच्छेदार प्याज। अमृतसरी थाली को लगाने के तरीके और इन जायकों को देखकर ही मुंह में पानी भर आता है। इस दुकान के संचालक मनोहर चावला बताते हैं कि पहले उनके पिताजी स्व.वजीर चंद ने इसी रोड पर कुल्फी, रबड़ी, भल्ले पापड़ी की रेहड़ी लगाई। फिर किसी काम से उन्हें अमृतसर जाना पड़ा। वहां किसी ढाबे में नान को चूर चूर कर परोसते देखा।

इसका स्वाद इतना लजीज था कि वहीं से उन्होंने इसे दिल्ली में भी आजमाने की सोची। करीब 35 साल पहले इसी रोड पर आइसक्रीम की ठेली छोड़ उन्होंने चूर-चूर के नान बनाना शुरू किया। शुरुआत से ही यहां सात तरह के नान बनाए जाने लगे। उस समय नान की थाली की कीमत आठ रुपये हुआ करती थी। गर्मागर्म नान के कुरकुरे सुस्वाद ने लोगों को अपना मुरीद बना लिया। आज भी यही स्वाद बरकरार है।

मनोहर बताते हैं कि पिताजी की तरह नान और छोलों में घर पर तैयार मसालों का ही इस्तेमाल किया जाता है। 30 दशक पहले भी इस दुकान पर लोग खाने पर जमा हुआ करते थे, खासकर चुनाव के समय जब नेता की तकरीरों में नान के जायकों का चटपटा और तीखा स्वाद शामिल हो जाया करता था। इतने साल बीतने के बाद भी चूर चूर के नान का नाम आज भी बरकरार है।

आज 80-90 रुपये में भी लोग बड़े चाव से नान खाने आते हैं। इसके साथ लोग चाहे तो अमृतसरी लस्सी का स्वाद भी ले सकते हैं। मनोहर बताते हैं कि इस जायके ने उन्हें मशहूरियत दी इसलिए इसके स्वाद से कहीं कोई समझौता नहीं किया गया। इसी वजह से दूसरे लोगों ने भी इस स्वाद को अपनाने की कोशिश की। पिताजी ने इसके लिए पंजाब में ढाबों वालों से ट्रेनिंग भी ली। एक महीने की ट्रेनिंग के दौरान वहां के जायके के साथ लाहौरी स्वाद भी जुड़ गया।

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