मजदूरी की परिभाषा का उपयोग बोनस की गणना करने के लिए नहीं किया जा सकता: दिल्ली हाईकोर्ट
दिल्ली हाईकोर्ट (Delhi High Court) ने औद्योगिक न्यायाधिकरण के वर्ष 2003 में दिए गए निर्णय (कि बोनस की गणना के लिए न्यूनतम मजदूरी को ध्यान में रखा जाए) के खिलाफ दायर रिट याचिका का निपटारा करते हुए कहा कि न्यूनतम मजदूरी अधिनियम 1948 के तहत मजदूरी की परिभाषा का उपयोग बोनस भुगतान अधिनियम 1965 के तहत बोनस की गणना करने के लिए नहीं किया जा सकता है।
जागरण संवाददाता, नई दिल्ली। दिल्ली हाईकोर्ट (Delhi High Court) ने औद्योगिक न्यायाधिकरण के वर्ष 2003 में दिए गए निर्णय (कि बोनस की गणना के लिए न्यूनतम मजदूरी को ध्यान में रखा जाए) के खिलाफ दायर रिट याचिका का निपटारा करते हुए कहा कि न्यूनतम मजदूरी अधिनियम 1948 के तहत मजदूरी की परिभाषा का उपयोग बोनस भुगतान अधिनियम 1965 के तहत बोनस की गणना करने के लिए नहीं किया जा सकता है। इससे उक्त कानून का उद्देश्य विफल हो जाएगा।
न्यायमूर्ति चंद्र धारी सिंह की एकल पीठ ने कहा कि बोनस अधिनियम के तहत मजदूरी में एचआरए, परिवहन, बोनस और अन्य भत्ते शामिल नहीं हैं। लेकिन एमडब्ल्यू अधिनियम के तहत इस शब्द की परिभाषा में ये भत्ते शामिल हैं। इस प्रकार दोनों शब्दों के स्वतंत्र अर्थ हैं और इन्हें एक दूसरे के स्थान पर इस्तेमाल नहीं किया जा सकता।
न्यायालय ने पाया कि औद्योगिक न्यायाधिकरण ने अपने फैसले में यह उल्लेख किया है कि याचिकाकर्ता को बोनस की गणना के लिए केवल मूल वेतन के बजाय दिल्ली सरकार द्वारा निर्धारित न्यूनतम मजदूरी पर विचार करना चाहिए।
याचिकाकर्ता ने तर्क दिया कि बोनस भुगतान अधिनियम 1965 में वेतन या मजदूरी की परिभाषा व्यापक है और यह प्रविधान करती है कि वेतन या मजदूरी का अर्थ मूल वेतन और महंगाई भत्ता है और अन्य सभी भत्ते इसमें शामिल नहीं हैं। बोनस की गणना के लिए केवल वेतन या मजदूरी की इस परिभाषा को ध्यान में रखा जाना चाहिए।